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गपशप

बतौर प्रयोगशाला बिहार

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भाजपा यह काम बिहार में कर चुकी है। बिहार में सन ऑफ मल्लाह के नाम से उभरे मुकेश सहनी ने विकासशील इंसान पार्टी के नाम से अपनी पार्टी बनाई थी। भाजपा से तालमेल किया था। पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के चार विधायक जीते थे और सहनी राज्य सरकार में मंत्री बने थे। लेकिन थोड़े दिन के बाद जब सहनी की पार्टी के एक विधायक का निधन हुआ था तो खाली हुई सीट पर भाजपा ने दावा कर दिया। जब सहनी ने सीट नहीं छोड़ी तो उनकी पार्टी के बचे हुए तीन विधायकों को भाजपा में मिला लिया गया। मुकेश सहनी छाती पीटते घूम रहे हैं। अब सुनने में आ रहा है कि वे फिर भाजपा के साथ ही जाएंगे।

बहरहाल, भाजपा ने जो काम महाराष्ट्र में शिव सेना के साथ किया वही काम बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू में करने की तैयारी थी। जिस तरह महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे को बागी कराया गया था उसी तरह बिहार में आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्री बना कर बागी कराया गया। पूर्व आईएएस अधिकारी और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे आरसीपी के जरिए जदयू को तोड़ कर भाजपा की अपनी सरकार बनाने की तैयारी थी। लेकिन उद्धव ठाकरे के मुकाबले नीतीश कुमार ज्यादा होशियार निकले. और उन्होंने बाजी पलट दी। नीतीश भाजपा को छोड़ कर राजद के साथ चले गए। उनकी पार्टी में बगावत कराने से पहले एक योजना के तहत 2020 के विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी को गठबंधन से अलग किया गया। चिराग पासवान ने अपने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते हुए नीतीश कुमार की पार्टी के हर उम्मीदवार के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिए। इसका नतीजा यह हुआ कि नीतीश की पार्टी 43 विधानसभा सीटों पर सिमट गई। इतना कमजोर हो जाने के बाद फिर भाजपा को उसे तोड़ना आसान लग रहा था लेकिन वह नहीं हो सका। सोचें, यह काम भाजपा ने नीतीश के साथ रहते हुए किया था।

सो भाजपा की पहलीकोशिश प्रादेशिक पार्टियों को हराने की होती है और यदि हरा नहीं सकते हैं तो उनके अंदर तोड़ फोड़ करानी है ताकि अंदरूनी झगड़े की वजह से पार्टी कमजोर हो। भाजपा ने इसका प्रयास तमिलनाडु से लेकर पश्चिम बंगाल और हरियाणा से लेकर उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश सभी तरफ किया है। कहीं कामयाबी मिली है और कहीं नहीं मिल पाई है। जहां कामयाबी नहीं मिली है वहां कोशिश जारी है। इन राज्यों में भाजपा ने सफलता से प्रादेशिक पार्टियों केलीडर क्षत्रपों के घर में झगड़ा भी कराया है या कराने की कोशिश रही है। ये पार्टियां या तो भाजपा के कारण टूटी हैं या उनकी टूट का भाजपा ने फायदा उठाया है। मिसाल के तौर पर हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल टूटी तो भाजपा ने उसका फायदा उठाया। ओमप्रकाश चौटाला के पोते को उप मुख्यमंत्री बना कर अपनी सरकार बनाई। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी के नंबर दो नेता शुभेंदु अधिकारी को तोड़ कर ममता बनर्जी को बड़ा झटका दिया। अपनी ताकत बढ़ाई। आंध्र प्रदेश में टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के परिवार में पहले से बनी फूट का फायदा उठाने की कोशिश भी भाजपा कर रही है। पिछले दिनों अमित शाह ने जूनियर एनटीआर से मुलाकात की थी। उत्तर प्रदेश में भी खेला हो गया था लेकिन मुलायम सिंह के निधन के बाद शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी में लौट गए। तमिलनाडु में भाजपा अन्ना डीएमके की राजनीति को अपने हिसाब से चलाने की लगातार कोशिश करते हुए है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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