nayaindia Christmas 2023 रोम का वसंतोत्सव था क्रिसमस त्यौहार ?

रोम का वसंतोत्सव था क्रिसमस त्यौहार ?

विलियम ड्यूरेंट ने यीशु मसीह का जन्म वर्ष ईसापूर्व चौथा वर्ष लिखा है। यह कितनी असंगत बात है कि ईसा का ही जन्म ईसा पूर्व में कैसे हो सकता है? जबकि ईसाई काल गणना यीशु मसीह के जन्म से शुरू होती है, और इनके जन्म से पूर्व के काल को ईसा पूर्व कहते हैं और जन्म के बाद की काल की गणना ईस्वी में की जाती है।।।।

यूरोप, अमेरिका आदि ईसाई देशों की तरह भारत में भी पच्चीस दिसम्बर को क्रिसमस की धूम के मध्य लोग एक- दूसरे को बधाई देना नहीं भूलते, लेकिन क्रिसमस को लेकर लोगों के मन में अनेक भ्रांतियां, अनगिनत प्रश्न और असंगत कथाओं के मध्य यह कौतूहल भी है कि क्रिसमस क्यों मनाया जाता है? लोगों के मध्य यह भ्रम है कि पच्चीस दिसम्बर के दिन यीशु मसीह का जन्मदिन है, परन्तु यीशु से सम्बन्धित साहित्यों के गहन अध्ययन से स्पष्ट है कि 25 दिसम्बर का ईसा मसीह के जन्मदिन से कोई सम्बन्ध ही नहीं है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म 7 ईसा पूर्व से 2 ईसा पूर्व के मध्य 4 ईसा पूर्व में हुआ था।

जीसस के जन्म का वार, तिथि, मास, वर्ष, समय तथा स्थान, सभी बातें अज्ञात है। इसका बाईबल में भी कोई उल्लेख नहीं है। ईसाई जगत यीशु मसीह का जन्मदिन 25 दिसम्बर मानता है, परन्तु विलियम ड्यूरेंट ने यीशु मसीह का जन्म वर्ष ईसापूर्व चौथा वर्ष लिखा है। यह कितनी असंगत बात है कि ईसा का ही जन्म ईसा पूर्व में कैसे हो सकता है? जबकि ईसाई काल गणना यीशु मसीह के जन्म से शुरू होती है, और इनके जन्म से पूर्व के काल को ईसा पूर्व कहते हैं और जन्म के बाद की काल की गणना ईस्वी में की जाती है।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि यीशु मसीह का जन्म 4 ईसा पूर्व में कैसे हुआ? हैरतअंगेज बात यह भी है कि आज सम्पूर्ण विश्व में ईसा का जन्म 25 दिसम्बर को मनाया जाता है और नववर्ष का दिन होता है एक जनवरी। तो क्या ईसा का जन्म ईसवीं सन से एक सप्ताह पहले हुआ? और यदि हुआ तो उसी दिन से वर्ष गणना शुरू क्यों नहीं की गई? यीशु का जन्म कब हुआ, इसे लेकर विद्वान भी एक राय नहीं हैं। कुछ धर्मशास्त्री यीशु का जन्म वसंत में होने का दावा करते हुए कहते हैं कि यीशु से सम्बन्धित साहित्यों में इस बात का उल्लेख है कि जब ईसा का जन्म हुआ था, उस समय गड़रिये मैदानों में अपने झुंडों की देखरेख कर रहे थे। अगर उस समय दिसम्बर की सर्दियां होतीं, तो वे कहीं शरण लेकर बैठे होते। और अगर गड़रिये मैथुनकाल के दौरान भेड़ों की देखभाल कर रहे होते तो वे उन भेड़ों को झुंड से अलग करने में मशगूल होते, जो समागम कर चुकी होतीं। ऐसा होता तो ये पतझड़ का समय होता।

प्राचीन काल में 25 दिसम्बर को मकर संक्रांति अर्थात शीतकालीन संक्रांति पर्व मनाया जाता था और यूरोप-अमेरिका आदि देश धूमधाम से इस दिन सूर्य उपासना करते थे। सूर्य और पृथ्वी की गति के कारण मकर संक्रांति लगभग 80 वर्षों में एक दिन आगे खिसक जाती है। सायनगणना के अनुसार 22 दिसम्बर को सूर्य उत्तरायण की ओर व 22 जून को दक्षिणायन की ओर गति करता है । सायनगणना ही प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है। जिसके अनुसार 22 दिसम्बर को सूर्य क्षितिज वृत्त में अपने दक्षिण जाने की सीमा समाप्त करके उत्तर की ओर बढ़ना आरंभ करता है।

यूरोप शीतोष्ण कटिबंध में आता है इसलिए यहां सर्दी बहुत पड़ती है। जब सूर्य उत्तर की ओर चलता है, यूरोप उत्तरी गोलार्द्ध में पड़ता है तो यहां से सर्दी कम होने की शुरुआत होती है, इसलिए यहां लोग 25 दिसम्बर को मकर संक्रांति मनाते थे। विश्व-कोष में दी गई जानकारी के अनुसार सूर्य-पूजा को समाप्त करने के उद्देश्य से क्रिसमस डे का प्रारम्भ किया गया। सबसे पहले 25 दिसम्बर के दिन क्रिसमस का त्यौहार ईसाई रोमन सम्राट के समय में 336 ईस्वी में मनाया गया था। इसके कुछ वर्ष बाद पोप जुलियस ने 25 दिसम्बर को ईसा मसीह के जन्म दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी, तब से दुनिया भर में 25 दिसम्बर को क्रिसमस का त्यौहार मनाया जाता है।

उल्लेखनीय है कि यीशु मसीह अपने जीवन के कुछ काल तक गुप्त अवस्था में रहे। यीशु के जीवन वृत्त के कुछ हिस्से गायब रहने अर्थात इतिहास में उस काल का कोई उल्लेख नहीं होने से भी इस बात की पुष्टि होती है कि यीशु अज्ञातवास में चले गये थे और यीशु के अज्ञातवास के काल का ईसाई साहित्य में कोई उल्लेख नहीं है। बाईबल में भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि यीशु मसीह 13 वर्ष से 29 वर्ष की उम्र के बीच कहाँ रहे?

लेकिन भारतीय इतिहास के तत्कालीन पृष्ठों के समीचीन अध्ययन और कतिपय विद्वानों के लेखों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि यीशु के 13 से 29 वर्ष का समय दक्षिण एसिया में व्यतीत होने की मान्यता भी है। और यीशु ने कश्मीर में साधना की बाद में वे रोम चले गये तो वहाँ उनके स्वागत में पूरा रोम शहर सजाया गया और मेग्डलेन नाम की प्रसिद्ध वेश्या ने उनके पैरों को इत्र से धोया और अपने रेशमी लंबे बालों से यीशु के पैर पोछे थे।

बाद में उनको सूली पर चढ़ा दिया गया तब पूरा रोम शहर उनके खिलाफ था। रोम शहर में से केवल 6 व्यक्ति ही उनके सूली पर चढ़ने से दुःखी थे। एक नए शोध के अनुसार यीशु ने उनकी शिष्या मेरी मेग्डलीन से विवाह किया था, जिनसे उनको दो बच्चे भी हुए थे। कुछ पुराने  दस्तावेज में दावा किया गया है कि ईसा मसीह ने ना सिर्फ मेरी से शादी की थी बल्कि उनके दो बच्चे भी थे। साहित्यकार और वकील लुईस जेकोलियत ने 1869 ईस्वी में अपनी एक पुस्तक द बाइबिल इन इंडिया में कृष्ण और क्राइस्ट पर एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए कहा है कि क्राइस्ट को जीसस नाम भी उनके अनुयायियों ने दिया है।

इसका संस्कृत में अर्थ होता है मूल तत्व। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कृष्ण को क्रिसना ही कहे जाते देख लुईस के इस विचार की पुष्टि ही होती है। यह क्रिसना ही यूरोप में क्राइस्ट और ख्रिस्तान हो गया। बाद में यही क्रिश्चियन हो गया। एक रूसी अन्वेषक निकोलस नोतोविच के द्वारा भारत में कुछ वर्ष रहकर प्राचीन हेमिस बौद्ध आश्रम में रखी पुस्तक- द लाइफ ऑफ संत ईसा- पर आधारित फ्रेंच भाषा में लिखी गई द अननोन लाइफ ऑफ जीजस क्राइस्ट नामक पुस्तक में भी ऐसी कई मान्यताओं का उल्लेख है।

अमृता प्रीतम के द्वारा लिखी गई पुस्तक के अनुसार फिफ्त गॉस्पल फिदा हसनैन और देहन लैबी द्वारा लिखी गई एक किताब है। इस किताब के अनुसार 13 से 29 वर्ष की उम्र तक ईसा भारत भ्रमण करते रहे। इस किताब में कुँवारी माँ से जीजस का जन्म और मृत्यु के बाद पुनर्जीवित हो जाने वाले चमत्कारी मसलों पर भी ईसाई जगत की मान्यता के विरूद्ध विचार किया गया है। एक डोक्युमेंट्री जीसस वाज ए बूद्धिस्ट मोंक यीशु को सूली पर चढ़ते हुए नहीं दिखाया गया था। डॉक्युमेंट्री के अनुसार जब वह 30 वर्ष के थे तो वह अपनी पसंदीदा जगह वापस चले गए थे। यीशु मसीह की मौत नहीं हुई थी और वह यहूदियों के साथ अफगानिस्तान चले गए थे।

रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय लोगों ने इस बात की पुष्टि की कि यीशु मसीह की मौत नहीं हुई थी और वह यहूदियों के साथ अफगानिस्तान चले गए थे। यीशु मसीह ने कश्मीर घाटी में कई वर्ष व्यतीत किए थे और 80 की उम्र तक वहीं रहे। इस प्रकार यीशु मसीह 16 वर्ष किशोरावस्था में और जिंदगी के आखिरी 45 वर्ष कुल 61 वर्ष भारत, तिब्बत और आस-पास के इलाकों में व्यतीत किए।

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें