भारत और अमेरिका के कारोबार को लेकर हल्ला मचा है। हर व्यक्ति को लग रहा है कि अमेरिका भारत को दबाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन ऐसी ही बात चीन को लेकर नहीं कही जाती है। जबकि चीन भारत का घोषित दुश्मन है और भारत व दुनिया ने मई में ही देखा है कि कैसे पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई यानी ऑपरेशन सिंदूर के समय चीन ने खुल कर पाकिस्तान का साथ दिया। फिर भी मोदी सरकार लगातार चीन के साथ उसी की शर्तों और उसकी टैरिफ पर भारत की खरीदारी बनाए हुए है। चीन से भारत को हर साल भारी घाटा होता है, जबकि अमेरिका के साथ कारोबार में भारत को फायदा होता है। यह भी दिलचस्प तथ्य है कि भारत का अमेरिका और चीन के साथ कारोबार लगभग बराबर का है। फर्क यह है कि अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में झुका है तो चीन के साथ कारोबार में व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में है।
भारत ने पिछले वित्त वर्ष में करीब 120 अरब डॉलर का कारोबार चीन के साथ किया। इसमें भारत का निर्यात सिर्फ 20 से 25 अरब डॉलर का था और आयात करीब एक सौ अरब डॉलर का। यानी एक सौ अरब डॉलर का व्यापार घाटा भारत को था। इसकी तुलना में अमेरिका के साथ कारोबार 130 अरब डॉलर का है, जिसमें भारत का आयात 35 से 40 अरब डॉलर का और निर्यात करीब 90 अरब डॉलर का है। यानी व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है। एक और दिलचस्प बात यह है कि चीन में भारतीय उत्पादों पर टैरिफ की दर पांच से 30 फीसदी तक है। भारत के कृषि उत्पादों पर तो चीन सबसे ज्यादा टैरिफ लगाता है। कपड़े पर आमतौर पर 10 से 15 फीसदी और इलेक्ट्रोनिक्स पर 15 से 20 फीसदी तक टैक्स लगाता है लेकिन कृषि उत्पादों पर 10 से 30 फीसदी तक टैरिफ लगाता है। खाने पीने की चीजों पर भी चीन बहुत ऊंची दर से टैरिफ लगाता है।
इसके उलट अमेरिका में भारतीय उत्पादों पर नाममात्र का टैरिफ लगता है। 10 फीसदी के बेसलाइन टैरिफ को अब जाकर राष्ट्रपति ट्रंप ने बढ़ाया है और उसे 25 फीसदी किया है। लेकिन अगर व्यापार संधि होती है तो भारत के उत्पादों पर अमेरिका में 15 से 20 फीसदी टैरिफ लगाने का प्रस्ताव है। हालांकि बदले में ट्रंप चाहते हैं कि भारत में अमेरिकी उत्पादों पर जीरो टैरिफ लगाया जाए। यह संभव नहीं है। लेकिन अगर खुले दिमाग से दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता होती है तो चीन के मुकाबले भारत निश्चित ही अमेरिका से बेहतर डील हासिल कर सकता है। तब ट्रंप को इतना खुन्नसी क्यों बनवा दिया?


