देश में गिनी चुनी संस्थाएं थीं, जिनके कामकाज को देश के अंदर और बाहर भी सराहा जाता था। उनमें एक संस्था चुनाव आयोग था। टीएन शेषन के समय लोगों ने जाना कि चुनाव आयोग एक संस्था होती है और वह चाहे तो सरकारों को कुछ भी करने के लिए मजबूर कर सकती है। लेकिन अब चुनाव आयोग खुद एक ऐसी मजबूर संस्था दिख रही है, जिस पर दया आती है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने दोनों चुनाव आयुक्तों के साथ पिछले रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उसकी ऐसी दयनीयता सामने आई, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है।
विपक्ष के आरोपों पर ऐसे ऐसे बेसिरपैर के तर्क दिए जा रहे थे, जैसे तर्क टेलीविजन की बहसों में पार्टी के प्रवक्ता भी नहीं देते हैं। चुनाव आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके नेता प्रतपिक्ष राहुल गांधी को धमकाया कि आपने जो आरोप लगाए हैं उन्हें हलफनामे के साथ चुनाव आयोग के सामने दायर करें या देश से माफी मांगें। सोचें, पहले चुनाव आयोग सिर्फ एक लाइन कह देता था कि आरोपों की जांच कराई जाएगी और मामला खत्म हो जाता था। अब आयोग को हलफनामा चाहिए तब जांच होगी!
चुनाव आयोग की साख और हैसियत ऐसी हो गई है कि विपक्षी पार्टियों के नेता खुलेआम उसे धमकी दे रहे हैं। राहुल गांधी कह रहे हैं कि चुनाव आयोग के अधिकारी और कर्मचारी होशियार हो जाएं। सत्ता बदलेगी तो सबका हिसाब होगा। उन्होंने यहां तक कहा कि रिटायर हो जाने के बाद भी कोई नहीं बचेगा। इससे पहले क्या किसी संवैधानिक संस्था के प्रति ऐसी अनादर वाली बात किसी विपक्षी पार्टी के मुंह से निकलती थी? विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस को भाजपा के प्रवक्ताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस बता रही हैं। ऐसा होने चुनाव आयोग की अपनी करनियों, अपने रवैए से साख और प्रतिष्ठा गंवाने से है। आयोग ने निष्पक्ष और तटस्थ दिखने का प्रयास ही बंद कर दिया है।
इसकी एक मिसाल तो यही है कि राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बेंगलुरू सेंट्रल लोकसभा सीट की एक विधानसभा सीट महादेवपुरा में एक लाख वोट की गड़बड़ी का आरोप लगाया तो चुनाव आयोग ने तत्काल राहुल को नोटिस जारी कर दिया और कहा कि वे अपने आरोपों को हलफनामे के साथ जमा कराएं। इसके अगले ही दिन भाजपा के सांसद अनुराग ठाकुर ने रायबरेली और अमेठी लोकसभा में लाखों वोटों की गड़बड़ी का आरोप लगाया तो चुनाव आयोग ने उनको नोटिस जारी करने की जरुरत नहीं समझी।
चुनाव प्रचार के दौरान भी सत्ता पक्ष के नेताओं के भड़काऊ भाषण की अनगिनत शिकायतें दर्ज कराई जाती हैं लेकिन चुनाव आयोग कान में तेल डाल कर बैठा रहता है। लेकिन अगर किसी विपक्षी नेता के खिलाफ शिकायत आ जाए तो तत्काल कार्रवाई की जाती है। चाहे खर्च का मामला हो या भड़काऊ भाषण का मामला हो या मतदान में गड़बड़ी का मामला हो। हर मामले में चुनाव आयोग विपक्ष के विरोध में काम करता दिखता है। तभी विपक्षी पार्टियों ने उसे भाजपा का अभिन्न अंग बताना शुरू कर दिया है। विपक्षी पार्टियों ने पिछले दिनों कहा कि आयोग को इतने बड़े कार्यालय की क्या जरुरत है। भाजपा कार्यालय में एक फ्लोर पर उसका ऑफिस बना दिया जाए।
आज स्थिति है कि जिसको मन होता है वह चुनाव आयोग पर आरोप लगा कर चला जाता है और आयोग इस बात का रोना रो रहा है कि उसकी इज्जत होनी चाहिए। चुनाव आयोग की ओर से वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि ‘वोट चोरी’ जैसा शब्द बहुत अपमानजनक है और ऐसी बात नहीं कही जानी चाहिए। लेकिन सवाल है कि जब आयोग को खुद अपनी इज्जत का ख्याल नहीं है तो दूसरा कोई क्या कर सकता है? विपक्ष कह रहा है कि मतदान की वीडियो फुटेज जारी की जाए तो आयोग ऐसे बेसिरपैर के तर्क देता है कि दूसरे की मां, बहनों, बेटियों की फुटेज क्यों जारी करें। सोचें, यह क्या तर्क है? विपक्ष फर्जी वोट जोड़े जाने के आरोप लगाता है तो विपक्ष से कहा जाता है कि हलफनामे के साथ सबूत दो। विपक्ष कंप्यूटर से पढ़े जा सकने लायक मतदाता सूची यानी मतदाता सूची की सॉफ्ट कॉपी मांगता है तो आयोग कहता है कि नहीं देंगे। इसके बाद भी आयोग को फुल इज्जत चाहिए!