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01-08-2025 Vol 19

वोट नहीं मिलेंगे तो बांटने की रणनीति

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मुस्लिम वोट को लेकर भाजपा की एक रणनीति यह भी है कि जहां संभव हो वहां वोट बांटने का प्रयास होना चाहिए। उसके लिए बहुआयामी रणनीति अपनाई जा रही है। एक रणनीति सहयोगी पार्टियों के जरिए वोट का बंटवारा कराने की है तो दूसरी ऐसे खिलाड़ी खड़े करने की है, जो वोट बांटने के काम आए। इसके लिए दो मिसाल दी जा सकती है। एक मिसाल महाराष्ट्र में अजित पवार की है। उनकी एनसीपी सरकार में सहयोगी है और एनडीए का घटक दल है। लेकिन अजित पवार इफ्तार दावत का आयोजन करते हैं और खुलेआम कहते हैं कि मुस्लिम भाइयों को आंख दिखाने वालों को छोड़ेंगे नहीं। यह बात वे तब कहते हैं, जब सीधे मुख्यमंत्री के बयान के बाद औरंगजेब की कब्र हटाने का विवाद भड़का हो।

जाहिर है अजित पवार अपने चाचा शरद पवार की विरासत के हिसाब से राजनीति कर रहे हैं और यह बात भाजपा के अनुकूल है। चुनाव में उन्होंने भाजपा के विरोध के बावजूद नवाब मलिक को टिकट दिया। भाजपा नवाब मलिक को दाऊद इब्राहिम का करीबी कहती रही। उन्होंने बाबा आजमी के बेटे को भी टिकट दिया। कई सीटों पर उनको मुस्लिम वोट मिले। भाजपा को इससे कोई परेशानी नहीं है। उसके पता है कि भाजपा और एकनाथ शिंदे के साथ मुस्लिम नहीं आएंगे लेकिन एनसीपी की तरफ जा सकते हैं। सो, उसने अपनी पोजिशन बनाए रखते हुए अजित पवार को मुस्लिम वोट की राजनीति करने दी। इसी तरह की राजनीति बिहार में जनता दल यू और लोक जनशक्ति पार्टी दोनों कर रहे हैं। नीतीश कुमार और चिराग पासवान दोनों की पार्टियां मुस्लिम हितों की बात करती रही हैं। भले वक्फ बोर्ड के मामले पर दोनों अलग थलग हुए हैं और मुस्लिम समाज उनका विरोध कर रहा है लेकिन पहले उनके प्रति मुसलमानों का सद्भाव रहा है। इस बार बिहार के चुनाव में दोनों वह काम करेंगे, जो काम महाराष्ट्र में अजित पवार ने किया या जो काम कर्नाटक में जेडीएस के जरिए करने की कोशिश हुई थी।

दूसरी रणनीति नए खिलाड़ी खड़े करने की है। इसकी मिसाल उत्तर प्रदेश में नगीना के सांसद चंद्रशेखर हैं। उन्होंने आजाद समाज पार्टी बनाई। इस तरह की कई पार्टियां कई राज्यों में बनी हैं, जिनका विस्तार से अध्ययन किया जा सकता है। चंद्रशेखर के दो फायदे हैं। पहला तो यह कि  मायावती से दलित और खास कर जाटव वोट अगर टूटता है तो वह अगर भाजपा की ओर नहीं आए तो कम से कम सपा और कांग्रेस की तरह नहीं जाए, यह सुनिश्चित किया जा सकता है आजाद समाज पार्टी के जरिए। दूसरा फायदा यह है कि अगर मायावती की ओर से टूट कर दलित वोट आता दिखेगा तो उनके साथ कुछ मुस्लिम भी जुटेंगे और इसका भी नुकसान भाजपा विरोधी पार्टियों को होगा। इसके लिए बहुत व्यवस्थित तरीके से चंद्रशेखर की छवि मुस्लिम हितैषी नेता की गढ़ी गई। वे सहारनपुर हिंसा के मामले में गिरफ्तार किए गए। उनके ऊपर रासुका लगा। लेकिन वे फटाफट रिहा भी हो गए। इसी तरह के मामले में सर्जिल इमाम और उमर खालिद बरसों से जेल में हैं। लेकिन चंद्रशेखर छूट गए। इसके बाद उनका दूसरा अभियान नागरिकता कानून में संशोधन यानी सीएए के विरोध का था। सहारनपुर दंगे और सीएए विरोध दोनों से उनकी मुस्लिम हितैषी की छवि बनी। यह छवि कितना काम आई इसका सबूत है नगीना लोकसभा सीट से उनका जीतना। जो नगीन एक समय बसपा और मायावती का गढ़ रहा है वहां चंद्रशेखर जीते और दूसरे स्थान पर भाजपा रही। यानी दलित का वोट उनके साथ गया तो मुस्लिम भी पूरी तरह से उनके साथ चला गया। समाजवादी पार्टी को सिर्फ एक लाख वोट मिला और बसपा तो महज 13 हजार वोट पा सकी। चंद्रशेखर मॉडल से भाजपा को बहुत लाभ हो सकता है।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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