‘रोजा’, ‘बॉम्बे’ और ‘दिल से’ बनाने वाले निर्देशक की ही फिल्म है, ‘ठग लाइफ’, ये मानना मणिरत्नम के चाहने वालों के लिए बेहद हार्ट ब्रेकिंग है। दिल्ली के भू माफियाओं की कहानी पूरे देश में यूं आसानी से घूमती रहती है कि जैसे उस दुनिया का वास्तविकता से कोई वास्ता ही न हो। काश कि मणिरत्नम और कमल हासन जैसे विभूतियों से सुसज्जित ‘ठग लाइफ‘ की कहानी पर भी समुचित काम हो गया होता तो ये फ़िल्म ‘ठग्गू के लड्डू‘ का अहसास न देती। ‘
सिने-सोहबत
1987 में एक ज़बरदस्त फ़िल्म आई थी, ‘नायकन’ जो बाद में हिंदी में फिर से ‘दयावान’ के नाम से बनी थी। ‘नायकन’ ने बहुत सी दूसरी भाषाओं की फिल्मों को अच्छा ख़ासा प्रभावित किया था और उस फ़िल्म को अपने स्पेस में एक कल्ट फ़िल्म की श्रेणी में देखा जाता है। फ़िल्म बनाई थी मणिरत्नम ने और हीरो थे कमल हासन। उसके बाद ये दोनों दिग्गज फिर से मिलकर 2025 में लेकर आए हैं ‘ठग लाइफ’। दोनों ने अपनी अपनी विधा में इतना ज़्यादा और अच्छे से अच्छा काम किया है कि ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ये दोनों ही अपने आप में किसी फ़िल्म स्कूल से कम नहीं। ज़ाहिर है दर्शकों को इस फ़िल्म से बिलकुल जादुई उम्मीद रही ही होगी। अफसोस की बात है कि कमल हासन और मणिरत्नम की जोड़ी इतने लंबे अरसे बाद भी कुछ खास परोसने में नाकामयाब रही है।
‘ठग लाइफ’ की शुरुआत फिर भी ठीक ठाक होती है, जो दर्शकों में कुछ उत्सुकता जगाती है लेकिन इंटरवल के बाद कहानी बेहद कमजोर पड़ जाती है और क्लाईमेक्स भी दमदार नहीं बन सका है। फिल्म में बतौर राइटर मणिरत्नम और कमल हासन का नाम है लेकिन इसकी स्क्रिप्ट बेहद कमज़ोर है। डायरेक्टर के तौर पर मणिरत्नम ने कुछ अच्छे एक्शन सीन ज़रूर किए हैं, लेकिन कथा और पटकथा की कमजोरी की वजह से दर्शकों को लुभा नहीं पाते।
‘रोजा’, ‘बॉम्बे’ और ‘दिल से’ बनाने वाले निर्देशक की ही फिल्म है, ‘ठग लाइफ’, ये मानना मणिरत्नम के चाहने वालों के लिए बेहद हार्ट ब्रेकिंग है। दिल्ली के भू माफियाओं की कहानी पूरे देश में यूं आसानी से घूमती रहती है कि जैसे उस दुनिया का वास्तविकता से कोई वास्ता ही न हो।
फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है इसकी पूरी की पूरी स्क्रिप्ट, फिर चाहे कहानी हो, स्क्रीनप्ले हो या फिर डायलॉग्स। 1994 में शुरू होने वाली फिल्म में युवा कमल हासन भी दिखते हैं। शायद ये उनका एआई अवतार है। कहानी दिल्ली के माफियाओं की है। दो गिरोहों में समझौते की सी बात चल रही है। लेकिन, इनमें से एक गिरोह पुलिस से मिला हुआ है। गोलीबारी होती है। कमल हासन का किरदार कुछ कुछ ‘नायकन’ जैसा ही है, नाम उसको मिला है शक्तिवेल। वह अखबार बेचने वाले हॉकर के बच्चे को ढाल बनाकर भागने की कोशिश करता है। ये बच्चा बड़ा होकर उसका उत्तराधिकारी भी बनता है। लेकिन, छोटे भाई और बड़े भाई की अनबन के बीच बड़ा हो चुका ये बच्चा शतरंज का ऐसा मोहरा बन जाता है कि न इससे सीधी चाल चली जाती है और न घोड़े वाली ढैया चाल। हां, इंटरवल तक फिल्म ठीक ठाक चलती जाती है, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म की स्क्रिप्ट साफ़ साफ़ आलस का शिकार लगती है।
फिल्म ‘ठग लाइफ’ में ज़्यादातर बातें पहले से ही देखी सुनी सी लगती है। इसकी कहानी की बात करें तो इसमें रंगाराया शक्तिवेल (कमल हासन) और उसका भाई मनिक्कम (नासर) खतरनाक डॉन हैं। एक पुलिस मुठभेड़ के दौरान शक्तिवेल एक बच्चे अमारन (सिलंबरासन) की जान बचाता है। उस दौरान उसके बाप की मौत हो जाने के कारण वह उसे अपने बच्चे की तरह पालता है। सदानंद (महेश मांजरेकर) भी एक डॉन है, जिसका शक्तिवेल के साथ छत्तीस का आंकड़ा है। सदानंद के भांजे के धोखे के चलते मनिक्कम की बेटी अपनी जान दे देती है, जिसका बदला शक्तिवेल उसे मारकर लेता है। इस कारण सदानंद और उसका दूसरा भांजा (अली फजल) उसकी जान के दुश्मन बन जाते हैं। इसी बीच कुछ ऐसा होता है कि शक्तिवेल के अपने ही उसके दुश्मन हो जाते हैं और उसकी जान लेने की कोशिश करते हैं। क्या शक्तिवेल इसका बदला ले पाता है? चलिए, इसे फ़िलहाल सस्पेंस के तौर पर रहने दिया जाए ताकि उन दर्शकों का मज़ा न खराब हो जो इस फ़िल्म को थिएटर में जाकर देखना चाहते हैं।
ग़ौरतलब है कि साल 1981 में पांच जून को ही कमल हासन की पहली हिंदी फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ रिलीज हुई थी और तब से आज तक उनके चाहने वाले उनकी अच्छी फिल्मों के इंतजार में रहते ही हैं। कमल हासन की ‘सदमा’ आज भी हिंदी फिल्म दर्शकों की पसंदीदा फिल्मों की सूची में सबसे ऊपर की फिल्मों मे शुमार होती है। लेकिन, ‘ठग लाइफ’ देखने वाले खुद को ठगा सा जरूर महसूस करेंगे। फ़िल्म देखते हुए यूं लगता है कि शंकर के बाद अब उन्होंने एक और ‘इंडियन 2’ बना ली है, इस बार मणिरत्नम के साथ।
इस फ़िल्म में कमल हासन के अलावा सबसे बढ़िया काम तृषा कृष्णन ने किया है। मुंबई के डांस बार से बचाई गई इंद्राणी के किरदार में वह खूब खिली हैं। फिल्म में कमल हासन के गोद लिए बेटे का किरदार सिलंबरासन ने अच्छा निभाया है। उनकी पत्नी जीवा बनी अभिरामी ने भी बढ़िया काम किया है। चंद्रा बनी ऐश्वर्य लक्ष्मी छोटे रोल में भी प्रभावित करने में सफल रहीं। अली फजल का काम भी उतना ही है। महेश मांजरेकर का काम प्रभावी है, और, अगर उनके किरदार सदानंद और शक्तिवेल की दुश्मनी पर ही इस फिल्म की कहानी टिकी रहती तो इसमें दिलचस्पी का स्तर कुछ और ही हो जाता। मणिरत्नम की बाक़ी सभी फिल्मों की तरह ये फिल्म भी तकनीकी रूप से बेहतरीन है। एआर रहमान के संगीत की एक अजीब सी ख़ासियत है। उनके गाने फिल्म में जो प्रभाव उत्पन्न करते हैं वो तो खैर है ही लाजवाब लेकिन कई बार फिल्म देखने के बाद भी रहमान के गाने दर्शकों के भीतर ग्रो करते हैं और लम्बे समय तक ठहरते हैं। उनका ये जादू बरक़रार है।
काश कि मणिरत्नम और कमल हासन जैसे विभूतियों से सुसज्जित ‘ठग लाइफ’ की कहानी पर भी समुचित काम हो गया होता तो ये फ़िल्म ‘ठग्गू के लड्डू’ का अहसास न देती। ‘ठग लाइफ’ देखनी हो तो बस कमल हासन के लिए देखी जा सकती है लेकिन उसके लिए कमल हासन को हर हाल में चाहते रहने वाला जूनून चाहिए।
आपके नज़दीकी सिनेमाघर में लगी है। सोच लीजिएगा। (पंकज दुबे मशहूर पॉप कल्चर कहानीकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, ‘स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़’ के होस्ट हैं।)