nayaindia Quran Burning Sweden इराकी ने कुरान जलाई और स्वीडन मुश्किल में!

इराकी ने कुरान जलाई और स्वीडन मुश्किल में!

मुसलमानों के लिए पवित्रतम दिनों में से एक ईदुज़जुहा पर स्वीडन में एक मस्जिद के सामने कुरान जलाए जाने से जबरदस्त बवाल है। स्वीडन एक अमनपसंद देश है। और विश्व शांति इंडेक्स में सबसे ऊपर। लेकिन अचानक वह इस्लाम का बैरी नज़र आने लगा है।निहायत असभ्य घटना को होने देने के लिए स्वीडन की सरकारी मशीनरी की आलोचना हो रही है। उसकी नाटो में प्रवेश की उम्मीद कम हो गई है।

मस्जिद के बाहरस्वीडन में रह रहे एक ईराकी नागरिक सलवान मोमिका ने कुरान की प्रति जलाई थी। लगता है स्वीडन की पुलिस ने अपनी बात रखने की आज़ादी को बनाये रखने की अपनी नीति के तहत उसे ऐसा करने की इज़ाज़त दी। हालांकि स्वीडन की सरकार ने इसकी आलोचना की और उसने कहा है कि इससे उसे धक्का लगा है। सऊदी अरब स्थित इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) ने इस घटना पर कड़े शब्दों में आक्रोश जाहिर किया। इस बीच ईराक में एक लोकप्रिय मौलवी मुकतदा-अल-सद्र के आव्हान पर स्वीडन के बगदाद स्थित दूतावास के बाहर सैकड़ों लोगों ने प्रदर्शन किया। मौलवी ने स्वीडन को ‘इस्लाम विरोधी’ बताते हुए ईराक सरकार से मांग की कि स्वीडन से कूटनीतिक संबंध तोड़ लिए जाएं। कई मुस्लिम देशों में स्वीडन के राजदूतों को तलब करके इस घटना पर आक्रोश व्यक्त किया गया।मिस्रने कुरान जलाए जाने को ‘शर्मनाक’ बताया और सऊदी अरब ने कहा कि “इन घृणास्पद घटनाओं के बार-बार होने को किसी भी तरह मंज़ूर नहीं किया जा सकता”।मलेशिया के विदेश मंत्री ने कहा कि जिस समय मुसलमान अपने महत्वपूर्ण त्यौहार की छुट्टी मना रहे थे तभी पावन कुरान को अपवित्र करने की इस घटना से ‘पूरी दुनिया के मुसलमानों में रोष है”।

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कड़ा और स्पष्ट संदेश दिया। उन्होंने कहा कि उनका देश कभी भी “उकसावे की राजनीति” के आगे नहीं झुकेगा। मुसलमानों के लिए पवित्र वस्तुओं के अपमान को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ नहीं माना जा सकता। इस घटना के बाद तुर्की ने स्वीडन के राजदूत को तलब किया और स्वीडन के रक्षा मंत्री की पहले से तय अंकारा यात्रा निरस्त कर दी।

इस घटना ने नाटो में स्वीडन के प्रवेश को और कठिन बना दिया है। स्वीडन और तुर्की के राजनयिक संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हैं। तुर्की की सरकार स्वीडन के नाटो का सदस्य बनने के प्रयासों में रोड़े अटका रही है। तुर्की चाहता है कि स्वीडन वहां रह रहे कुर्द-समर्थकों और एक प्रतिबंधित धार्मिक समूह, जिसे तुर्की आतंकवादी मानता है, के प्रति सख्त रवैया अपनाए। बुधवार को स्टाकहोम में कुरान जलाए जाने की घटना जनवरी में हुई एक ऐसी ही घटना का दोहराव थी जिसमें एक धुर-दक्षिणपंथी डेनिश-स्वीडिश व्यक्ति ने स्वीडन की राजधानी में स्थित तुर्की के दूतावास के बाहर कुरान की प्रति जलाई थी। इस घटना से भी दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा था। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राईस ने कहा कि फिनलैंड और स्वीडन नाटो गठबंधन में शामिल होने को तैयार हैं, लेकिन उन्होंने इस पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया कि क्या वाशिंगटन यह मानता है कि अर्दोआन की टिप्पणियों के बाद उनके लिए दरवाजा पूरी तरह से बंद हो गया है। प्राइस ने कहा, ‘‘अंततः इस बारे में फैसले के लिए फिनलैंड और स्वीडन को तुर्की की हाँ हासिल करनी होगी”।प्राईज ने पत्रकारों से कहा कि ऐसी पुस्तक, जिसे बहुत से लोग पवित्र मानते हैं, को जलाना एक अत्यंत अपमानजनक कृत्य है, और अमेरिका यह जानता है कि स्वीडन में हुई घटना के पीछे जिनका हाथ है वे जानबूझकर अटलांटिक के दोनों छोरों के देशों और वाशिंगटन के यूरोपीय मित्रों की एकता को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं।

लिथुनिया की राजधानी विल्नुस में जुलाई 11-12 को होने वाले नाटो के सम्मेलन के पहले फिनलैंड, स्वीडन और तुर्की ब्रुसेल्स में एक उच्चस्तरीय बैठक के लिए राजी हो गए थे। किंतु ताजा घटना से इस बैठक के रद्द होने का खतरा पैदा हो गया है। तुर्की की आपत्ति के अलावा एक और समस्या भी है और वह भी छोटी नहीं है। बात यह है कि हंगरी ने भी अब तक स्वीडन के प्रयासों पर मुहर नहीं लगाई है। हंगरी की सरकार ने कहा है कि यह उसका आखिरी फैसला नहीं है। लेकिन इस हफ्ते उसने यह संकेत दिया कि देश के संसद पतझड़ के पहले इस मुद्दे पर मतदान तक पर विचार नहीं करेगी।

अब सभी की नजरें अमेरिका पर हैं और यह भी कहा जा रहा है कि तुर्की को ही नाटो से बाहर किया जा सकता है। अगले पखवाड़े नाटो सम्मेलन के दौरान बहुत बदलाव आ सकता है। फिलहाल तुर्की का पक्ष ज्यादा मज़बूत है और स्वीडन के लिए कोई उम्मीद नहीं है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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