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मोदी-शाह समझें, अदानी से छुड़ाएं पिंड, अब और न पालें!

Narendra modi amit shah

एक तरह से यह अनुरोध है। वजह हिंदुओं की वैश्विक बदनामी की चिंता है। हालांकि जैसे बाकी मामलों में है वैसे गौतम अदानी के मामले में भी लगता है कि मोदी-शाह अपनी जिद्द पर अड़े रहेंगे। इसलिए होगा वही जो मैं नोटंबदी के बाद से लगातार दोहरा रहा हूं। मतलब धैर्य धरें, मोदी राज के विध्वंस को समय अपने आप प्रकट करेगा। मोदी कितने ही साल राज करें उनकी कमान के नतीजे तय हैं। अंत में भारत खोखला, पराश्रित, लुटा-पीटा और दसियों संकट लिए होगा। बावजूद इसके अपना धर्म है कि गौतम अदानी से दुनिया में भारत की साख का जो भट्ठा बैठा है तो उससे उबरने के लिए कुछ तो होना चाहिए। पहली जरूरत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वह करें, जिससे उनकी सरकार अदानी ग्रुप के खिलाफ कार्रवाई करती दिखे। दूसरी बात जिन-जिन विदेशी नेताओं से मोदी ने अदानी के लिए लॉबिंग की उन्हें वे मैसेज करें कि मेरा और भारत सरकार का अदानी ग्रुप से कोई मतलब नहीं है। तीसरी बात, अदानी ग्रुप के खिलाफ वह सब कार्रवाई हो जो बैंकों-एलआईसी-वित्तीय संस्थाओं को चूना लगाने या आम निवेशक को पैसा डूबने के सेठों के मामलों में सरकार ने पहले किया है।

मतलब यह कि गौतम अदानी को यदि कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा वैश्विक ठग करार दिया जा रहा है और निवेशकों का भरोसा टूटा नजर आ रहा है तो नरेंद्र मोदी को भी अपना भरोसा खूटे पर टांग कर अदानी ग्रुप की पड़ताल वैसे ही करानी चाहिए जैसे विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी आदि की हुई है।

बारीकी से विचार करें। पूरी दुनिया, वैश्विक वित्तीय बाजार, वैश्विक मीडिया में तीन-चार सालों से क्या चलता हुआ था? यह खबर कि भारत का अरबपति अदानी दुनिया के तमाम खरबपतियों को पछाड़ते हुए नंबर एक बन रहा है। पृथ्वी के कोने-कोने में खबर थी कि भारतीय गौतम अदानी विश्व का जगत सेठ है। तमाम स्थापित खरबपति, कॉरपोरेट मालिक गौतम अदानी से पिछड़ते हुए। खरबपतियों की वैश्विक रैंकिंग में गौतम अदानी की कहानी सुपर महानायक वाली थी। वह विश्व का कुबेर!

और सिर्फ छह दिन!  वह कुबेर ताशमहल की तरह भरभरा कर खाली पीपा साबित। तभी अदानी पर पृथ्वी के कोने-कोने में क्या सोचा नहीं जा रहा होगा? उससे फिर भारत पर, नरेंद्र मोदी पर कैसी धारणा होगी? सोचें, पिछले नौ सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गौतम अदानी के लिए कितने प्रधानमंत्रियों-राष्ट्रपतियों व सरकारों के आगे पैरवी की? अदानी के लिए क्या क्या नहीं हुआ? अब वही अदानी पूरी दुनिया में बतौर ठग बदनाम व अछूत है। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के भाई ने जिस फुर्ती से अदानी से लिंक वाली कंपनी से इस्तीफा दिया उससे समझा जाना चाहिए कि गौतम अदानी अब लायबिलिटी है। तभी नरेंद्र मोदी जब दुनिया के नेताओं के बीच में आगे बैठेंगे, तो विदेशी नेता अदानी ग्रुप की ठगी के रेफरेंस में नरेंद्र मोदी पर क्या सोचेंगे? जी-23 की जब दिल्ली में बैठक होगी तो विदेशी नेता व अफसर क्या नहीं सोचेंगे कि यही का अदानी दुनिया का….।  बांग्लादेश की हसीना वाजेद हों या श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, इजराइल आदि के प्रधानमंत्री क्या सोचेंगे?

क्या अदानी ग्रुप से निवेशकों को भागता देख दुनिया नहीं मान रही होगी कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने सही कहा कि गौतम अदानी कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा ठग है। तभी पोल खुली और एंपायर रेतमहल की तरह ढहता हुआ। बावजूद इसके जिस भारत सरकार के प्रश्रय से ऐसा हुआ वह निवेशकों के खरबों रुपए डूबने के बावजूद न तो जांच कर रही है और न पूछताछ और न कर्जदारी का पूरा हिसाब-किताब लेते हुए!

इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फैसला करना है कि वे अदानी से पिंड छुड़ाएं या पहले की तरह उन्हें प्रमोट करते हुए उनका बचाव करें। सत्य-तथ्य है कि नरेंद्र मोदी के सपनों के गौतम अदानी वेल्थ क्रिएटर हैं। तभी मैंने पिछले सप्ताह लिखा और वापिस लिख रहा हूं कि गौतम अदानी को दुनिया भले एक्सपोज कर दे लेकिन भारत में उनका बाल बांका नहीं होगा।

बावजूद इसके पिछले छह दिन कैसे भूले जाएं! दुनिया में अदानी, मोदी और भारत तीनों की इमेज क्या बनती हुई होगी? भारत का मीडिया भले गौतम अदानी का इतिहास, उनके ग्रुप पर मोदी सरकार की हुई मेहरबानियों, राष्ट्र-राज्य की संपदाओं की एनसीएलटी आदि के जरिए लूट और मनी लांड्रिंग के हिंडनबर्ग के खुलासे को चाहे जितना नजरअंदाज करें लेकिन विश्व मीडिया अब गौतम अदानी के भाइयों, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, इजराइल आदि में अदानी ग्रुप के बिजनेस और मनी लांड्रिंग के तमाम पहलूओं की बारीक पड़ताल करेंगे। बहुत वैश्विक खबरें आएंगी। गौतम अदानी पर फिल्में बनेंगी। उस सबमें तब मोदी सरकार का जैसे और जो जिक्र होगा तो उससे प्रधानमंत्री मोदी का इतिहास क्या लिखा जाना है?

इसलिए फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से अपना अनुरोध है कि गौतम अदानी को वे डंप करें। हिंदू राजनीति की करनियों में वैश्विक ठगी और फर्जी कुबेर पैदा करने की दास्तां नहीं जुड़ने दें। गौतम अदानी से अब वेल्थ क्रिएट नहीं होगी, बल्कि आगे स्कैंडल क्रिएट होंगे। भारत बदनाम होगा।

By हरिशंकर व्यास

भारत की हिंदी पत्रकारिता में मौलिक चिंतन, बेबाक-बेधड़क लेखन का इकलौता सशक्त नाम। मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक-बहुप्रयोगी पत्रकार और संपादक। सन् 1977 से अब तक के पत्रकारीय सफर के सर्वाधिक अनुभवी और लगातार लिखने वाले संपादक।  ‘जनसत्ता’ में लेखन के साथ राजनीति की अंतरकथा, खुलासे वाले ‘गपशप’ कॉलम को 1983 में लिखना शुरू किया तो ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ में लगातार कोई चालीस साल से चला आ रहा कॉलम लेखन। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम शुरू किया तो सप्ताह में पांच दिन के सिलसिले में कोई नौ साल चला! प्रोग्राम की लोकप्रियता-तटस्थ प्रतिष्ठा थी जो 2014 में चुनाव प्रचार के प्रारंभ में नरेंद्र मोदी का सर्वप्रथम इंटरव्यू सेंट्रल हॉल प्रोग्राम में था।आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों को बारीकी-बेबाकी से कवर करते हुए हर सरकार के सच्चाई से खुलासे में हरिशंकर व्यास ने नियंताओं-सत्तावानों के इंटरव्यू, विश्लेषण और विचार लेखन के अलावा राष्ट्र, समाज, धर्म, आर्थिकी, यात्रा संस्मरण, कला, फिल्म, संगीत आदि पर जो लिखा है उनके संकलन में कई पुस्तकें जल्द प्रकाश्य।संवाद परिक्रमा फीचर एजेंसी, ‘जनसत्ता’, ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, ‘राजनीति संवाद परिक्रमा’, ‘नया इंडिया’ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नींव से निर्माण में अहम भूमिका व लेखन-संपादन का चालीस साला कर्मयोग। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में नब्बे के दशक की एटीएन, दूरदर्शन चैनलों पर ‘कारोबारनामा’, ढेरों डॉक्यूमेंटरी के बाद इंटरनेट पर हिंदी को स्थापित करने के लिए नब्बे के दशक में भारतीय भाषाओं के बहुभाषी ‘नेटजॉल.काम’ पोर्टल की परिकल्पना और लांच।

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