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कांग्रेस सुधरे, ‘इंडिया’ में सही सीट शेयरिंग हो तभी…

2024 लोकसभा कांग्रेस के लिए आखिरी मौका है। मैच अभी भी गया नहीं है। हाथमें है। बेरोजगारी, महंगाई, सरकारी शिक्षा, चिकित्सा आज भी बड़े इश्यू हैं। अगर इन्हें लेकर एक सीट पर एक लड़ लिए तो मोदी जी के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी। हिन्दू-मुसलमान कुछ नहीं चलेगा। बस सीट शेयरिंग इस भावना से हो जाए कि हमारी जैसे भी हो सीटें आए तो लड़ाई कांटे की हो सकती है। ….दस साल हो गए लेकिन कांग्रेस अपनी कमियां खोजने में पूरी तरह असफल रही। और दस साल क्याकांग्रेस का पतन 2012 से शुरू हो गया था।

दो तरीके होते हैं। एक बहुत सारे विकल्पों में बेहतरीन चुनना। दूसरा बहुतसारे विकल्पों में से कोई चुनना और उसे बेहतरीन प्रचारित करवा देना। मोदीजी राजनीति में दूसरा तरीका अख्तियार करते हैं। और कांग्रेस? वह बहुत सारे विकल्पों के बारे में देखती ही नहीं है। अपनीपूर्व धारणा के अनुसार पहले से चयनित किए व्यक्ति थोप देती है। मध्य प्रदेश में मोहन यादव या उससे पहले छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय परकांग्रेस या राजनीतिक पर्यवेक्षक चाहे जितनी नाक भों सिकोड़ लें मगर उससेमोदी जी के सेहत पर क्या फर्क पड़ता है? उन्होंने अपने पैमानों से अपना मुख्यमंत्री चुना है। या पैमाना भी किसी को अनावश्यक लग रहा हो तो अपनीमर्जी से। जब उनके पास ताकत है तो वह उसे क्यों नहीं बताएंगे?

भारत में जनता हमेशा से ताकतवर नेता चाहती है। इस आधार पर क्या कभी जनताको मोदी की आलोचना करते देखा है? इससे पहले उन्होंने महाराष्ट्र मेंदेवेन्द्र फड़नवीस, हरियाणा में खट्टर, झारखंड में रघुवर दास, उत्तराखंडमें हारने के बाद भी धामी और भी जहां जिस पद पर चाहा अपने आधार परव्यक्ति को बिठाया। क्या इससे वे कमजोर हुए?

दूसरी तरफ आप इस तरह देखिए कि अगर कांग्रेस छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश,राजस्थान जीत जाती, जो वह जीत ही रही थी, खुद ही अपनी गलतियों से हारी हैतो क्या वहां किसी नए को मुख्यमंत्री बनाने के बारे में सोच भी सकती थी।कमलनाथ ने खुद को भावी मुख्यमंत्री अनाउंस कर दिया था। बीच चुनाव में कहाकि प्रभारी जयप्रकाश अग्रवाल को हटाओ। वे आधी आधी रात तक घर जाकरकार्यकर्ताओं से मिलते हैं उन्हें सक्रिय कर रहे हैं यह सब ठीक नहीं है।और कांग्रेस ने उन जैसे वरिष्ठ नेता को बिना व्यक्तिगत रूप से सूचित किएएक प्रेस नोट के माध्यम से जिम्मेवारी से हटा दिया।

अब कोई कमलनाथ से पूछे कि अगर जयप्रकाश अग्रवाल ही रहते तो क्या हार इससेबड़ी हो जाती? छतीसगढ़ में भी उससे थोड़े पहले पीएल पुनिया को हटाया गयाथा। कुमारी शैलजा को बनाया गया था। ऐसे ही राजस्थान में अजय माकन कोहटाकर सुखजिंदर सिंह रंघावा को बनाया गया था। अगर परिवर्तन के परिणामअच्छे निकलते तब तो कोई बात होती। मगर जब परिवर्तन ही बिना सही तरीके सेसोचे, ग्राउन्ड की स्थितियों को मालूम किए होते हैं तो वह उल्टे परिणामही देते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना होती है। होना चाहिए। मगर उसका कोई उद्देश्यभी होना चाहिए। खासतौर से राजनीतिक दलों के लिए। राजनीतिक पर्यवेक्षक,लेखक, पत्रकार सैद्धांतिक आधारों पर बात करते हैं। कर सकते हैं। करना चाहिए।बड़े उसूलों के लिए, आदर्शों के लिए करते हैं। लोकतंत्र, तानाशाही,विभाजन की राजनीति नफरत के खिलाफ लिखते हैं। सही है। उनका काम है जनता कोलगातार जागरूक करते रहना। संवैधानिक मूल्यों पर हो रही चोटों से जनता कोअवगत कराना। देश और समाज को खोखला होने से बचाना। वे लिख सकते हैं। लिखरहे हैं। बोल रहे हैं।

मगर क्या विपक्ष का काम भी बिल्कुल ऐसा ही है? नहीं। उसे डेंट करना होताहै। चोट पहुंचाना। सत्ता पक्ष के उन पहलूओं पर हमला करना जिससे जनताउत्साहित हो। जनता को लगे कि उसकी बात है। उसे फायदा हो रहा है। सत्तापक्ष का एजेंडा ध्वस्त करना और अपने अजेडें पर जनता को लाना।

कांग्रेस फिलहाल इसमें सफल नहीं हो रही है। वह मोदी के एजेंडे में ही उलझजाती है। मुख्यमंत्री वे कहां से निकालकर लाए इस पर जनता नकारात्मक ढंग सेनहीं सोच रही है। मगर कांग्रेस इसमें उलझकर मुख्यमंत्रियों पर जितनी बातकरेगी वह सब व्यर्थ जाएगी। मुद्दा कोई गलत नहीं है। मगर समय सही नहीं है। यहऐसा ही है जैसे इन सर्दियों में आप एसी कौन सा ज्यादा ठंडा करता है, इसकीबात करो। कोई नहीं सुनेगा। घर वाले भी नहीं। आप चाहे जितने बड़े एसीएक्सपर्ट बने रहो। मगर हीटर की बात करेंगे। तो भीड़ जुड़ने लगेगी। कश्मीर में एसी की बात करने वाले स्पेशलिस्ट से ज्यादा बात उस अर्द्ध ज्ञानी कीसुनी जाती है जो हीटर, कांगड़ी, बुखारी की बात करता है।

दस साल हो गए लेकिन कांग्रेस अपनी कमियां खोजने में पूरी तरह असफल रही। और दससाल क्या?  कांग्रेस का पतन 2012 से शुरू हो गया था। इसलिए समीक्षा कालवहीं से रखना चाहिए। जब एक नकली आंदोलन ने कांग्रेस की सरकार और संगठनदोनों के हाथ पांव ढीले कर दिए थे। उस आंदोलन के लिए अन्ना, केजरीवाल या संघ को कोसने से क्या फायदा? वे तो सफल थे। सरकार बदल दी। सवाल तो उनसेहोना चाहिए थे जो सरकार और संगठन में थे। उन्होंने क्या किया?  औरकांग्रेस ने कभी पूछा भी नहीं।

पी चिदंबरम गृह मंत्री थे। राहुल ने 7-8साल पहले कुछ पत्रकारों के साथ मुलाकात में जिसमें हम भी थे, कहा था किचिदम्बरम हमारे सबसे इन्टेलिजेन्ट नेताओं में हैं। वहीं चिदंबरम हाल में प्रणवमुखर्जी की राजनीति में असफल बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी की उस किताब केविमोचन में मौजूद थे जिसमें राहुल पर कटाक्ष और मजाक और सोनिया के खिलाफलिखी गई है। यहां यह भी याद दिला दें कि चिदंबरम जब तिहाड़ में थे तब सोनिया गांधी,  मनमोहन सिंह को लेकर उनसे मिलने गईं थीं।

सो इन कांग्रेसियों का क्या इलाज है? और क्या इनसे पार्टी को फायदा है।सोचने की बात यह है। कांग्रेसी अभी क्या कर रहे हैं? नकल! सोशल मिडिया परजिस तर्ज पर मोदी पर लिखा जाता है उसी भाषा शैली में उनकी आलोचना। सोशलमीडिया के मुद्दों से राजनीति प्रभावित होगी या राजनीति अपने मुद्दों कोसोशल मीडिया, पब्लिक डिस्कोर्स में लाएगी? कांग्रेस यह तक भूल गई।

भक्त कांग्रेस में भी हैं। और निसंदेह भाजपा के भक्तों से ज्यादा बेवकूफ। वेसत्ता में हैं। उस सत्ता का विरोध करने वालों का हौसला तोड़ने के लिएअटैक करते हैं। यहां तो केवल अर्थहीन गाली गलौज। किस के बारे में क्याबोल रहे हैं। कुछ नहीं मालूम। बस थोड़ा सा कुछ नया सा लिख दें।

नेतृत्वहीन फौज की तरह जहां मन आए घुस जाओ। वहां तो एक पूरा आईटी सेल है।जो नियोजित है। कांग्रेस का सोशल मीडिया उसके सामने पूरी तरह फेल है।मगर उससे भी ज्यादा खराब बात यह है कि उसका लिखा अधकचरा नेता लोगराजनीतिक बयान में यूज कर रहे हैं। कांग्रेस की बौद्धिक क्षमता तो हमेशासे दक्षिणपंथियों के मुकाबले उच्च स्तर की रही है। मगर वह भी दोयम, औसत दर्जे के लोगों के हाथों में आ गई है। इसलिए वे वहां मोदी पर अटैककरते हैं जहां उन पर कोई प्रभाव पड़ता ही नहीं है। उन्हें मुख्यमंत्रीचुनने में आठ दिन हो जाएं, दस दिन हो जाएं जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता।किसे मुख्यमंत्री बनाया इससे भी नहीं। हर बात हर एक पर नहीं चिपकती है।

कांग्रेस के पास अभी एक कार्ड बचा हुआ है। खडगेजी की नई टीम अभी नहींबनी है। सही मौका है। सब नाकारा लोगों को निकाल कर बाहर करने का। नए औरकाम करने वाले लोगों को लाने का। राहुल, प्रियंका और खरगे याद रखें कि नएलोग उतना नुकसान नहीं करेंगे जितना पुराने कर चुके हैं। 2012 से अब तक।नए जो भी करेंगे कांग्रेस को फायदा ही होगा।

इन्डिया गठबंधन उसकी बड़ी ताकत है। उसमें ध्यान लगाएं। प्रेसकान्फ्रेंस करने से कुछ नहीं होगा। कांग्रेसियों ने रिकार्ड प्रेसकान्फ्रेंसें की हैं। चुनाव के दौरान राज्य के नेताओं को दूसरे जरूरी कामछोड़कर दिल्ली से जाने वाले इन कांग्रेसियों की प्रेस कान्फ्रेंस केइंतजाम में जुटना होता था। सबको बढ़िया होटल, बड़ी कार और साथ में रहनेके लिए वरिष्ठ आदमी चाहिए होते थे। जाने कितने पदाधिकारी, आब्जर्वर,कोआर्डिनेटर इन तीन राज्यों में घूमते रहते थे। प्राइवेट जहाजों से। दोकौड़ी का काम नहीं और नुकसान मनों का!

2024 लोकसभा कांग्रेस के लिए आखिरी मौका है। मैच अभी भी गया नहीं है। हाथमें है। बेरोजगारी, महंगाई, सरकारी शिक्षा, चिकित्सा आज भी बड़े इश्यू हैं।अगर इन्हें लेकर एक सीट पर एक लड़ लिए तो मोदी जी के लिए बहुत मुश्किल होजाएगी। हिन्दू-मुसलमान कुछ नहीं चलेगा। बस सीट शेयरिंग इस भावना से होजाए कि हमारी कितनी सीटें आ रहीं है, यह मायने नहीं रखता उन्हें हराना है।

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By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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