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आज भी ज़रूरी हैं हस्तलिखित पत्र

मोबाइल और इंटरनेट आ जाने के बावजूद पत्रों का महत्व आज भी बरकरार है। यही कारण है कि हस्तलिखित पत्रों की अहमियत को बढ़ावा देने और लोगों को लेखनी उठाकर कागज़ पर अपने मन के भाव लिखने के लिए प्रेरित करने हेतु विश्व पत्र लेखन दिवस प्रतिवर्ष 1 सितम्बर को मनाया जाता है।

1 सितंबर- विश्व पत्र लेखन दिवस

भारत में प्राचीन काल से ही संदेश भेजने और अपनी भावनाएँ व्यक्त करने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम रहा है—हस्तलिखित पत्र। चाहे संवाद हो, समाचार हो या जानकारी देना हो, पत्र लेखन की परंपरा बहुत प्रसिद्ध और व्यापक रही है। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी तक पत्र ही दो व्यक्तियों के बीच संवाद का सबसे विश्वसनीय साधन था। संचार का सरल साधन होने के कारण पत्रों का हमारे जीवन में एक खास स्थान रहा है। लेकिन टेलीफोन, मोबाइल, कंप्यूटर और इंटरनेट आने के बाद इसकी भूमिका घट गई। आज लोग पत्र लिखने के बजाय फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे माध्यमों से संवाद करना पसंद करते हैं।

प्राचीन काल से ही भारत में संदेश, संवाद, समाचार, सूचना और विचारों तथा भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हस्तलिखित पत्र लेखन का अत्यंत महत्व रहा है। यह परंपरा व्यापक और विख्यात रही है। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी तक पत्र ही दो व्यक्तियों के बीच संचार का सबसे विश्वसनीय माध्यम था। संचार का एक सरल साधन होने के कारण पत्रों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। लेकिन टेलीफोन, मोबाइल, कंप्यूटर और इंटरनेट के युग में इसकी भूमिका काफी कम हो गई है।

वर्तमान डिजिटल युग में पत्र लेखन का चलन लगभग समाप्ति की ओर है और उसकी जगह सोशल मीडिया तथा सामुदायिक संचार तंत्र ने ले ली है। अब लोग पत्र भेजने के बजाय फेसबुक, व्हाट्सऐप आदि के माध्यम से संदेश भेजना पसंद करते हैं। किसी कागज़ अथवा अन्य माध्यम पर लिखे संदेश को पत्र, चिट्ठी अथवा खत कहते हैं। इसका उपयोग करना अत्यंत सरल है। कोई भी व्यक्ति अपनी बात पत्र में सहजता से लिखकर किसी को भी भेज सकता है। मोबाइल और इंटरनेट आ जाने के बावजूद पत्रों का महत्व आज भी बरकरार है। यही कारण है कि हस्तलिखित पत्रों की अहमियत को बढ़ावा देने और लोगों को लेखनी उठाकर कागज़ पर अपने मन के भाव लिखने के लिए प्रेरित करने हेतु विश्व पत्र लेखन दिवस प्रतिवर्ष 1 सितम्बर को मनाया जाता है।

पत्र हृदय की परतों को खोलते हैं। मनुष्य की भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पत्राचार से ही संभव है। निष्कलुष भावों और विचारों का आदान-प्रदान पत्रों द्वारा ही होता है। डिजिटल संचार की सुविधाओं के बावजूद हस्तलिखित पत्रों में एक विशेष आत्मीयता और शाश्वतता होती है। विश्व पत्र लेखन दिवस उसी आत्मीय जुड़ाव और संबंध को प्रोत्साहित करता है। यह लोगों को प्रेरित करता है कि वे अपने प्रियजन या मित्र को पत्र लिखें, जिससे संबंधों में आत्मीयता और व्यक्तिगत स्पर्श जुड़ सके।

भारत में पत्र लेखन का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। वैदिक काल में संदेश पहुँचाने के लिए कबूतरों, निजी संवादकों अथवा प्रशिक्षित वाहकों का प्रयोग किया जाता था। वेदों में लेखन कला का उल्लेख मिलता है। मानव सभ्यता के विकास और उसे नई दिशा देने में लेखन कला का बड़ा योगदान रहा है। भाषा के विकास के बाद लिपि का उद्भव हुआ। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि जब मानव को अपनी भाषा को संरक्षित रखने की इच्छा हुई, तभी लिपि बनी। लिपि हमारी प्राचीन उपलब्धियों को सुरक्षित रखने का सार्थक माध्यम है और भाषा को समय और स्थान की सीमा से मुक्त करती है।

सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई से मिले साक्ष्यों ने सिद्ध किया कि भारत में लेखन कला की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। प्राच्य विद्वानों, विदेशी अनुश्रुतियों, भारतीय ग्रंथों, यवन लेखकों, बौद्ध साहित्य, ब्राह्मण ग्रंथों और अभिलेखों से भी इसकी पुष्टि होती है। वैदिक प्रमाण भी लेखन कला की प्राचीनता सिद्ध करते हैं। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व तक भारत में सामान्य जन लेखन से परिचित थे।

पौराणिक ग्रंथों और महाकाव्यों में राजनयिक पत्रों, दूतों के संदेशों तथा प्रेमियों द्वारा लिखे गए पत्रों का उल्लेख है। कागज़ के आविष्कार से पहले पत्र लिखने के लिए ताम्रपत्र, ताड़पत्र, भूर्जपत्र, पपीरस और चर्मपत्र का प्रयोग होता था। अंग्रेजों से पहले भारतीय राजा-रजवाड़ों की अपनी डाक व्यवस्थाएँ थीं। बाद में फारसी शासनकाल में “अंगारेयन प्रणाली” चली। पत्र सूचना और भावनाओं के आदान-प्रदान का सशक्त साधन थे—चाहे वह प्रेम हो या वियोग का दर्द।

विश्व इतिहास के अनुसार लेखन की शुरुआत सुमेर से हुई, जहाँ कीलाक्षर लिपि का प्रयोग होता था। मिस्र में पपीरस पर पत्र लिखे जाते थे और लगभग 2000 ईसा पूर्व से डाक व्यवस्थाएँ भी मौजूद थीं। भारत में अशोक के शिलालेख और प्राकृतिक रंगों से बने शैलचित्र भी लेखन कला की प्राचीनता के प्रमाण हैं।

पत्रलेखन दो व्यक्तियों के बीच हृदय से हृदय के संबंध को प्रगाढ़ बनाता है। यह दूरस्थ व्यक्तियों को भी आत्मीयता के संगम पर ले आता है। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र जैसे रिश्तों को यह और मजबूत करता है। इसीलिए पत्राचार मानवीय संबंधों की परस्परता का सशक्त प्रमाण है।

पत्र संवाद का एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा लोग अपने विचार, भावनाएँ और जानकारी साझा करते हैं। यह व्यक्तिगत ज्ञापन का माध्यम भी है और साक्षरता को बढ़ावा देता है। पत्र लिखने की प्रक्रिया लोगों को भाषा और लेखन कौशल में दक्ष बनाती है। व्यापार जगत में भी पत्रों का महत्व रहा है—प्रस्तावना पत्र, व्यावसायिक पत्र और सरकारी संवाद की परंपरा प्राचीन है। ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तिगत जीवन के अनेक दस्तावेज हमें पत्रों से ही प्राप्त हुए हैं।

पत्रलेखन को हमेशा से कला माना गया है। आधुनिक युग में भी यह एक कलात्मक अभिव्यक्ति है। पत्र जितना स्वाभाविक और सहज होगा, उतना ही प्रभावकारी होगा। एक अच्छे पत्र के लिए सरल भाषा, स्पष्ट विचार, संक्षिप्तता, प्रभावशीलता और सौंदर्यबोध आवश्यक है। पत्र में लेखक की भावनाओं के साथ उसका व्यक्तित्व, दृष्टिकोण, संस्कार और मानसिक स्थिति भी झलकती है।

अतः पत्रलेखन केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि साहित्यिक और कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी है। यही कारण है कि डिजिटल युग के बावजूद हस्तलिखित पत्रों का महत्व और गरिमा आज भी बनी हुई है।

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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