रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने प्रबल विरोधी व्लादिमीर कारा-मुर्जा को 25 साल की सजा सुनवा दी। यह सजा, यूक्रेन पर रूस के हमले का विरोध करने वालों को दी गई सजाओं में सबसे अधिक चर्चित है। दो हफ्ते पहले अमरीकी अखबार ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ के संवाददाता इवान गेर्शकोविच को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। कारा-मुर्जा रूस और ब्रिटेन दोनों के नागरिक हैं जबकि इवान अमरीकी हैं जिन्हें रूस में रिपोर्टिंग करने के लिए आवश्यक अनुमतियां प्राप्त थी। परंतु पुतिन के रूस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
वैसे भी रूस असंतुष्टों और सत्ता के विरोधियों को जेलों में डालने का इतिहास लिए है। विपक्ष के नेता, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य देशों के नागरिकों को जेल में डालना रूसी संस्कृति का मानों हिस्सा है। परंतु यूक्रेन के युद्ध की शुरूआत के बाद से नागरिक विरोध पर कहर कुछ ज्यादा ही है। रूस के आधुनिक इतिहास में पिछला साल शायद सबसे दमनकारी था। युद्ध की शुरूआत से लेकर अब तक करीब 20,000 लोगों को युद्ध का विरोध करने के लिए गिरफ्तार किया जा चुका है। यहां तक कि यूक्रेनी मूल के ऐतिहासिक व्यक्तित्वों की मूर्तियों पर फूल चढ़ाकर उन्हें श्रद्धांजलि देने मात्र के लिए कई लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। क्यों? क्योंकि यह भी मानो रूस को अप्रत्यक्ष लताड़!
पहले से जेल में दिन काट रहे विपक्ष के नेता एलेक्सी नवलनी को एकांत कारावास में रखाहुआ है वही इवान गेर्शकोविच उच्च सुरक्षा वाली कुख्यात लेवोटोवो जेल (केजीबी के पूर्व कारावास) में है। इस जेल का उपयोग केजीबी की वारिस एफएसबी जासूसी के आरोपियों को रखने के लिए करती है। बंद कमरे में हुई सुनवाई में एक जज ने आदेश दिया कि उन्हें कम से कम 29 मई तक वहां रखा जाए।
ये दोनों मामले एक से हैं परंतु इनके नतीजे अलग-अलग होंगे। वॉल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार पर जो आरोप लगाए गए हैं उनके सिद्ध होने पर उन्हें 20 साल तक के कारवास की सजा हो सकती है। सोवियत संघ के ढहने के बाद रूस में पहली बार किसी विदेशी पत्रकार पर जासूसी करने के आरोप में आपराधिक प्रकरण दर्ज हुआ है। एक अच्छी बात यह है (हालांकिबात अपुष्ट है) कि इवान का इस्तेमाल कैदियों की अदला-बदली में एक प्यादे के रूप में हो जाएगा। इसी तरह की अदला-बदली दिसंबर में हुई थी जब बाईडन प्रशासन ने विक्टर बाउट नाम के हथियारों के एक दोषसिद्ध रूसी सौदागर को रिहा किया था और इसके बदले में रूस ने ब्रिटनी ग्रेनर नामक एक बेसबाल खिलाड़ी, जो ड्रग्स से जुड़े आरोपों में 10 महीने से एक रूसी जेल में कैद था, को छोड़ दिया था। रूस को कैदियों की इस तरह की अदला-बदली के लिए इन दिनों प्यादों की जरूरत है क्योंकि दुनिया में कई स्थानों पर रूसी जासूस पकड़े जा रहे हैं।
व्लादिमीर कारा-मुर्जा का मामला सुलझना अपेक्षाकृत मुश्किल है। ब्रिटेन का नागरिक होने के बावजूद एलेक्सी नवलनी की तरह सरकार का दुश्मन माने जाने वाले कारा-मुर्जा उन चन्द प्रमुख विपक्षी नेताओं में से एक है जो रूस छोड़कर नहीं गए। नवलनी के साथियों सहित अनेक विपक्षी नेता युद्ध शुरू होने के बाद अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़कर चले गए हैं। दिसंबर में वरिष्ठ विपक्षी नेता इल्या याशिम को रूसी सेना को बदनाम करने के लिए झूठी सूचनाएं फैलाने के इसी तरह के आरोप में साढ़े आठ साल की सजा दी गई थी।
रूस में सोवियत काल से ही असहमति और विरोध नामंजूर रहा है। मगर पुतिन के शासन में तो पत्रकारों को पेशेवर अपराधी करार दिया जा रहा है। इसके साथ ही वे रूसी नागरिक ज्यादतियांझेल रहे है जो सोशल मीडिया पर यूक्रेन लड़ाई का विरोध कर रहे हैं। पहले कारा-मुर्जा और उसके बाद पत्रकार इवान को गिरफ्तार कर पुतिन, रूस में रहने वाले विदेशियों और उनकी सरकारों को स्पष्ट संदेश दे रहे हैं। कारा-मुर्जा की गिरफ्तारी की पूरी दुनिया में निंदा हुई और इससे रूस के दुनिया के दूसरे देशों से कूटनीतिक रिश्ते और खराब हुए। परंतु इससे पुतिन को कोई फर्क नहीं पड़ता है। ना ही उन्हें इससे कोई फर्क पड़ता है कि शिक्षित, मेधावी और काबिल रूसी भी उनकी सरकार के उत्पीड़न से घबरा कर देश छोड़कर भाग रहे हैं।
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से कम से कम पांच लाख रूसी देश छोड़ चुके हैं। जनता को किसी भी प्रकार की जानकारी देने वाले को वहां नापसंद किया जाता है। रूसी सेना को ‘बदनाम’ करने वाली बातें कहना अपराध है जिसके लिए जुर्माना लगाया जा सकता है। ‘फेक न्यूज’ के प्रकाशन के लिए व्यक्ति को जेल भेजा जाता है। कम से कम 60 विषयों पर चर्चा करना ही अपराध है। इनमें शामिल हैं युद्ध में मारे गए रूसी सैनिकों की संख्या और सरकार द्वारा की जा रही लामबंदी। अपनी गिरफ्तारी के कुछ ही घंटे पहले कारा मुर्जा ने सीएनएन से बातचीत में क्रेमलिन को ‘हत्यारों की सरकार’ बताया था। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थानों में से एक के प्रतिनिधि को गिरफ्तार कर पुतिन ने साफ कर दिया है कि सच के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)