सब बेखबर हैं। आप, हम और पूरी दुनिया। इस बेखबरी के बीच का असल सत्य है, जो हर व्यक्ति किसी न किसी लड़ाई में अब सैनिक बना हुआ है। लड़ाई किसी मोर्चे की, किसी सरहद की नहीं है, बल्कि यह लड़ाई सुबह उठते ही मोबाइल फोन को उठाते ही शुरू हो जाती है। यह वह जंग है, जिसमें व्यक्ति ट्विट से तलवार चलाता हैं, इंस्टाग्राम से इमेज के झंडे गाड़ता हैं, व्हाट्सऐप से अफवाहों की फौज को आह्वान करता है कि उठो, चलो नौजवानों, आज फलां-फलां एक्शन है। राष्ट्र-राज्य हो, धर्म हो, विचारधारा हो, राजनीति हो या बाज़ार के हर मोर्चे, जीवन के हर पहलू में इंसान बिना वर्दी के सैनिक के रूप में लडता हुआ है, खपता हुआ है क्योंकि लड़े बिना चारा नहीं है!
पृथ्वी पर अब एक भी ‘नॉन-कॉम्बैट ज़ोन’ नहीं है। युद्ध अब केवल गोला-बारूद या सैनिक टुकड़ियों की भिड़ंत नहीं है, बल्कि विचारों, पहचान, उपभोक्तावाद, टेक्नोलॉजी और सत्ता की नई परिभाषाओं में भी मुठभेड है।
सोचें, शुक्रवार को अमेरिका के नजारे पर या इजराइल-ईरान की लड़ाई पर। अमेरिका लड़ाई का मैदान था। एक तरफ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके अनुयायी सैन्य परेड से अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहे थे तो दूसरी और उनके विरोधी शहरों की सड़कों पर मार्च करते हुए थे। अमेरिका राष्ट्रवाद, नेतृत्व वर्चस्वता का मैदान ए जंग है। इसमें धर्म, व्यापार, सभ्यता, व्यवस्था आदि के सभी पहलू जुड़े हुए हैं। ऐसे ही पश्चिम एशिया में केवल सैन्य टकराव नहीं है, बल्कि वह धर्मयुद्ध का मैदान है जो टीवी कैमरों, ड्रोन हमलों और ट्विटर थ्रेड्स के बीच भी लड़ा जा रहा है। इज़राइल बनाम हमास या इज़राइल बनाम ईरान की लड़ाई असल में यहूदी बनाम इस्लाम, और उसके पीछे अमेरिका बनाम चीन-रूस की छाया का एक व्यापक सभ्यतागत संघर्ष भी है।
रूस और यूक्रेन की लड़ाई हो या इजराइल की गजा क्षेत्र और ईरान से जो उसकी सैन्य जोर आजमाईश है वह पहली बार यहूदी बनाम इस्लाम की लड़ाई का वह लाइव प्रसारण है, जिससे अपने आप धर्म के सभी अनुयायी भभके हुए होंगे। मई में भारत और पाकिस्तान में मुठभेड़ हुई तो वह भी धार्मिकता के उसी भभके से थी, जिसे चाहे तो धर्मयुद्ध कहें या सभ्यतागत संघर्ष। जैसे अमेरिका में अंदरूनी जंग है वैसे भारत में भी है। कुछ अपवादों को छोड़कर पूरे यूरोप में इमिग्रेशन, राष्ट्रवाद, कट्टरपंथ बनाम उदारवाद की वह जंग है, जिसका अंत क्या होगा, इसका वैसे ही अनुमान नहीं लगा सकते जैसे ईरान बनाम इजराइल की लड़ाई को लेकर या रूस-यूक्रेन की लड़ाई को ले कर कुछ नहीं कहा जा सकता।
इन सबसे परे सोचें कि चीन बनाम पश्चिम की वर्चस्वता की लड़ाई में दुनिया कैसी उलझी हुई हैं? जैसे अमेरिका युद्धरत है तो चीन अपनी वैश्विक वर्चस्वता बनाने की लड़ाई में खपा हुआ है। उसे सभ्यता के संघर्ष के आईने में देखें या महाशक्तियों की होड़ लेकिन कुल मिलाकर लोग वैसे ही पैदल सैनिक हैं, जैसे क्रूसेड में थे या धार्मिक उन्मादों के समय होते हैं। मानों कोई कमी थी जो प्रकृति भी अपने तेवर और जलवायु परिवर्तन की मार से लोगों को मारती हुई है। लोग प्रकृति से मार खा रहे हैं, उससे लड़ भी रहे हैं!
भूमंडलीकण में गुंथा इक्कीसवीं सदी का यह मोड़ दुनिया के आठ अरब लोगों को सीधे कई तरह की लड़ाइयों में फंसाए हुए है। जो विकसित देश है उनमें लड़ाइयां अलग हैं और भारत जैसे गरीब, विकासशील देशों में अलग तरह की बदहाली है। इनमे लोग अपनी जिंदगी, अपने परिवार के लिए लगातार लड़ने को शापित हैं। मेरा मानना है कि भारत के 140 करोड़ लोगों की भीड़ की नियति ही यह है कि वे जीने के लिए व्यवस्था से चौबीसों घंटे संघर्ष करें। नौकरशाही से लेकर राजनीति, बाजार, चिकित्सा, शिक्षा, खानपान का हर पहलू भारत के नागरिक के लिए संघर्ष की वह चुनौती है, जिसमें अच्छे से इलाज हो जाए, साफ-सुथरा खाना मिल जाए, कायदे की शिक्षा मिले तो वह युद्ध जीतने से कम नहीं।
विषयांतर हो गया है। मौजूदा वैश्विक लड़ाइयों पर फोकस करें। याद करें कि आधुनिक काल में ऐसा धर्मयुद्ध कब हुआ, जैसा अभी यहूदी बनाम इस्लाम में होता हुआ है? इस लड़ाई के मूल में धर्म है। एक के पीछे अमेरिका है तो दूसरी ओर चुपचाप चीन और रूस हैं। धर्म लड़ रहा है वही खेला सभ्यतागत है।
दुनिया को वापिस किसी नए क्रूसेड की ओर ले जाया जा रहा है। इसलिए समझ लेना चाहिए कि ये लड़ाइयां केवल शासन और भूगोल की नहीं, बल्कि मनुष्यता के स्वरूप को तय कराने की हैं। अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप पर गौर करें। वे अमेरिका का नया स्वरूप बना देने की ठाने हुए हैं। तभी अमेरिका महाशक्ति की जगह दो टुकड़ों में बंटा एक युद्धरत मैदान दिख रहा है। एक ओर डोनाल्ड ट्रंप और उनके अनुयायी हैं, जो अपनी राष्ट्रवादी परेडों से शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं। दूसरी ओर, सड़कों पर उनके विरोधियों के प्रदर्शन हैं। जाहिर है लड़ाई विचारों के अलावा नस्ल, नेतृत्व, व्यवस्था, और धार्मिक पहचान के टकरावों की भी है।
मई में भारत और पाकिस्तान की सीमाओं पर जो मुठभेड़ें हुईं, वे केवल सैन्य कार्रवाई नहीं थीं। वे सांस्कृतिक और धार्मिक ध्रुवीकरण की छायाओं से प्रेरित थीं। उधर भारत में भीतर भी ध्रुवीकरण की जोर आजमाईश है। धर्म बनाम धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद बनाम बहुलतावाद, संस्कृति बनाम संविधान में विभाजित मानस। मेरा मानना है भारत में आम नागरिकों की रोजमर्रा की जिंदगी संघर्ष ज्यादा विकट है। लोग हर चीज के लिए सैनिक की तरह संघर्षरत हैं। अस्पताल में इलाज की लड़ाई, स्कूल में शिक्षा की लड़ाई, राशन में शुद्धता की लड़ाई, नौकरी में योग्यता की लड़ाई, यह सब लोगों के जीवन को असैनिक योद्धा बनाए हुए है। एक आम आदमी के लिए अब ब्यूरोक्रेसी से लड़ना, रिश्वत से लड़ना, ठगी से बचना किसी महाभारत से कम नहीं। सभी को चौबीसों घंटे जीने के लिए, न कि जीतने के लिए संघर्षरत रहना होता है।
ऐसा विकसित देशों में नहीं है। उनमें नई तरह की लड़ाइयां है। पूरा यूरोप इमिग्रेशन, इस्लाम, और उदारवाद-अनुदारवाद की जंग में अलग-अलग मोर्चे लिए हुए है। यूरोप शरणार्थियों का अब स्वागत नहीं कर रहा है, बल्कि अपनी सीमाओं को बंद करने की ओर है। फ्रांस, नीदरलैंड, स्वीडन जैसे देशों में भी चुनाव अब राष्ट्रवाद और उदारवाद के बीच युद्ध हैं। इमिग्रेशन के मुद्दे पर राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे को ‘इस्लामपरस्त’ और ‘राष्ट्रद्रोही’ कहने लगी हैं। इससे आबादी में लोगों के रिश्ते भभके हुए हैं। एक ओर वे लोग हैं जो ‘मल्टीकल्चरलिज़्म’ के हामी हैं, तो दूसरी ओर वे, जो ‘क्रिश्चियन यूरोप’ की वापसी चाहते हैं।
इस सब के ऊपर, एक और लड़ाई है जो मुखर नहीं चुपचाप है मगर वह दुनिया की किस्मत में सर्वाधिक निर्णायक होगी। यह विश्व व्यवस्था की ल़ड़ाई है। चीन बनाम पश्चिम के वर्चस्व का घना संघर्ष है। हुआवे बनाम एपल, युआन बनाम डॉलर, दक्षिण चीन सागर बनाम ताइवान, ये इस युद्ध के नए रूप हैं। टेक्नोलॉजी, मुद्रा, व्यापार, शिक्षा, यहां तक कि कोविड वैक्सीन तक, हर क्षेत्र अब भू-राजनीतिक मोहरा हैं।
और मानों यह सब कम हो जो प्रकृति भी इंसान से लड़ रही है, उसे पदा रही है! अब जलवायु परिवर्तन केवल तापमान की समस्या नहीं, बल्कि युद्ध का एक और चेहरा है। ऑस्ट्रेलिया की आग, कैलिफोर्निया का सूखा, पाकिस्तान की बाढ़ और भारत में भारी गर्मी, बेमौसम बरसात जैसी खबरें बतला रही हैं कि मानव सभ्यता और प्रकृति दोनों आमने-सामने की, आर-पार की लड़ाई पर आमदा हैं। क्या नहीं?