मोदी सरकार में और कुछ तय हो या ना हो, मौत के आँकड़े कभी सटीक नहीं मिल सकते हैं| केंद्र सरकार के ही अलग-अलग मंत्रालय एक ही विषय पर बिल्कुल अलग जानकारी देते हैं, और संसद में कुछ और बताया जाता है| यही हाल प्राकृतिक आपदाओं में मरने वालों के आँकड़े का है| आश्चर्य यह है कि प्राकृतिक आपदा प्रबंधन केंद्र सरकार के अंतर्गत आता है, पर 1 अप्रैल 2025 को लोकसभा में अतारांकित प्रश्न 4962 के लिखित जवाब में गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था, यह मंत्रालय भूस्खलन सहित किसी भी आपदा के कारण मृत्यु/गुमशुदगी व्यक्तियों का डेटा केंद्रीयकृत रूप में नहीं रखता है| दूसरी तरफ इसी मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले, नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो, ने वर्ष 2023 तक लगातार “भारत में आकस्मिक मौतें और आत्महत्याएं” नामक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों पर एक अलग से तालिका रहती थी|
जनवरी 2025 के शुरू में ही भारतीय मौसम विभाग ने वर्ष 2024 के संदर्भ में वार्षिक क्लाइमेट समरी प्रकाशित किया था, जिसके अनुसार वर्ष 2024 में चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण देश में 3201 लोगों की असामयिक मृत्यु हुई थी| इसमें सबसे अधिक 1373 मौतें बिजली गिरने के कारण, 1282 मौतें बाढ़ के कारण, 459 मौतें लू लगने के कारण या अत्यधिक तापमान के कारण, 70 मौतें चक्रवातों के कारण और 17 मौतें अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण दर्ज की गईं| चरम प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों के संदर्भ में सबसे अधिक प्रभावित राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, केरल और तेलंगाना थे|
इसके बाद 5 जून 2025 को भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय ने पर्यावरण से संबंधित विषयों का सांख्यिकीय विश्लेषण, एनवीस्टैट इंडिया 2025, प्रस्तुत किया| इसके अनुसार वर्ष 2024 में चरम प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से देश में 3080 मौतें हुई हैं| इस रिपोर्ट में वर्षवार मनुष्य की मौतों के साथ ही मवेशियों की मृत्यु, बाढ़ से मकानों की क्षति और खड़ी फसल की बर्बादी के भी आँकड़े प्रस्तुत हैं| वर्ष 2023 की तुलना में वर्ष 2024 में मानव मृत्यु, मकानों की क्षति और खड़ी फसल की बर्बादी के आँकड़े बढ़े पर मवेशियों की मृत्यु के संदर्भ में अप्रत्याशित कमी दर्ज की गई| इस रिपोर्ट के अनुसार भी मानव मृत्यु के संदर्भ में सबसे घातक आकाशीय बिजली है, जिससे हरेक वर्ष सबसे अधिक मौतें होती हैं|
वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान
वर्ष | मानव मृत्यु
(संख्या) |
मवेशियों की मृत्यु
(संख्या) |
मकानों की क्षति
(संख्या) |
खड़ी फसल का क्षेत्र
(हेक्टेयर में) |
2020-2021 | 1989 | 51195 | 185141 | 68.57 |
2021-2022 | 1593 | 44346 | 709060 | 43.80 |
2022-2023 | 1586 | 29267 | 301873 | 18.42 |
2023-2024 | 2616 | 119683 | 140834 | 13.39 |
2024-2025 | 3080 | 61960 | 364124 | 14.24 |
वर्ष 2019 से 2022 तक आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली मौतें
वर्ष | आकाशीय बिजली से मौतें
(संख्या) |
कुल मौतों में आकाशीय बिजली से मौतों का प्रतिशत |
2019 | 2876 | 35.30 |
2020 | 2862 | 38.65 |
2021 | 2880 | 40.42 |
2022 | 2887 | 35.82 |
इसी विषय पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने भी लोकसभा में 11 दिसम्बर 2024 को एक लिखित जवाब दिया था| इसके अनुसार चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण वर्ष 2019, 2020, 2021, 2022 और 2023 में क्रमशः 3017, 2514, 1944, 2767 और 2483 व्यक्तियों की मृत्यु हुई|
सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2019 से 2023 के बीच के 5 वर्षों के दौरान चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण केवल 10206 लोगों की मौत हुई, यानि प्रति वर्ष मौत का औसत 2041 रहा| लोक सभा में डॉ जितेंद्र सिंह के लिखित वक्तव्य के अनुसार इन्हीं 5 वर्षों के दौरान प्राकृतिक आपदाओं में जान गवाने वालों की कुल संख्या 12725 रही, यानि सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों से 2519 अधिक, और प्रति वर्ष औसत रहा 2545|
सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 से 2013 के बीच चरम प्राकृतिक आपदाओं में मरने वालों का वार्षिक औसत 2318 था, जबकि वर्ष 2014 से 2014 के बीच यह औसत 2001 है, यानि हरेक वर्ष औसतन 317 मौतें कम दर्ज की गईं हैं| सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट में बताया गया है कि प्राकृतिक आपदाओं के संदर्भ में वर्ष 2023 की तुलना में वर्ष 2024 में 18 प्रतिशत अधिक मौतें हुईं और यह संख्या पिछले 11 वर्षों में सर्वाधिक है|
इन आंकड़ों के अतिरिक्त गृह मंत्रालय के अंतर्गत नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्युरो भी वर्ष 2022 तक के पर्यावरण आपदाओं में मृत्यु से संबंधित आँकड़े प्रस्तुत करता रहा है| इसके आँकड़े सांख्यिकी मंत्रालय और आइएमडी की तुलना में कई गुना अधिक होते हैं| यदि वर्ष 2019, 2020, 2021 और 2022 की बात करें तो इन वर्षों में एनसीआरबी के आँकड़े क्रमशः 8145, 7405, 7126 और 8060 हैं|
सरकारी आंकड़ों की विश्वसनीयता पर भी लगातार सवाल उठते रहे हैं| प्राकृतिक आपदा से असामयिक मृत्यु के आंकड़ों में भयानक गर्मी से मरने वालों की संख्या शामिल नहीं है| प्रधानमंत्री मोदी क्लाइमिट रिज़िलियेन्स की बातें तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खूब करते हैं, पर अत्यधिक गर्मी को देश प्राकृतिक आपदा मानता ही नहीं है| पिछले 2-3 वर्षों से देश में गर्मी के सारे रिकार्ड ध्वस्त होते जा रहे हैं, अत्यधिक गर्मी से स्कूलों को भी बंद कर दिया जाता है, पर सरकारी फ़ाइलों में यह आपदा नहीं है| भयानक गर्मी से मरने वालों की संख्या भी साल-दर-साल बढ़ जाती है|
तमाम विशेषज्ञ गर्मी से मरने वालों की सरकारी संख्या पर भी प्रश्न उठाते रहे हैं| वर्ष 2024 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार अत्यधिक गर्मी से पूरे देश में 360 मौतें दर्ज की गईं| दूसरी तरफ हीटवाच नामक अंतराष्ट्रीय संस्था के अनुसार मरने वालों वास्तविक संख्या दुगुनी से भी अधिक, 733, है| उत्तर प्रदेश में तो लोकसभा चुनावों के दौरान ही चुनाव से जुड़े 33 अधिकारियों की मृत्यु दो दिनों के भीतर ही दर्ज की गई थी| हेल्थवाच के अनुसार सबसे अधिक 205 मृत्यु उत्तर प्रदेश में, दिल्ली में 193 और ओडिसा में 110 लोगों की असामयिक मृत्यु हुई थी|
विशेषज्ञों के अनुसार जितने लोगों को लू लगती है, उनमें से 20 से 30 प्रतिशत की असामयिक मृत्यु हो जाती है, पर सरकारी आंकड़ों में यह अनुपात महज 0.3 प्रतिशत का रहता है| जिस समय सरकारी आंकड़ों में गर्मी से मरने वालों का आंकड़ा 110 था, उस दौर में लू से प्रभावित लोगों की संख्या 40000 से भी अधिक थी|
एक ही दौर के अलग-अलग सरकारी विभागों के आँकड़े भी बिल्कुल अलग होते हैं| मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइन्सेज के अनुसार वर्ष 2009 से 2022 के बीच देश में गर्मी से मरने वालों की संख्या 6751 थी, जबकि नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने यह संख्या 11090 बताई थी| हरेक वर्ष प्रकाशित नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्युरो भी गर्मी से मरने वालों का वार्षिक आंकड़ा प्रकाशित करता है, इसके अनुसार वर्ष 2009 से 2022 के बीच देश में गर्मी से 15020 व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु दर्ज की गई|
देश में हरेक वर्ष आपदा से होने वाले नुकसान का पैमाना बढ़ता जा रहा है और मोदी सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही है| आपदा के प्रबंधन के नाम पर बस मुवावजा का प्रावधान है, आपदा के प्रभावों को काम करने की कोई योजना नहीं है| जलवायु परिवर्तन पर तो प्रधानमंत्री मोदी खूब बोलते हैं, स्वयं को विश्वगुरु बताते हैं पर अत्यधिक गर्मी को प्राकृतिक आपदा स्वीकार नहीं करते| अत्यधिक गर्मी के साथ ही देश में आकाशीय बिजली गिरने से मरने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है और प्रधानमंत्री आपदा में अवसर तलाश रहे हैं|