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01-08-2025 Vol 19

उफ, ‘कैटल क्लास’ में शशि थरूर!

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ओह! थरूर का छा जाना। पर वे भला कब सुर्खियों में नहीं रहे? वे भी तो आखिर चौधरी देवीलाल की जुबां से बतलाए “काले कौवों” की जमात के प्रतिनिधि हैं। बुद्धिवानों की वह जमात, जो गुलामी के डीएनए में रची-पकी है। यह चिरकुटों की वह जमात है जो दिल्ली की बादशाही-अंग्रेज सत्ता हो या प्रधानमंत्रियों की लुटियन सत्ता, इन्हीं के तेल से ज्ञान का दीप जलाने के लिए शापित है। देश में आखिर बुद्धि का भला महत्व कहां है जो वह स्वतंत्र, स्वायत्त और खुद्दार बने? यह जमात कभी सोनिया गांधी के तराने गाती हैं तो कभी नरेंद्र मोदी से चरणामृत पाती हैं।

ये पहले समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, उदारवाद की कांव-कांव करते उड़ते थे अब भगवा रंग में रंग कर हिंदू हद्य सम्राट नरेंद्र मोदी के पराक्रम की खातिर महान गौरव (great honor) के साथ बतौर नागरिक कर्तव्यनिष्ठा (matter of duty) में उनकी तूताड़ी बजाते हैं। बेचारे ठेठ पनामा जा कर ऑपरेशन सिंदूर की मार्केटिंग कर रहे हैं! पता नहीं नरेंद्र मोदी ने उन्हें सिंदूर की डिबिया दी या नहीं। यदि दी होगी तो निश्चित ही सिंदूर बांटने, लगाने का मौका नहीं चूकने वाले!

सचमुच 140 करोड़ लोगों की बुद्धि के प्रतिनिधि के नाते शशि थरूर हमारी सिंदूर सभ्यता के आर्दश ब्रांड एंबेसडर हैं! दुनिया की बाकी सभ्यताएं, पृथ्वी की गैर-हिंदू आबादी ‘सिंदूर’ से परिचित नहीं थी और न है। सो, पहला मौका है जब नरेंद्र मोदी और शशि थरूर की एक और एक ग्यारह की जोड़ी दुनिया में सिंदूर पहुंचा दे रही है! आश्चर्य नहीं होगा यदि कुछ महिनों बाद ज्ञानी, परमज्ञानी शशि थरूर यह किताब भी लिख दें- An Era of Sindoor!

शशि थरूर और सिंदूर डिप्लोमेसी

वाह, मोदीजी! गजब है आपकी सिंदूर लीला और गजब है भारत की कथित बुद्धि, बुद्धिजीवियों, आइडिया ऑफ इंडिया, सेकुलर इंडिया को ‘सिंदूर आइडिया ऑफ इंडिया’ में रंग देना! भारत की सभ्यता और संस्कृति को सिंदूर की विराटता में शशि थरूर, एमजे अकबर, आनंद शर्मा और जेएनयू में पढ़े जयशंकर आदि बारीकी से सचमुच प्रचारित कर रहे होंगे हैं। तभी तो इन चेहरों से आपका विश्वगुरू रूप उभरेगा!

इसलिए मोदीजी की ‘सिंदूर’ जैसी ही बड़ी उपलब्धी है बुद्धि, दिमाग, विवेक सबको प्रामाणिक तौर पर ‘कैटल क्लास’ में बैठा देना! सोचें, पिछले ग्यारह वर्षों पर! मोदीजी ने कितनी तरह के बुद्धिजीवियों, प्रगतिशीलों, वामपंथियों, सेकुलरों को गधेड़ों की ढेंचू-ढेंचू में बदल डाला है? हिसाब से प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने उस बुद्धि को पालतू बना कर बदला लिया है कि गुजरात में रहते मुझे इन लोगों ने जो ज्ञान बघारा था तो अब इनकों कौवों की कांव-कांव करते दिखाओ!

सोचें, शशि थरूर पर। जीवन में सब कुछ मिला। ईश्वर ने दिमाग दिया। खानदान की शानदार विरासत। विदेश में पढ़ाई के बाद शानदार करियर। अंग्रेजी भाषा, उसमें वाक् और लेखन दोनों में सरस्वती की अनुपम कृपा। संयुक्त राष्ट्र में नौकरी। उन्हें सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र का महासचिव बनाने के लिए देश की प्रतिष्ठा दांव पर लगाई।

वह नहीं हो पाया तो थरूर को सोनिया गांधी ने टिकट दिलवा कर तिरूवनंतपुरम से सांसद बनवाया। केंद्र में मंत्री बनाया। गांधी परिवार ने सचमुच ऐसा महत्व दिया कि गुलाम नबी आजाद, सिंधिया, हिमंता, जितिन प्रसाद आदि को तब निश्चित ही रंज हुआ होगा। वे सन् 2009 से सांसद चले आ रहे हैं। वे सोशल मीडिया के जमाने में अपनी लफ्जाजी से कभी नरेंद्र मोदी से अधिक फॉलोवर लिए हुए थे। तब, नरेंद्र मोदी को भी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उनसे रंज हुआ होगा कि यह व्यक्ति कैसी दिलफेंक अदाओं से दुनिया को रिझा रहा है। शाही जीवन भोग रहा है।

मगर सत्ता बदली और दिल्ली के तख्त पर जैसे ही नरेंद्र मोदी का राज आया तो सांप्रदायिकता के विरुद्ध छाती पीटने वाले सेकुलर, वामपंथी, लेखक, थिंक टैंक, फिल्मकार, प्रोफेसर चिरकुटों की तरह गाय-भेड़-बकरी की कैटल क्लास में ब्रांड एंबेसडर हो गए। इसलिए क्योंकि पॉवर के बिना जीवन ही क्या! कहते है शशि थरूर दरबारी भूख के साथ अपनी पत्नी की मौत की सालों से लटकी चली आ रही जांच के भय में भी जी रहे हैं! पर भला सत्तर साल की उम्र में भय में रहना!

उफ! हम हिंदू! एक तरफ बुद्धि से सिंदूर की डिप्लोमेसी और ऊपर से भूख व भय में खोखली कांव-कांव!

भले कोई न माने, लेकिन फिर नोट करें मेरी इस थीसिस को कि कितने ही ऑपरेशन सिंदूर हो जाएं बतौर नस्ल, कौम, और देश हजार साल की गुलामी से बनी पकी भय, भूख, भक्ति और दासता की मनोदशा में गहराता जा रहा है। इतिहास वही बनेगा जो रहा है!

Pic Credit: ANI
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हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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