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पाक की अस्थिरता, भारत के लिए चुनौती!

भारत में जश्न मनाया जा रहा है कि पाकिस्तान दिवालिया हो गया। मीडिया में और खासतौर से सोशल मीडिया में इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मास्टरस्ट्रोक का नतीजा बताया जा रहा है। व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी में इस बात का दावा किया गया है कि नोटबंदी के मास्टरस्ट्रोक से पाकिस्तान दिवालिया हुआ है। इस आधुनिक सिद्धांत के मुताबिक जाली नोट छपने बंद हो गए हैं और इस वजह से पाकिस्तान बरबाद हो गया है। यह अलग बात है कि हकीकत में पहले से ज्यादा जाली नोट पकड़े जा रहे हैं और दूसरे, पाकिस्तानी की बदहाली कोई छह सात साल का नतीजा नहीं है। बहरहाल, यह हकीकत है कि पाकिस्तान की हालत खराब है। वह बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा है और राजनीतिक अस्थिरता भी लगातार बढ़ रही है। पू

र्व प्रधानमंत्री इमरान खान की जम्हूरियत यात्रा और उनके ऊपर हुए हमले ने पाकिस्तान की राजनीतिक फॉल्टलाइन जाहिर कर दी है। इमरान खान को पाकिस्तानी सेना की कठपुतली कहा जा रहा था लेकिन वे पहले नेता साबित हुए, जिनकी सीधे सेना पर सवाल उठाने और उसे कठघरे में खड़ा करने की हिम्मत हुई। उनकी वजह से पहली बार पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के प्रमुख को सामने आकर प्रेस कांफ्रेंस करनी पड़ी। अब इमरान के ऊपर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।

पाकिस्तान इस समय आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक संकट के दौर से गुजर रहा है। अफगानिस्तान के हालात पहले ही अच्छे नहीं है। वहां अगस्त 2021 में सत्ता पर तालिबान के कब्जे के बाद हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। तालिबान की ज्यादतियां बढ़ती जा रही हैं और उसी अनुपात में मानवीय त्रासदी का दायरा बढ़ता जा रहा है। लोग भूखों मर रहे हैं। इसका नुकसान भी पाकिस्तान को हो रहा है क्योंकि लाखों की संख्या में लोग विस्थापित होकर पाकिस्तान की सीमा में घुस रहे हैं। सोचें, पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार के मुकाबले तालिबान की जाहिल और बर्बर सत्ता का समर्थन किया। आज यह उसके लिए सबसे बड़ा सिरदर्द है। विस्थापितों की भीड़ के साथ साथ तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी की आतंकवादी गतिविधियों से पाकिस्तान की परेशानी बढ़ी है। पिछले दिनों टीटीपी ने बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम दिया, जिसमें पाकिस्तान की पुलिस के 50 से ज्यादा जवान मारे गए। सीमावर्ती इलाकों से आगे बढ़ कर पंजाब तक में पाकिस्तानी तालिबान का असर बढ़ रहा है। पाकिस्तानी तालिबान की बढ़ती गतिविधियों की वजह से पाकिस्तान को पूर्वी सीमा की बजाय पश्चिमी सीमा पर ज्यादा ध्यान देना पड़ रहा है।

उसका आर्थिक संकट ऐतिहासिक हो गया है। महंगाई 50 साल के चरम पर है और थोड़े से उच्च तबके को छोड़ कर पूरी आबादी परेशान है। आर्थिक परेशानी दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ के साथ चल रही पाकिस्तान की वार्ता सिरे नहीं चढ़ रही है। हालांकि आईएमएफ की शर्तों को मान कर पाकिस्तान ने पेट्रोल के दाम बढ़ा दिए हैं। पेट्रोल की कीमत पाकिस्तान में 272 रुपए लीटर पहुंच गई है। इसके बावजूद आईएमएफ की ओर से कर्ज की पहली किस्त जारी नहीं हुई है। आईएमएफ से पाकिस्तान को कुल सात अरब डॉलर का कर्ज मिलना है, जिसकी पहली किस्त 1.1 अरब डॉलर की है। इसके लिए आईएमएफ ने पेट्रोल के दाम बढ़ाने और आयकर की दरें बढ़ाने की शर्त रखी थी। पाकिस्तान के इन शर्तों को मानने के बाद उसे आईएमएफ का कर्ज मिल जाएगा लेकिन उससे उसकी समस्याओं का समाधान नहीं होगा।

आईएमएफ पहले 33 बार पाकिस्तान को इस तरह की मदद दे चुका है। ऊपर से पहले ही उसके ऊपर 130 अरब डॉलर का कर्ज है, जिसमें से 30 अरब डॉलर अकेले चीन का है। इस बार भी चीन ने ही उसे मदद दी है। लेकिन उसने साफ कर दिया है कि वह कर्ज की शर्तों में कोई छूट पाकिस्तान को नहीं देने जा रहा है। यानी पाकिस्तान ने कर्ज लिया है तो ब्याज चुकाते रहना होगा नहीं तो चीन को वसूलना आता है। एक तरह से पाकिस्तान पूरी तरह से कर्ज आधारित चीनी कूटनीति के जाल में फंस चुका है।

असल में पाकिस्तान का संकट जन्मजात है। बुनियादी रूप से उसकी अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है। जहां तक उद्योग की बात है तो टेक्सटाइल मुख्य उद्योग है। इसके अलावा विनिर्माण का बहुत छोटा हिस्सा है। नई ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के दायरे में पाकिस्तान कभी आया ही नहीं। सो, जिस तरह के उद्योग बांग्लादेश, फिलीपींस, वियतनाम आदि देशों में विकसित हुए वैसा पाकिस्तान में नहीं हो सका। उलटे उसने भारत विरोध की नीति को अपनी आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सामरिक नीति का आधार बना लिया। सारे नेता चाहे वे चुने हुए हों या सैनिक तानाशाह हों उन्होंने पाकिस्तानी आवाम को भारत विरोध के नाम पर बेवकूफ बनाया। वे उनको कश्मीर लाकर देने के सपने दिखाते रहे और पूरा पाकिस्तान जिहाद की फैक्टरी में तब्दील कर दिया। भारत विरोध में नेताओं ने पाकिस्तान को कभी अमेरिका की कठपुतली बनाया तो कभी चीन के हाथ गिरवी रखा। भारत विरोध के लिए, सीमा पर भारत को उलझाए रखने के लिए, भारत के अंदर अस्थिरता फैलाने के लिए पाकिस्तान ने सेना और अपनी खुफिया एजेंसी पर बेहिसाब खर्च किया। कर्ज के पैसे का ज्यादातर हिस्सा इस काम पर खर्च हुआ और आज स्थिति यह हो गई है कि शहबाज शरीफ सरकार को अपने मंत्रियों का वेतन रोकना पड़ गया है।

हालांकि पाकिस्तान के लिए अब भी रास्ता बचा है। अगर वह दक्षिण एशिया में भारत विरोध की नीति छोड़े दे, अपने को चीन की कठपुतली न मान कर स्वतंत्र सामरिक व विदेश नीति अपनाए, जिहाद को आधिकारिक नीति बनाए रखना बंद करे और सैन्य व खुफिया एजेंसी पर होने वाले खर्च में कटौती करके उसे सामाजिक विकास की योजनाओं पर खर्च करे तो उसकी स्थिति सुधर सकती है। अगर उसके प्रति दुनिया का भरोसा बढ़ेगा तो उसे कर्ज मिलने में भी सुविधा होगी और साथ ही नागरिकों का जीवन सुधरेगा तो देश की हर समस्या अपने आप कम होगी। भारत के लिए यही आदर्श स्थिति होगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो जिस तरह से अफगानिस्तान की अस्थिरता से पाकिस्तान परेशान है उसी तरह इन दोनों देशों की अस्थिरता से भारत को मुश्किल होगी।

इन दोनों देशों की आर्थिक व राजनीतिक अस्थिरता भारत के लिए भी बड़ी चुनौती है। ध्यान रहे पाकिस्तान दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी आबादी वाला देश है और दुनिया के उन आठ देशों में से एक है, जो आधिकारिक रूप से परमाणु शक्ति से संपन्न हैं। अगर उसकी स्थिति नहीं सुधरती है तो इस बात की आशंका है कि चीन उसे ज्यादा आसानी से भारत विरोधी टूल के तौर पर इस्तेमाल करेगा। यह सही है कि भारत अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है लेकिन चीन और पाकिस्तान दोनों की सीमा पर सुरक्षा सुनिश्चित करने की कीमत बहुत बड़ी होगी। भारत का सामरिक खर्च भी बढ़ता जाएगा। इसलिए पाकिस्तान की अस्थिरता पर जश्न मनाने की बजाय उसकी चिंता करने की जरूरत है।

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Published by अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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