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चीन से निर्यात घटाने क्या हिम्मत?

चीन

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व्यापार नीति से भारत को लंबा फायदा अपने सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों को पुनर्जीवित करने से मुमकिन है। भारत सरकार ऐसा करती है तो एक तीर से दो शिकार कर सकती है। एक तरफ अमेरिका और दुनिया के देशों को सस्ता उत्पाद मुहैया करा सकती है, जैसा पहले चीन कराता था। इसका दूसरा लाभ यह होगा कि भारत की चीन पर से निर्भरता कम हो जाएगी। चीन पर से आर्थिक निर्भरता हटाने के लिए पहला कदम उठाने की जरुरत है कि भारत सरकार चीन के उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दे।

जिस तरह से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया भर के देशों पर अतिरिक्त शुल्क लगाया है उस तरह भारत को चीन के उत्पादों पर शुल्क लगा देना चाहिए। क्या इतनी हिम्मत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिखा सकते हैं?

ट्रंप ने हिम्मत दिखाई। उन्होंने इस बात की परवाह नहीं की कि चीन, मेक्सिको और यूरोपीय संघ जैसे बड़े व्यापारिक साझेदारों को ऊपर शुल्क बढ़ाते हैं तो अमेरिका में हर चीज महंगी होगी। महंगाई बढ़ेगी तो लोग नाराज होंगे, उन्होंने इसकी भी परवाह नहीं की। उन्होंने चुनाव के समय ऐलान किया था कि वे अमेरिकी लोगों की जरुरतों के लिए विदेशी सामानों पर निर्भरता कम करेंगे और लाखों करोड़ रुपए का व्यापार घाटा समाप्त करेंगे तो उन्होंने आते ही इसकी शुरुआत कर दी।

उन्होंने जो शुल्क बढ़ाया है उससे अमेरिका में महंगाई बढ़ेगी। लेकिन एक अवसर भी बनेगा। वे अमेरिकी कारोबारियों को देश में फैक्टरी लगाने और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत करने के लिए कह रहे हैं। वे दुनिया भर के देशों से भी कह रहे हैं कि उन्हें अपना सामान बेचना है तो अमेरिका में आकर फैक्टरी लगाएं।

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह काम नहीं कर सकते हैं? उन्हें तो सिर्फ एक देश के साथ इस तरह का फैसला करना है। उनको सिर्फ चीन के उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाना है। इसके कई फायदे भारत को होंगे। पहला फायदा तो यह होगा कि भारत का व्यापार घाटा कम होगा। अभी चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा सालाना लगभग एक सौ अरब डॉलर हो गया है। वित्त वर्ष 2024-25 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 102 अरब डॉलर यानी करीब नौ लाख करोड़ रुपए का है।

इस दौरान चीन से आयात में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई और निर्यात में 15 फीसदी की कमी आ गई। यानी हम चीन को पहले से भी कम सामान बेच रहे हैं और वह पहले से ज्यादा सामान हमें बेच रहा है। यह स्थिति तब है, जब उसके साथ सीमा पर तनाव है। उसने भारत की जमीन हड़पी है और उसके साथ झड़प में भारत के वीर जवानों का खून बहा है। चीन हमें ऐसे सामान बेच रहा है, जिनका इस्तेमाल भारत में उत्पादों की असेंबलिंग में हो रही है और इसी आधार पर मेक इन इंडिया अभियान की तारीफ हो रही है। यह असल में मेक इन इंडिया नहीं है। यह चीन की आर्थिक गुलामी है।

भारत को चीन की आर्थिक गुलामी से मुक्ति पाने के लिए उठाने होंगे कदम

इसी तरह की आर्थिक गुलामी से मुक्ति और अपना व्यापार घाटा कम करने के लिए ट्रंप ने आयात शुल्क बढ़ाया है। भारत अगर आयात शुल्क बढ़ाता है तो हो सकता है कि देश में चीजें महंगी हों लेकिन उसके साथ ही भारत में उन वस्तुओं के उत्पादन की शुरुआत भी हो सकती है। सोचें, अगरबत्ती, मोमबत्ती, माचिस, बल्ब, कपड़े, बिजली की झालरें, सजावट की चीजें, गिफ्ट के आइट्म्स, खिलौने आदि कौन सी ऐसी चीज हैं, जिनका भारत में उत्पादन नहीं हो सकता है! पहले भारत में ऐसे छोटे छोटे उद्योग बहुत चलते थे।

अब सरकार का सारा फोकस बड़ी कंपनियों, बड़े निवेश पर हो गया है क्योंकि उनसे राजनीतिक नैरेटिव बनाना आसान होता है।

जिला और प्रखंड स्तर पर छोटे छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने से नैरेटिव नहीं बनता है। लेकिन अभी जरुरत ऐसे उद्योगों को बढ़ावा देने की है, जिनसे छोटे छोटे और रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों का उत्पादन तुरंत भारत में शुरू हो सके।

भारत के जो छोटे उद्यमी चीन के माल के ट्रेडर बन गए हैं उनको वापस उद्यमी बनाने की शुरुआत करने की जरुरत है। इससे चीन पर निर्भरता कम होगी, भारत का व्यापार घाटा कम होगा, जिससे भारत के पास ज्यादा विदेशी मुद्रा बचेगी और भारत में इस किस्म के उद्योग मजबूत होंगे तो उनसे भारत में रोजगार बढ़ेगा और अमेरिका सहित दुनिया के देशों को जरूरी सामानों की आपूर्ति में भारत की भूमिका बढ़ेगी। लेकिन इस बारे में फैसला करने में बड़ी हिम्मत की जरुरत होगी।

अगर हिम्मत हो तो तत्काल चीन के उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने का फैसला हो सकता है और अगर जरूरी हो तो कुछ वस्तुओं के उत्पाद पर पाबंदी भी लगाई जा सकती है।

इसके बाद अगले कुछ महीनों या सालों में भारत के छोटे व मझोले उद्योगों को मजबूत करके भारत को ग्लोबल सप्लाई चेन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी बनाया जा सकता है। भारत में इसकी संभावना है। भारत को अपने बाजार के लिए भी बहुत बड़े उत्पादन की जरुरत है। चीन इस बात को समझ रहा है तभी वह भारत पर डोर डाल रहा है। भारत को इस जाल में नहीं फंसना है।

तमाम पड़ोसी देशों से कम शुल्क लगा कर ट्रंप ने भारत को मौका दिया है कि वह उन देशों के मुकाबले सस्ता उत्पाद अमेरिकी बाजार में पहुंचा सके। इस मौके के लाभ भारत को उठाना चाहिए और अपने को चीन की आर्थिक गुलामी से भी मुक्त करने का प्रयास शुरू करना चाहिए।

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Pic Credit : ANI

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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