nayaindia Pankaj Udhas Passes Away सूना हो गया संगीत का सुकून देने वाला कोना

सूना हो गया संगीत का सुकून देने वाला कोना

महेश भट्ट निर्देशित फिल्म नाम‘ 1986 में प्रदर्शित हुआ। उस फिल्म में पंकज उधास का गाई गजल चिट्ठी आई हैने लोकप्रियता का एक नया इतिहास लिख दिया। दरअसल यह गजल भारतीय आत्मा से संवाद है। मानवीय सम्बन्धों की रागात्मकता और सांस्कृतिक चेतना की गहरी छाप छोड़ती यह गजल प्रवासी भारतीयों के लिए अनिवार्य मंत्र की तरह बन गई है। Pankaj Udhas Passes Away

रूहानी आवाज के दिलकश जादूगर पंकज उधास उन चुनिंदा गायकों में शुमार थे, जिनकी गजलों ने दुनिया भर में मकबूलियत का नया मुकाम हासिल किया। पंकज उदास की बेहद खूबसूरत और दिलकश गजलों की एक लंबी फेहरिस्त है। बेइंतहां प्यार की कशिश और खामोश दर्द की बेचैनी को रूह तक उतार देने का काम पंकज उधास की गजलों ने बखूबी किया है।

अस्सी के दशक में एक ओर जहां गुलाम अली और मेंहदी हसन अपने रुतबे के शबाब पर थे वहीं मखमली आवाज के साथ एक नवोदित गायक गजल की दुनिया में दस्तक देता है। वह नायाब गजल गायक दुनिया में पंकज उधास के नाम से मशहूर हुआ।

फनकार पंकज उधास मूल रूप से गुजरात के जेतपुर से थे। गजल की दुनिया में पंकज उधास के बड़े भाई मनहर उधास पहले ही बड़ा मुकाम हासिल कर चुके थे। पंकज उधास का पहला म्यूजिक अलबम ‘आहट’ 1980 में रिलीज हुआ और उसके बाद एक स्थापित गायक के रूप में उनको शोहरत मिलने लगी।

औरों से हटकर रूहानी आवाज और शायराना नफासत के साथ पंकज उधास की गजलें वक्त को थम लेती हैं और उसमें खो जाने के लिए विवश कर देती हैं। चाहत के खामोश अफसाने को अपनी मखमली आवाज से एक नया अर्थ और एक नया दर्द देकर मशहूर हुए पंकज उधास देखते ही देखते गजल गायकी का पर्याय बन गए। Pankaj Udhas Passes Away

अपने पहले ही अलबम ‘आहट’ की आशातीत सफलता ने उनके आत्मविश्वास को एक ठोस और रचनात्मक धरातल दिया। इस अलबम की गजल ‘अब तो इंसान को इंसान बनाया जाए’ या कोई और ही भगवान् बनाया जाए’ और ‘कैसे कह दूं की मुलाकात नहीं होती’ है में एक कमाल का ठहराव है। सुमधुर धुनों से सजी और तराशी आवाज से लबरेज अलबम ‘आहट’ को भला कौन नहीं पसंद करता।

धीरे-धीरे उनके गजलों की दीवानगी कद्रदानों की जुबां पर मचलने लगी और पंकज उधास सफर ए मौसकी में मशरूफ हो गए। नग्मों की पेशकश और अलबम का आना बदस्तूर जारी रहा। ‘मुकर्रर’, ‘तरन्नुम’, ‘नबील’, ‘नायाब’, ‘शगुफ्ता’, ‘अमन’, ‘महफिल’, ‘हमनशीं’, ‘आफरीन’, ‘हसरत’, ‘रुबाई’, ‘घूंघट’, ‘एंडलेस लव’, ‘यारा’ आदि उनके बेहद चर्चित और लोकप्रिय अलबम हैं।

महेश भट्ट निर्देशित फिल्म ‘नाम’ 1986 में प्रदर्शित हुआ। उस फिल्म में पंकज उधास का गाई गजल ‘चिट्ठी आई है’ ने लोकप्रियता का एक नया इतिहास लिख दिया। दरअसल यह गजल भारतीय आत्मा से संवाद है। मानवीय सम्बन्धों की रागात्मकता और सांस्कृतिक चेतना की गहरी छाप छोड़ती यह गजल प्रवासी भारतीयों के लिए अनिवार्य मंत्र की तरह बन गई है। इस गजल ने पंकज उधास की गायकी को एक आत्मीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। यह गजल आज भी प्रवासी भारतीयों के लिए सबसे बड़ा नॉस्टेल्जिया है। Pankaj Udhas Passes Away

इसी तरह मुख्यधारा में उनको जबरदस्त लोकप्रियता दिलाने वाली एक अन्य गजल ‘चांदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल, एक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल’ आई। इस गजल ने युवाओं के धड़कते दिलों और मचलते अरमानों को पंख दे दिया। इस गजल ने रुमानियत को दीवानगी में बदल दिया। पंकज उधास ने एक तरफ दर्द की दास्तान को स्वरबद्ध किया वहीं दूसरी और शराब की मदहोशी व उसके सुरूर की तारीफों में गजलें इनायत कीं।

गौरतलब है कि उर्दू शायरी में शराब का जिक्र बेहद खास है। शराब की मस्ती को अलग-अलग मायनों में अर्थ दिया गया है। कहीं जिंदगी से मुहब्बत की शराब की गुफ्तगू है तो कहीं महबूब की मदभरी आंखों की मस्ती का नाम शराब है। दरअसल शराब के आईने में जिंदगी और महबूब को देखने और जीने की एक कोशिश है।

पंकज उधास की गजलों में यह बहुतायत में मिलता है। उनकी गजलें ‘न समझो की हम पी गए पीते-पीते’, ‘शराब चीज ही ऐसी है न छोड़ी जाए’, ‘थोड़ी-थोड़ी पीया करो’, ‘ऐ गमे जिंदगी कुछ तो दे मशवरा’ आदि बेहद मशहूर हुई। हालांकि वे बार बार इसकी शिकायत करते रहे कि उन्होंने प्रेम के ढेरो गीत गाए लेकिन चर्चा शराब से जुड़ी गजलों की ही होती रही। Pankaj Udhas Passes Away

पंकज उधास ने हिंदी फिल्मों में कुछ लाजबाब नग्मे गाए हैं, जिसमें ‘मोहरा’ फिल्म का गाना ‘ना कजरे की धार ना मोतियों के हार’ की सादगी और निर्दोष प्रेम से भीगे अलफाज को पंकज उधास ने जिस अंदाज में पेश किया है वह लाजवाब है।

इसके अलावा ‘रिश्ता तेरा-मेरा’, ‘और भला क्या मांगू मैं रब से’, ‘मत कर इतना गुरुर’, ‘आज फिर तुम पे प्यार आया है’, ‘मुहब्बत इनायत करम देखते हैं’, ‘दिल देता है’ आदि बहुत मशहूर हुए। उनके निधन से न सिर्फ गजल की दुनिया सूनी हुई है, बल्कि संगीत का एक सुकून देने वाला कोना भी सूना हो गया है।

(लेखक दौलत राम कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)

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