नई दिल्ली। कांग्रेस के सांसद शशि थरूर की अपनी पार्टी से दूरी बढ़ती जा रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करने और केंद्र सरकार के डेलिगेशन की अगुवाई करने के बाद अब अपनी ही पार्टी पर तीखा हमला किया है। उन्होंने इमरजेंसी को भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया है। इमरजेंसी के समय जबरदस्ती नसबंदी कराए जाने को थरूर ने क्रूरता की मिसाल बताया है।
तिरूवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर ने एक लेख में लिका है कि इमरजेंसी को सिर्फ भारतीय इतिहास के काले अध्याय के रूप में याद नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इससे सबक लेना जरूरी है। उन्होंने नसबंदी अभियान को मनमाना और क्रूर फैसला बताया। मलयालम भाषा के अखबार ‘दीपिका’ में गुरुवार को प्रकाशित लेख में थरूर ने लिखा है कि अनुशासन और व्यवस्था के लिए उठाए गए कदम कई बार ऐसी क्रूरता में बदल जाते हैं, जिन्हें किसी तरह उचित नहीं कहा जा सकता।
गौरतलब है कि 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई थी। इसके 50 साल पूरे हुए हैं। इमरजेंसी के दौरान केंद्र सरकार ने कई सख्त फैसले किए थे। इनके बारे में थरूर ने लिखा, ‘इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी का जबरन नसबंदी अभियान चलाने का फैसला क्रूरता का उदाहरण बन गया। गरीब ग्रामीण इलाकों में टारगेट पूरा करने के लिए हिंसा और दबाव का सहारा लिया गया। नई दिल्ली जैसे शहरों में बेरहमी से झुग्गियां तोड़ी गईं। हजारों लोग बेघर हो गए। उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया’।
शशि थरूर ने अपने लेख में लिखा है, ‘लोकतंत्र को हल्के में नहीं लेना चाहिए। यह एक बहुमूल्य विरासत है, जिसे लगातार संरक्षित करना जरूरी है। सत्ता का केंद्रीकरण करने, असहमति को दबाने और संविधान को दरकिनार करने का असंतोष कई रूपों में फिर सामने आ सकता है’। उन्होंने लिखा, ‘अक्सर ऐसे कदमों को देशहित या स्थिरता के नाम पर उचित ठहराया जाता है। इस अर्थ में इमरजेंसी एक चेतावनी के रूप में खड़ा है। लोकतंत्र के संरक्षकों को हमेशा सतर्क रहना होगा’।