इजराइल और ईरान का युद्ध चल रहा है और दुनिया दो खेमों में बंटी है। एक तरफ इजराइल का समर्थन करने वाले देश हैं तो दूसरी ओर ईरान को हर तरह की मदद मुहैया करा रहे देश हैं। ऐसे ही पिछले महीने भारत और पाकिस्तान के बीच एक सीमित जंग हुई थी, जिसका अचानक 10 मई को पटाक्षेप हो गया था। यह माना जाता है कि आधुनिक समय की लड़ाइयां एक जैसी होंगी और अगर भू राजनीतिक स्थितियां समान हैं तो लड़ाइयों में और भी समानता होती है। लेकिन इन दोनों युद्धों में घनघोर असमानता है। लड़ाई के तौर तरीकों से लेकर, कूटनीति और दुनिया के देशों का रवैया सब अलग है। युद्ध में शामिल देशों की तैयारी, उनका जंग लड़ने का तरीका, युद्ध का मकसद और जंग से प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्य में भी अंतर है। यह अंतर असल में दो देशों, भारत और इजराइल के फर्क को भी दिखाता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि युद्ध हमेशा अंतिम विकल्प होना चाहिए। यानी दूसरे सारे विकल्प समाप्त होने के बाद ही सेना का इस्तेमाल होना चाहिए। लेकिन युद्ध की सर्वोच्च नीति कहती है कि जब युद्ध छिड़े और सेना उतरे तो उसका इस्तेमाल संपूर्ण रणनीतिक व सामरिक स्पष्टता के साथ होना चाहिए। उसका मकसद किसी बड़े लक्ष्य को हासिल करना होना चाहिए। युद्ध छिड़े तो उसका उद्देश्य निर्णायक परिणाम प्राप्त करने का होना चाहिए। युद्ध इसलिए नहीं होने चाहिए कि युद्ध के बाद उसके सहारे राजनीतिक या चुनावी नैरेटिव बनाया जाएगा। युद्ध इसलिए नहीं होते हैं कि उसके बाद नेता सड़कों पर रोड शो करें, राष्ट्रीय झंडा लहराएं और देश के लोगों से वोट मांगें। अफसोस की बात है कि भारत ने सामरिक या रणनीतिक स्पष्टता या स्पष्ट लक्ष्य के साथ युद्ध नहीं शुरू किया था। यह सही है कि पाकिस्तान ने प्रॉक्सी वॉर छेडा है और उसी के तहत आतंकवादियों ने पहलगाम में पर्यटकों पर हमला किया। उसका बदला लिया जाना जरूरी थी। बदला लेने का तरीका क्या हो और कैसे उसमें कामयाबी हासिल हो यह भारत को तय करना था।
लेकिन भारत ने क्या किया? पहले तो भारत ने पाकिस्तान को 15 दिन का समय दिया। युद्ध में सरप्राइज का एलीमेंट सबसे अहम होता है, उसे खत्म कर दिया। प्रधानमंत्री देश में घूम घूम कर कह रहे थे कि आतंकवादियों को ऐसा सबक सिखाएंगे, जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की होगी। उनकी बची खुची जमीन को मिट्टी में मिला देंगे। आदि आदि। जाहिर है इन बयानों से और 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक व 2019 के एयर स्ट्राइक के अनुभव से पाकिस्तान ने अपनी तैयारी की थी। उसका नतीजा यह हुआ कि छह और सात मई की दरम्यानी रात को भारत ने आतंकवादी ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई शुरू की तो पाकिस्तान तैयार था और बिल्कुल शुरुआती हमले में ही उसने भारत के लड़ाकू विमान मार गिराए। कितने विमान गिरे और कितना नुकसान हुआ यह नहीं बताया जा रहा है लेकिन चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने सिंगापुर मे एक इंटरव्यू में माना कि भारत के विमान गिरे। उन्होंने खुद बताया कि उसके बाद भारत ने फिर अपनी तैयारी करके नौ व 10 मई की रात को बड़ा हवाई हमला किया। हर पैमाने पर वह हमला पाकिस्तान की कमर तोड़ने वाला था लेकिन अचानक 10 मई की शाम को पांच बजे सीजफायर का ऐलान हो गया।
सवाल है कि छह और सात मई की रात को जब भारत ने हवाई हमला किया तो उसका क्या लक्ष्य था? क्या वह सिर्फ कुछ आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करना चाहता था? क्या भारत के सामरिक रणनीतिकार और राजनीतिक नेतृत्व यह मान रहा था कि भारत के विमान पाकिस्तान की सीमा में हमला करेंगे और पाकिस्तान चुपचाप देखता रहेगा, कोई प्रतिक्रिया नहीं देगा? अगर ऐसा है तो यह बहुत बड़ी भूल थी। पहली भूल तो यही थी कि जब हवाई हमला हुआ तो उसका लक्ष्य इतना सीमित नहीं होना चाहिए था और दूसरी भूल यह थी कि भारत ने माना कि पाकिस्तान प्रतिक्रिया नहीं देगा। पाकिस्तान की प्रतिक्रिया को ध्यान में रख कर भारत को तैयारी के साथ हवाई हमला करना चाहिए था और हमले का लक्ष्य बड़ा व स्पष्ट होना चाहिए था। इजराइल और भारत के हमले में यह अंतर बहुत स्पष्ट दिख रहा है। इजराइल ने सारी संभावना का आकलन करने के बाद हमला किया है। उसको पता था कि हमास के खिलाफ उसकी लड़ाई चल रही है और हूती व हिजबुल्ला भी हमले के लिए मौका तलाश रहे हैं। फिर भी उसने ईरान को निशाना बनाया, इस लक्ष्य के साथ की उसके परमाणु ठिकानों को नष्ट करना है। इजराइल ने पहले ही हमले में नतांज के परमाणु ठिकानों को पूरी तरह से डैमेज कर दिया, उसके नौ परमाणु वैज्ञानिक मार डाले और 20 सैन्य कमांडर भी मार डाले, जिसमें रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के प्रमुख भी शामिल थे। इजराइल इस्फहान और फोर्डो में ईरान के परमाणु ठिकानों को नुकसान नहीं पहुंचाया पाया क्योंकि उसके पास पहाड़ों में जमीन के अंदर बहुत गहरे तक मार करने की क्षमता नहीं है, लेकिन इसमें अमेरिका उसकी मदद कर रहा है। इजराइल ने ऐलान किया है कि ईरान के सर्वोच्च नेता अय़ातुल्ला खामेनाई की मौत से ही जंग खत्म होगी। क्या ऐसी स्पष्टता या ऐसा लक्ष्य भारत का था?
जहां तक लड़ाई के तौर तरीकों की बात है तो भारत ने शुरुआत में ही बेसिक सिद्धांतों की अनदेखी की। भारत ने पता नहीं कैसे मान लिया कि पाकिस्तान तैयार नहीं होगा या प्रतिक्रिया नहीं देगा। इसके उलट इजराइल को पता था कि ईरान पलटवार करेगा, इसलिए उसने सबसे पहले ईरान के एयर डिफेंस सिस्टम को पंगु किया और बैलेस्टिक मिसाइल लॉन्च करने की उसकी क्षमता को कमजोर किया। तभी पहले हमले में इजराइल के लड़ाकू विमान डेढ़ हजार किलोमीटर दूर जाकर मार करके सुरक्षित वापस लौटे। भारत ने इस बेसिक सिद्धांत की अनदेखी की और पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम को निशाना नहीं बनाया, जिसकी वजह से लड़ाई शुरू होते ही भारत के लड़ाकू विमान मारे गए।
तीन दिन के बाद भारत ने पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम को निशाना बनाया और उसके बाद सबसे मारक हमला किया। इस हमले में भारत की सेना ने जैसे ही निर्णायक बढ़त बनाई वैसे ही अचानक सीजफायर कर दिया गया। इस वजह से भारत को कोई फायदा नहीं मिला। उलटे पाकिस्तान में सेना की जय जयकार हुई। जनरल आसीम मुनीर को फील्ड मार्शल बना दिया गया। भारत अगर दो दिन और हमला जारी रखता तो पाकिस्तान की सैन्य ताकत एक्सपोज होती। उसकी कमजोरी जाहिर होती और जनता की नजर में सेना की साख बिगड़ती। लेकिन भारत ने पता नहीं क्यों बिना कुछ ठोस हासिल हुए सीजफायर कबूल कर लिया!
जहां तक कूटनीति और वैश्विक समर्थन की बात है तो दोनों युद्धों में उसका भी अंतर साफ दिख रहा है। सोचें, कितने संकल्प और प्रतिबद्धता के साथ अमेरिका व जी-7 देशों ने कहा है कि ईरान के पास परमाणु बम नहीं हो सकता है। इजराइल के लिए तो खैर अस्तित्व का सवाल है लेकिन इजराइल के समर्थन में खड़े अमेरिका, यूरोपीय देश और ब्रिटेन ने दो टूक कहा है कि ईरान को परमाणु बम नहीं बनाने देंगे। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान को धमकी दे रहे हैं और तेहरान खाली करने की चेतावनी दे रहे हैं। सिर्फ इसलिए क्योंकि ईरान परमाणु बम बना रहा है। सवाल है कि ऐसा की रवैया पाकिस्तान के प्रति क्यों नहीं अपनाया गया? अमेरिकी अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने एक रिपोर्ट में बताया था कि अमेरिका और चीन दोनों ने पाकिस्तान को परमाणु बम बनाने में मदद की। यानी भारत के साथ बैलेंस के लिए या काउंटरवेट के तौर पर पाकिस्तान को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाया गया और दूसरी ओर ईरान को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनने से रोकने के लिए सारे उपाय किए जा रहे हैं! इतना ही नहीं राष्ट्रपति ट्रंप सक्रिय रूप से पाकिस्तान का बचाव कर रहे हैं।
यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-7 देशों की बैठक में कहा कि आतंकवाद की मदद करने वाले देशों को संरक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया। लेकिन स्पष्ट इशारा पाकिस्तान की ओर था, जिसे अमेरिका संरक्षण दे रहा है और वैश्विक वित्तीय संस्थाओं से मदद दिला रहा है। इसी तरह मोदी ने यह भी कहा कि दुनिया के देशों का रवैया ऐसा जैसे आतंकवाद उनके दरवाजे पर दस्तक देगा तभी वे इसके खतरे को मानेंगे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आतंकवाद पर विश्व बिरादरी का रवैया चुनिंदा है। लेकिन भारत की अपनी तैयारियां, अपने सैन्य अभियान और अपनी कूटनीति भी अधूरी है।


