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मोदी दुनिया को बताएं सचाई

पहलगाम

पता नहीं शशि थरूर के नेतृत्व वाला डेलिगेशन क्या करके आया लेकिन अब अगला बड़ा मौका दो दिन के बाद ही मिलने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी 7 की  बैठक में हिस्सा लेने के लिए कनाडा जा रहे हैं। वहां कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के साथ उनकी दोपक्षीय वार्ता होगी। संभव है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के साथ भी वार्ता हो। जी 7 के मंच से भी उनको भाषण का मौका मिलेगा। क्या उस मंच से प्रधानमंत्री कहेंगे कि ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया और तब पाकिस्तान के गुहार लगाने पर सीजफायर किया? प्रधानमंत्री को निश्चित रूप से यह बात कहनी चाहिए ट्रंप की मौजूदगी में वे दुनिया को बताएं कि किसी व्यापार या टैरिफ की धमकी से सीजफायर नहीं हुआ था, बल्कि पाकिस्तान के गुहार लगाने पर भारत ने अपनी तरह से संघर्षविराम किया था। इतना ही नहीं अगर ट्रंप वहां भी व्यापार और टैरिफ की बात करके सीजफायर कराने का श्रेय लें तो सीधे शब्दों में प्रधानमंत्री को इसका खंडन करना चाहिए और दुनिया को कहना चाहिए ट्रंप झूठ बोल रहे हैं। अगर दोपक्षीय वार्ता होती है तो उसमें भी प्रधानमंत्री को चाहिए कि ट्रंप से कहें कि यह दोस्तों वाली बात नहीं है कि आप भारत को पाकिस्तान की बराबरी में ला रहे हैं, सीजफायर पर बार बार झूठ बोल रहे हैं और टैरिफ के नाम पर भारत को परेशान कर रहे हैं।

पहलगाम कांड और ऑपरेशन सिंदूर के बाद प्रधानमंत्री मोदी पहली बार विदेश दौरे पर जा रहे हैं और वह भी इतने बड़े मंच में हिस्सा लेने जा रहे हैं। इस मौके का इस्तेमाल उनको भारत की कूटनीतिक विजय के लिए करना चाहिए। अभी तक की स्थिति तो यह है कि कूटनीतिक मोर्चे पर भारत पिछड़ गया है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने का काम दुनिया के किसी देश ने नहीं किया है। उलटे अमेरिका ने पाकिस्तान की हर मोर्चे पर मदद की है। उसको विश्व की सभी वित्तीय संस्थाओं से मदद दिलाई है और उसके सेना प्रमुख को आमंत्रित किया है। भारत को उसकी बराबरी में रखा है। कनाडा में जी 7 देशों के अलावा कई और बड़े देशों के नेता जुटेंगे। वहां प्रधानमंत्री को दोपक्षीय वार्ता में और बहुपक्षीय मंच पर भी पाकिस्तान को एक्सपोज करना चाहिए और उसे अलग थलग करने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही अमेरिका से दो टूक बात करनी चाहिए कि ट्रंप आखिर चाहते क्या हैं?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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