nayaindia Five state assembly election जीत हार जो भी हो मोदीजी की होगी

जीत हार जो भी हो मोदीजी की होगी

भाजपा और उसका समर्थक मीडिया पहले से ही कहानी बनाने लगा है। ताकि 2024के चुनाव में फ्रेश मोदी जी को पेश किया जा सके। मोदी जी और मीडिया को अभी भी यह भरोसा है कि नरेटिव, परसपेक्शन ( कहानी, छवि ) ही असली चीज है।और सच्चाई कोई पढ़ना नहीं चाहता। मोदी जी का कद बहुत बड़ा है और विधानसभा चुनाव बहुत छोटे हैं इसलिए इसके नतीजों से मोदी जी के प्रभाव का आकलन नहीं हो सकता।…अच्छी रणनीति है! बड़ा खिलाड़ी बड़ा मैच ही जीतेगा। लेकिन वे यह भूल गए कि दूसरा भी बड़ा नहीं बहुत बड़ा खिलाड़ी बन चुका है। और साथ ही सबको लेकर चल रहा है। हिमाचल, कर्नाटक जीतकर बने माहौल को और बढ़ा रहा है।

यह वसुंधरा, शिवराज, रमन सिंह का चुनाव नहीं प्रधानमंत्री मोदी और अमितशाह का है। उधर कांग्रेस में यह राहुल, खरगे और प्रियंका गांधी के साथकमलनाथ, दिग्विजय, बघेल,गहलोत, सचिन, सब का मिला जुला प्रयास है।मगर अब खेल बदलने की कोशिश की जा रही है। कहा जा रहा है कि ये चुनाव अगरभाजपा हार भी जाए तो अगले साल होने वाला लोकसभा का चुनाव मोदी जी ही जीतेंगे।

इसके दो अर्थ हैं। एक पांच राज्यों के चुनाव भाजपा हार रही है।दूसरे भाजपा और मोदी अलग अलग हैं। मतलब मोदी भाजपा से बड़ी कोई पारलौकिकताकत हैं। जिन पर इन विधानसभा चुनावों के परिणामों का कोई असर नहीं होगा।वे लोकसभा के लिए हैं। और वहां उन्हें कोई नहीं हरा सकता।

तो पहली बात कि अगर यह मान लिया कि भाजपा हार रही है तो कांग्रेस जीत रहीहै! भाजपा का दांव तो तीन ही राज्यों में है मगर कांग्रेस तो पांचोंराज्यों में लड़ रही है। और पांचों में सरकार बनाने का दावा कर रही है।एक राज्य मिजोरम में तो प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह गए तक नहीं। साढ़े9 सालों में यह पहला चुनाव ऐसा है जिसमें किसी राज्य में चुनाव हों औरमोदी और शाह नहीं गए हों।

मगर बाकी चार राज्यों और खास तौर से राजस्थान जहां अभी चुनाव होना है, केसाथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का चुनाव तो मोदी और शाह ने ही लड़ा। वहांकिसी राज्य के नेता का नाम नहीं लिया गया। और मोदी के नाम पर वोट मांगेगए। मगर जिस तरह के चुनाव पूर्व सर्वे आ रहे हैं, माहौल है उसे देखते हुएलग रहा है कि कांग्रेस का यह नया प्रयोग कि केन्द्र के नेताओं के साथराज्य के नेताओं को भी जोड़कर चलो सफल हो रहा है।

उधर मोदी का मैं ही सब कुछ करता हूं का सिलसिला अब टूट रहा है। मोदी नेएक तिलिस्म रचा था। 56 इंच की छाती, लाल आंखे, विश्व गुरु मगर देश मेंबढ़ती बेरोजगारी, महंगाई, मणिपुर में कुछ न कर पाने की असमर्थता, यहां तककि अपने सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह पर भी महिला पहलवानों के यौन शोषण केमामले में अदालत में चालान पेश होने के बावजूद कोई कार्रवाई न कर सकने सेउनका तिलिस्म टूटने लगा है।

यह विधनसभा चुनाव वाटरलू साबित हो सकते हैं। इसलिए भाजपा ने और उसकेसमर्थित गोदी मीडिया, भक्तों ने गोल पोस्ट बदल दिया है। अपना स्टेंड चेंजकर दिया है। अब कहने लगे हैं कि ये विधानसभा चुनाव मोदी की लोकप्रियता काइम्तहान नहीं हैं। उनका मैदान तो लोकसभा चुनाव है। वहां वे जीतेंगे।

लेकिन अगर उनके इस तर्क को मान लिया जाए तो फिर चुनावी राज्यों में वेमुख्य और एकमात्र चेहरा क्यों थे?  राजस्थान में वहां की भाजपा की सबसेलोकप्रिय नेता वसुंधरा राजे को किनारे क्यों किया गया। केवल इसलिए ना किवहां मोदी का चेहरा अकेला चमके। वसुधंरा के चेहरे में अभी इतनी दमक बचीहुई है कि अगर वह साथ होतीं तो मोदी की चमक चाहे कम नहीं करतीं मगर अपनारंग भी साथ दिखातीं। मोदी को शायद यह मंजूर नहीं था। अपने साथ किसी और को मंच शेयर नहीं करासकते। जैसे एक फिल्म आई थी संजीव कुमार की जिसमें वे 9 रुपों में थे।वैसे ही बीजेपी में हर रूप में मोदी जी हैं। उनकी फिल्म में किसी और केलिए कोई चांस नहीं है।

मध्यप्रदेश में तो 18 साल के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम तकवे किसी सभा में नहीं लेते थे। मोदी ने मध्य प्रदेश के लोगों के नामचिट्ठी लिखी। कहा गया कि मोदी के मन में मध्य प्रदेश! लेकिन अब वहांमतदान हो जाने और उसकी समीक्षा हो जाने के बाद कहा जा रहा है कि जितनीसीटें आएंगी मोदी जी की वजह से बाकी लोग शिवराज का चेहरा देखते देखतेउकता गए थे। अगर मोदी जी इतनी मेहनत नहीं करते तो इससे भी बुरी स्थितिहोती।

भाजपा और उसका समर्थक मीडिया पहले से ही कहानी बनाने लगा है। ताकि 2024के चुनाव में फ्रेश मोदी जी को पेश किया जा सके। मोदी जी और मीडिया कोअभी भी यह भरोसा है कि नरेटिव, परसपेक्शन ( कहानी, छवि ) ही असली चीज है।और सच्चाई कोई पढ़ना नहीं चाहता। जनता को हमेशा नकली मुद्दों में उलझाया रखा जा सकता है। हिन्दू मुसलमान चलेगा, चाहे साढ़े 9 साल से हमारी सरकारहो मगर कांग्रेस पर सवाल चलेंगे। बेरोजगारी, महंगाई, सरकारी स्कूल,अस्पताल से जनता को कोई मतलब नहीं है। मोदी जी का कद बहुत बड़ा है औरविधानसभा चुनाव बहुत छोटे हैं इसलिए इसके नतीजों से मोदी जी के प्रभाव काआकलन नहीं हो सकता।

अच्छी रणनीति है! बड़ा खिलाड़ी बड़ा मैच ही जीतेगा। लेकिन वे यह भूल गएकि दूसरा भी बड़ा नहीं बहुत बड़ा खिलाड़ी बन चुका है। और साथ ही सबकोलेकर चल रहा है। हिमाचल, कर्नाटक जीतकर बने माहौल को और बढ़ा रहा है। केन्द्र में उसे अध्यक्ष के तौर खरगे जी अनुभव के साथ चुनावी सभाओं मेंप्रभाव पैदा करने वाले एक नए सहयोगी के रूप में मिल गए गए हैं। दूसरी तरफबहन प्रियंका की करिश्माई छवि हिमाचल के बाद से और निखरती जा रही है। खुदउनकी इमेज भारत जोड़ो यात्रा के बाद से पूरी तरह बदल गई है। और लोकसभा के लिए विपक्षी एकता हो गई है। जो इन विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बादऔर मजबूत हो जाएगी।

तो यह दूसरा बड़ा खिलाड़ी राहुल गांधी इन पांच राज्यों के विधानसभाचुनावों से और ताकतवर होकर निकल रहा है। साथ में सबसे अच्छी बात यह है किदो सहयोगी केन्द्र में खरगे जी और प्रियंका और राज्यों में वहां के नेतासब साथ काम कर रहे हैं। यह टीम वर्क भाजपा में नहीं है। जब तक मोदी जीमें अकेले दम पर भाजपा को जिताने की क्षमता थी जीतें मिल रहीं थीं। लेकिनअब दूसरी टीम भी मजबूत हुई है और मोदी जी का फार्म गायब हो रहा है।

लोग हिन्दू मुसलमान नहीं सुन रहे। वे रोजी रोटी की बात कर रहे हैं। धर्मका नशा पीकर खुद पड़े रहने का परिणाम उन्हें दिखने लगा है। बच्चों काभविष्य बर्बाद हो रहा है। नौकरी नहीं मिल रही। रोजगार का कोई और साधननहीं है। जिनके बच्चे छोटे हैं उनको अब यह दिखने लगा है कि सरकारी स्कूलकिस तरह खत्म किए जा रहे हैं। टीचर ही नियुक्त नहीं किए जा रहे। बिहारमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने एक लाखसे ऊपर सरकारी शिक्षक नियुक्त करके भाजपा शासित सभी राज्यों और केन्द्रसरकार को बता दिया कि सरकार चाहे तो क्या नहीं कर सकती है?

अब स्टेंड शिफ्ट करने से कुछ होने वाला नहीं है। मैसेज जा चुका हैविधानसभा के यह चुनाव मोदी जी ने वैसे ही लड़े जैसे पिछले हिमाचल औरकर्नाटक के लड़े थे। वहां की हार भी उतनी ही उनकी थी जितनी उससे पहले जीते चुनावों की जीत उनकी थी। सब कहते हैं, मानते हैं कि 2014 का लोकसभाचुनाव और उसके बाद का हर चुनाव मोदी जी का चुनाव था। अब यह चुनाव वसुंधरा, शिवराज और रमन सिंह के नहीं हो सकते। जीत हार जो भीहोगी मोदी जी की होगी।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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