Maharashtra election result: भारत में आमतौर पर चुनावों में कोई न कोई लहर होती है। कभी जाति, धर्म या राष्ट्रवाद की भावनात्मक लहर होती है तो कभी सत्ता विरोध की लहर होती है और कई बार सत्ता के समर्थन की लहर भी होती है।
इन्हीं लहरों से पार्टियां जीतती या हारती हैं। कभी कभी कोई लहर नहीं होती है तो अंडरकरंट होता है। हालांकि उसे भी भांप लेना कोई मुश्किल काम नहीं होता है।
चुनाव कवर करने वाले पत्रकार या सर्वे एजेंसियां इसे भांप लेती हैं। कम से कम पार्टियों को तो इसका अंदाजा जरूर हो जाता है कि किसके पक्ष या विपक्ष में अंडर करंट है।
यानी अंदर अंदर किसी हराने और किसी जिताने का माहौल बना हुआ है। कई बार ऐसा भी होता है कि कोई लहर नहीं होती है और कोई अंडर करंट भी नहीं होता है। ऐसे चुनावों में आमतौर पर पार्टियों का प्रबंधन काम करता है।
ऐसे चुनावों की एक और खास बात यह होती है कि इसमें किसी पार्टी को प्रचंड बहुमत नहीं हासिल होता है। बेहतर प्रबंधन करने वाली पार्टियां साधारण बहुमत हासिल करती हैं या त्रिशंकु सदन का गठन होता है। (Maharashtra election result)
यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि लहर हो, अंडर करंट हो या बिना लहर के चुनाव हो इसे चुनाव प्रचार या मतदान के दौरान भांप लिया जाता है।
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परंतु पिछले कुछ चुनावों से ऐसा देखने को मिल रहा है कि भाजपा की सुनामी चल रही होती है और किसी को पता ही नहीं चलता है।
किसी पत्रकार को, किसी मीडिया समूह या सर्वेक्षण करने वाली एजेंसी को और यहां तक कि भाजपा के नेताओं को भी पता नहीं होता है कि उनकी आंधी या लहर तो छोड़िए सुनामी चल रही है।
महाराष्ट्र का इस बार का चुनाव वैसा ही एक चुनाव था, जिसमें किसी को अंदाजा नहीं था कि महाराष्ट्र में भाजपा और उसके गठबंधन की ऐसी सुनामी आने वाली है, जिसमें कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार का सूपड़ा साफ हो जाएगा।
भाजपा के नेता चुनाव के बाद जीत के दावे जरूर कर रहे थे, लेकिन वह तो सारी पार्टियां करती हैं। वह तो संजय राउत भी कर रहे थे। वे भी कह रहे थे कि 160 सीटें आएंगी। लेकिन उनके गठबंधन को सिर्फ 45 सीटें आईं।(Maharashtra election result)
भाजपा, शिव सेना और एनसीपी के नेता भी उसी अंदाज में चुनाव जीतने का दावा कर रहे थे, जैसे संजय राउत कर रहे थे। साथ ही साथ दोनों पक्ष इस बात की तैयारी भी कर रहे थे कि अगर बहुमत नहीं मिला तो क्या प्रबंधन करना है।
चुनाव के बाद एक्जिट पोल करने वाली सिर्फ एक एजेंसी ऐसी थी, जिसने भाजपा गठबंधन को अधिकतम 180 सीटें मिलने की बात कही थी। लेकिन किसी ने उस पर इसलिए ध्यान नहीं दिया था क्योंकि इसी एजेंसी ने इस साल लोकसभा चुनाव में भाजपा को चार सौ सीट जीतने का अनुमान जताया था।
उस एजेंसी ने भी अधिकतम 180 का अनुमान जताया परंतु ऐसी सुनामी आई कि भाजपा गठबंधन को 230 सीटें मिल गईं। उसकी अधिकतम सीमा से 50 ज्यादा! बाकी सारी सर्वे एजेंसियां नजदीकी मुकाबला बता रही थीं।
इस एजेंसी को छोड़ कर बाकी 10 में से पांच ने भाजपा गठबंधन की और पांच ने कांग्रेस गठबंधन की जीत का अनुमान जताया था। सोचें, एक्जिट पोल इस तरह फिफ्टी फिफ्टी बंटा हुआ था!
तभी नतीजों से एक दिन पहले खबर आई थी कि भाजपा, शिव सेना और एनसीपी ने कई चार्टर्ड विमान और हेलीकॉप्टर तैयार रखे हैं, ताकि सभी विधायकों को जल्दी से जल्दी मुंबई लाया जाए।(Maharashtra election result)
ऐसे निर्दलीय उम्मीदवारों पर नजर रखी जा रही थी, जिनके चुनाव जीतने की संभावना थी। मुंबई में हवाईअड्डे के पास ही एक पांच सितारा होटल बुक किया गया था। यह भी खबर आई थी कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले संपर्क में हैं। बताया जा रहा था कि शिंदे की पार्टी की ओर से कांग्रेस से संपर्क किया गया और प्रस्ताव दिया गया कि नतीजे कुछ भी आएं शिंदे को सीएम रहने दिया जाए।
सत्तारूढ़ महायुति की पार्टियां यानी भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिव सेना और अजित पवार की एनसीपी के नेता इसलिए ज्यादा आशंकित थे क्योंकि पांच महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में उनका गठबंधन बुरी तरह से हारा था। महायुति को 48 में से सिर्फ 17 सीटें मिली थीं। दूसरी ओर महा विकास अघाड़ी ने 30 सीटें जीती थीं और एक सीट कांग्रेस के बागी ने जीती थी। इस चुनाव के बाद तो स्थिति ऐसी थी कि महाराष्ट्र भाजपा के सबसे बड़े नेता देवेंद्र फड़नवीस राज्य की राजनीति छोड़ कर दिल्ली जाना चाहते थे और उन्होंने इसके लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से अनुरोध भी किया था। इसके बाद पांच महीने में सिर्फ एक चीज बदली थी और वह ये थी कि एकनाथ शिंदे सरकार ने लड़की बहिन और लाड़ला भाई जैसी योजना शुरू की थी।
इसके तहत महिलाओं और युवाओं को नकद पैसे खाते में डाले जाने लगे थे। इसके बाद यह अनुमान जरूर लगाया जा रहा था कि इसका फायदा महायुति को मिलेगा लेकिन ये योजनाएं इतनी बड़ी सुनामी ला देंगी, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। लोक लुभावन योजनाओं से सुधार की संभावना दिख रही थी लेकिन साथ ही सोयाबीन की खरीद नहीं होने या कीमत बहुत कम होने से किसानों में बड़ी नाराजगी होने की खबरें भी आ रही थीं। मराठा आरक्षण के असर की खबरें भी आ रही थीं। यह भी कहा जा रहा था कि लोग शिव सेना और एनसीपी तोड़ने वाले एकनाथ शिंदे और अजित पवार को सबक सिखाना चाहते हैं। परंतु अंत में नतीजे आए तो भाजपा गठबंधन की सुनामी निकल गई।
बिल्कुल यही कहानी हरियाणा में हुई थी। 10 साल के शासन के बाद भाजपा की सरकार के खिलाफ भयंकर सत्ता विरोधी लहर थी, जिसे कम करने के लिए भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को सीएम पद से हटाया था। राज्य में किसान, जवान और पहलवान तीनों नाराज थे। चुनाव में घूम रहे पत्रकार हों या सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियां हों सबको दिख रहा था कि भाजपा की सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है और कांग्रेस के समर्थन में आंधी चल रही है। लेकिन आठ अक्टूबर को जब नतीजे आए तो उसमें भाजपा की आंधी निकल गई। भाजपा ने सत्ता विरोधी लहर को बेअसर करके उतनी सीटें जीत लीं, जितनी उसने 2014 में नरेंद्र मोदी की पहली लहर में जीती थी।
वहां भी लोकसभा चुनाव में भाजपा अपनी 10 में से पांच सीटें हार गई थी। इससे भी पहले पिछले साल के अंत में भाजपा की ऐसी ही अदृश्य सुनामी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में निकली थी। इसका मतलब है कि जैसे हरियाणा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा के समर्थन वाली लहर अदृश्य थी और किसी को दिखी नहीं वैसे ही महाराष्ट्र में सतह के नीचे एक अदृश्य सुनामी चल रही थी, जिसे कोई नहीं देख पा रहा था। सुनामी सतह के इतनी नीचे थी कि जिनके पक्ष में थी, उन्हें भी नहीं दिख रही थी।
एक और दिलचस्प चीज महाराष्ट्र में देखने को मिली है। विधानसभा चुनाव के साथ साथ राज्य की नांदेड़ सीट पर लोकसभा का उपचुनाव भी हुआ था, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने विजय भाषण में कह दिया था कि भाजपा की एक लोकसभा सीट भी बढ़ रही है। हालांकि वह सीट भाजपा हार गई। अंतिम राउंड की गिनती में कांग्रेस ने 1,457 वोट से वह सीट जीत ली। यह नतीजा दिलचस्प इसलिए है क्योंकि इस लोकसभा की सभी छह सीटें कांग्रेस हार गई है। सोचें, दोनों के मतदान एक साथ हुए।
मतदाता एक बार बूथ में गया तो लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए वोट डाल कर निकला, लेकिन लोकसभा में जिन लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया, उनमें से कम से कम एक चौथाई ने विधानसभा में भाजपा गठबंधन को वोट कर दिया! नांदेड़ लोकसभा सीट पर कांग्रेस को 5.87 लाख वोट मिले, जबकि इसी लोकसभा की छह विधानसभा सीटों पर उसको सिर्फ 4.27 लाख वोट मिले। यानी करीब एक लाख 60 हजार मतदाताओं ने लोकसभा में कांग्रेस को वोट देने के बाद विधानसभा में भाजपा को वोट दे दिया। इसका यह मतलब है कि लोकसभा में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए वोट नहीं किया लेकिन विधानसभा में एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फड़नवीस और अजित पवार के लिए वोट कर दिया!
बहरहाल, चुनाव के दौरान किसी भी पत्रकार, सर्वे एजेंसी, राजनीतिक विश्लेषक और नेता को भाजपा की ऐसी सुनामी नहीं दिखी। लेकिन नतीजों के बाद कहा जा रहा है कि भाजपा ने हरियाणा की तरह महाराष्ट्र में भी अन्य पिछड़ी जातियों की गुत्थी सुलझा ली और उनको अपने साथ जोड़ लिया, जिससे दोनों जगह उसको इतनी बड़ी जीत मिली। हालांकि इसमें भी यह रहस्य है कि आमतौर पर पिछड़ी जातियां चुपचाप वोट नहीं करती हैं। दलित या मुस्लिम या महिलाओं की तरह उनका समर्थन गोपनीय या साइलेंट नहीं रहता है। फिर भी हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा की आंधी की व्याख्या करने के लिए ओबीसी वोट की गुत्थी को सुलझाने का प्रयास किया जा सकता है। इस पर कल विचार करेंगे। (जारी)