nayaindia Rahul Gandhi अब राहुल ट्वंटी – 20 वाले शाट मारने लगे!

अब राहुल ट्वंटी – 20 वाले शाट मारने लगे!

पहली बार है जब कांग्रेस भाजापा से बातों की लड़ाई में आगे जा रही है। प्रियंका भी मोदी जी को खूब जवाब देती हैं। जनता को यह अंदाज बहुत पसंदआता है। राहुल यह समझ गए हैं। वे अब ट्वंटी ट्वंटी में उसी के हिसाब सेखेल रहे हैं। क्रास बैट। बाल को जोर से मारना है। कैसे मारना है। बेटसीधा, फुट वर्क यह सब उन्होंने टेस्ट के लिए रख दिया है।पहले राहुल ट्वंटी ट्वंटी में भी टेस्ट मैच जैसी क्लासिक बैटिंग कर रहे थे। अब धांय धूं करने लगे हैं।

राहुल गांधी ने कहा है उनके ऊपर 24 मुकदमे कर दिए गए हैं। और शायद एकाध अभी और हो गया तो यह 25 हो गए। लोकसभा की सदस्यता ली गई। मकान खाली करवा लिया गया।  यह सब फैक्ट है। और साढ़े नौ साल में यह सब हुआ है। अब जरा दूसरी तरह सोचिए। सत्तर  साल में इससे पहले किस विपक्षी नेता पर इतने मुकदमे लगाए गए? किसकी संसदसदस्यता ली गई? किसका सरकारी मकान खाली करवाया गया?

कांग्रेस के राज में विपक्ष के नेता खूब विरोध करते थे। आरोप लगाते थे।लेकिन किस पर मुकदमे लगते थे? समझा बुझा कर वापस कर दिया जाता था। आज जिनप्रवीण तोगड़िया, उमा भारती वसुन्धरा राजे को भाजपा अपनी सरकार में दबाकर रखना चाहती है उन्हें कांग्रेस की सरकारों ने कभी दबाने की कोशिश नहीं की।

भाजपा के नेता, प्रधानमंत्री खुद और मीडिया बार बार पूछता है कि सत्तर सालमें क्या हुआ? होना तो यह चाहिए था कि कांग्रेस एक हैंडी बुकलेट ( छोटीहाथ में रखी जा सकने वाली पुस्तिका) निकाली है जिसमें 70 ही उपल्बधियां 70साल की बताती। हैं तो सत्तर से बहुत ज्यादा मगर सत्तर तो वह लिखती है जिसका किसी के पास कोई जवाब नहीं होता। मगर कांग्रेस एक ढीली पार्टी है।पता नहीं कौन इसे चलाता है। शायद उपर वाला ही चलता रहता है। और हर बारकुछ नए लोग मेहनत करने के लिए पहुंचा देता है जिनके काम करने से पार्टी  चलती रहती है। जैसे इन दिनों राहुल का साथ देने के लिए प्रियंका और खरगेजी को पहुंचा दिया। पहले सोनिया जी थीं। नहीं तो वैसे किस्मत के भरोसेचलती है। वह ऐसे लिखा पढ़ी के काम, जवाब देने के काम नहीं करती। चुपचापआरोप स्वीकारती रहती है।

मुकदमे प्रियंका पर भी लगे। मध्य प्रदेश में उनके खिलाफ हर जिले में एकएफआईआर हुई। आज की सरकार यह मान कर चल रही है कि वह जो चाहे कर सकती है।उसे लगता है कि वह हमेशा के लिए है। और दूसरा विश्वास उसे और उसकेसमर्थकों को जिसमें भक्त और भक्त मीडिया है यह है कि अगर कांग्रेस आ भीगई तो वह कुछ नहीं कर सकती है। एक डरी हुई पार्टी है। उनका यह सोचना सहीभी है। 2004 में जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार आई थी तो उसनेकुछ नहीं किया था। उल्टे उन मीडिया के लोगों को ज्यादा गले लगाया था जोवाजपेयी सरकार के भी खास थे। मगर वहां थोड़ा डरकर रहते थे। यहां तो जिसदिन 2004 में सरकार बनी उस दिन से लेकर जब 2014 में बहुत बेआबरू होकर गईउस दिन तक वे कांग्रेसी मंत्रियों और नेताओं की नाक के बाल बने रहे।कांग्रेस को गाली भी देते थे और कांग्रेस से भरपूर फायदा भी लेते थे।

बीजेपी सरकार में मीडिया को यह सुविधा प्राप्त नहीं है। बीजेपी में तो जोदेते हैं वह दया करके देते हैं। और देना भी जरूरी नहीं है। वहां तो सेवाडरकर कर करना ही पड़ती है। इसलिए मीडिया और बाकी इन्सटिट्यूशन भी जानतेहैं कि कांग्रेस अगर आ भी गई तो उनके तो और गोल्डन दिन आ जाएंगे। माल भीमिलेगा और रौब भी रहेगा। यहां बीजेपी में रौब नहीं रह सकता। मोदी जी केसामने हाथ बांध कर दांत निकालकर ही खड़े होना पड़ता है। मनमोहन सिंह जैसेविद्वान प्रधानमंत्री से यह बहसें करते थे। सोनिया गांधी से बराबरी केस्तर पर बात करते थे। और राहुल को तो अभी भी कुछ नहीं समझते। जरा जरा सेरिपोर्टर लड़के और लड़कियां उन्हें राहुल, राहुल कहकर संबोधित करते हैं।

राहुल इसका बुरा भी नहीं मानते। खुद कहते हैं कि मुझे राहुल संबोधित करसकते हैं। मगर खुद कहना और बड़े को सम्मान देना दोनों  अलग अलग बातें हैं।

खैर, राहुल ने अपने ऊपर लगे मुकदमों को अपने सीने पर लगे मेडल बताया है।अच्छी बात है। हिम्मत वाली। राहुल लड़ रहे हैं। जैसा उन्होंने कहा किपूरा देश जानता है कि मैं मोदी जी से लड़ रहा हूं। उनसे नहीं डरता। सहीबात है। जैसी हिम्मत राहुल ने दिखाई है वैसी साढ़े 9 साल में किसी नेनहीं। जनता में भी इससे हिम्मत आई है। अब कितनी आई है,  कितना उसकाहिन्दू-मुसलमान का नशा टूटा है यह तो पांच राज्यों के विधानसभा चुनावोंके नतीजे ही बताएंगे। मगर लगता है कांग्रेस के लिए अच्छा समय शुरू हो गयाहै। यह राहुल का प्रताप ही है। हालांकि इस बात में कोई दो राय नहीं किउन्हें दो बहुत अच्छे सहयोगी मिले हैं। पार्टी अध्यक्ष खरगे जी औरप्रियंका गांधी। हालंकि कांग्रेस में से ऐसे और बड़े नेता निकलना चाहिएथे। जो राहुल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर सकें। मगर कांग्रेस अपनायह गुण तो भूल ही गई है कि बड़ा नेता कैसे बनाया जाता है। अभी भीकांग्रेस में कुछ नेता ऐसे हैं जिन पर कार्यकर्ता विश्वास करते हैं। औरवे पार्टी के वफादार भी हैं। मगर पार्टी उनका समुचित उपयोग नहीं कर पारही।

2024 में होने वाले लोकसभा में कांग्रेस को राहुल जैसे जननेता, प्रियंकाजैसे करिश्माई व्यक्तित्व और खरगे जैसे मेहनत करने वाले अध्यक्ष के साथकुछ और नेताओं की भी जरूरत पड़ेगी जो कार्यकर्ताओं में उत्साह जगा सकें।  इस मोर्चे पर भाजपा कांग्रेस के मुकाबले कमजोर है। उसके पास एक ही स्टारकैम्पेनर हैं। नरेन्द्र मोदी।

इन पांच राज्यों के चुनाव में मोदी केअलावा सिर्फ अमित शाह ही सक्रिय रहे। बाकी राजनाथ, गडकरी किसी दूसरे नेताको भाजपा ने सामने आने नहीं दिया। भाजपा एक बैट्समेन की टीम बनकर रह गईहै। कभी कहा जाता था कि भाजपा में सामुहिक नेतृत्व है। वहां व्यक्तिप्रधान नहीं है। मगर आज सारी बातें धरी की धरी रह गईं। मोदी जी ने ऐसाटेक ओवर किया कि एक से लेकर ग्यारह तक टीम में सिर्फ मोदी ही मोदी हैं।  अभी तक चल रहे थे तो दो लोकसभा 2014 और 2019 भाजपा को जीता दिया। कईराज्यों में भाजपा की सरकार बनवा दी। मगर जैसा क्रिकेट में कहा जाता हैकि फार्म इज टेम्प्रेरी। आता है चला जाता है। तो अब यह पांच राज्यों केचुनाव डिसाइड करेंगे कि मोदी जी का फार्म बचा है या नहीं।

क्रिकेट में इसके साथ ही दूसरी बात यह भी कही जाती है कि क्लास इज परमानेंट। आपके विशेष गुण, प्रतिभा स्थाई हैं। यहां खानदानी गुणपारिवारिक संस्कार भी कह सकते हैं। तो राहुल का यह क्लास स्थाई है। फार्मके आने जाने से इस पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। और वैसे भी राहुल इन दिनोंबहुत फार्म में आ गए हैं। वे जनता से सीधे कनेक्ट कर रहे हैं। उनका जोपनौती वाला डायलग बहुत मशहूर हुआ वह उन्होंने जनता से ही उठाया था। क्याक्या कहकर बहुत चुटीले अंदाज में उन्होंने कहा था अच्छा पनौती! हां

पनौती! अच्छा भला खेल रहे थे लड़के क्यों गए थे?

यह पहली बार है जब कांग्रेस भाजापा से बातों की लड़ाई में आगे जा रही है।प्रियंका भी मोदी जी को खूब जवाब देती हैं। जनता को यह अंदाज बहुत पसंदआता है। राहुल यह समझ गए हैं। वे अब ट्वंटी ट्वंटी में उसी के हिसाब सेखेल रहे हैं। क्रास बैट। बाल को जोर से मारना है। कैसे मारना है। बेटसीधा, फुट वर्क यह सब उन्होंने टेस्ट के लिए रख दिया है।पहले राहुल ट्वंटी ट्वंटी में भी टेस्ट मैच जैसी क्लासिक बैटिंग कर रहे

थे। अब धांय धूं करने लगे हैं।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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