sarvjan pention yojna
maiya samman yatra

ओलंपिक मेजबानी के दावे से पहले मंथन जरूर करें

ओलंपिक मेजबानी के दावे से पहले मंथन जरूर करें

ग्वांगझाऊ एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के रिकर्डतोड प्रदर्शन से उत्साहित उड़न परी और  राज्यसभा सांसद पीटी ऊषा ने अति उत्साह में पड़कर सरकार के 2036 के प्रस्ताव का समर्थन किया है। ऊषा का मानना है कि उनकी  सरकार खेलों के प्रोत्साहन के लिए प्रयासरत है, जिसका नतीजा सामने है। एक एशियाड में चार ट्रैक एंड फील्ड गोल्ड जीतने वाली  और भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष  को विश्वास है कि भारत पेरिस ओलंपिक में टोक्यो से अधिक पदक जीतेगा।

बेशक, ऊषा के दावे को हर तरफ से समर्थन मिल रहा है। सरकार और देश के खेल प्रेमी भी चाहते हैं कि देश में ओलंपिक जैसे बड़े आयोजन होने से खेलों के प्रचार प्रसार और विकास की नई राह खुलेगी। लेकिन खेलों की गहरी समझ रखने वाले और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ियों के आंकड़ों से खेलने वाले एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत को ओलंपिक आयोजन से पहले एक और एशियाई खेल आयोजन के बारे में विचार करना चाहिए। एक सलाह यह भी दी जा रही है कि साल भर बाद होने वाले पेरिस ओलंपिक तक इंतजार किया जाए।

बेशक, भारत 1951 और 1982 के एशियाई खेलों का सफल  आयोजन कर अपनी योग्यता और क्षमता दिखा चुका है। दोनों ही खेलों में मेजबान खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया था। हालांकि 2010 में कामनवेल्थ खेल आयोजित किए गए थे, जोकि किसी कारणवश , विवाद में रहे लेकिन मेजबान खिलाड़ियों ने तब भी अपना जौहर दिखाया था। पिछले एशियाड को आयोजित किए 41 साल बीत चुके हैं। तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है। भारत ने खेलों में अपनी प्रगति का संकेत भी दिया है लेकिन पहले हमें एशिया के पहले तीन देशों में स्थान बना लेने के बाद ही ओलंपिक आयोजन के बारे में सोचना चाहिए।

ऊषा और देश के खेल आका मानते हैं कि भारत पेरिस ओलंपिक में दस से अधिक पदक जीत सकता है। तो क्यों न साल भर इंतजार किया जाए। बेशक, असली परीक्षा तो ओलंपिक में ही हो सकती है। टोक्यो ओलंपिक में एक गोल्ड सहित आठ पदक जीत चुके हैं। पेरिस में दस पंद्रह पदक भी मिले तो ओलंपिक आयोजन का दावा ठोकने में कोई बुराई नहीं है। भले ही भारत ने एशियाड में सौ से ज्यादा पदक जीत लिए लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जोकि यह मानता है कि चीन जापान और कोरिया महां शातिर देश है।

उनके लिए ओलंपिक असल मंच है, जहां पूरी ताकत के साथ उतरते हैं। यह भी कहा जाता है कि एशियाई खेलों में ये तीनों देश अपनी दूसरी कतार के खिलाड़ियों को उतारते हैं, जबकि भारत के पास अपने सर्वश्रेष्ठ को आजमाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रहता। एक उलाहना यह भी दिया जाता है कि एशियाड में ऐसे बहुत से खेल और उनके कई ऐसे इवेंट हैं जोकि ओलंपिक का हिस्सा नहीं हैं।

मसलन कबड्डी, क्रिकेट, तीरंदाजी , निशानेबाजी, आदि खेल। कुछ जानकर कहते हैं कि जिस दिन भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक में जिम्नास्टिक और तैराकी का एक भी पदक जीतने के दावेदार बनकर सामने आ जाएं तुरंत ओलंपिक आयोजन का डंका बजा दिया जाए। बेशक, इस तर्क में दम है क्योंकि खेल महाशक्ति वही देश हैं जिनके पास एथलेटिक, जिम्नास्टिक और तैराकी के अधिकाधिक चैंपियन हैं। वैसे फिलहाल हमारे पास नीरज चोपड़ा नाम का चैंपियन है। तो फिर दावा ठोक दिया जाए?

Tags :

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें