इजराइल हमास को नहीं बल्कि गाजा को ही नेस्तनाबूद करने पर आमादा है। वह ईंट-दर-ईंट, इंसान-दर-इंसान गाजा को ख़त्म कर रहा है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने शायद तय कर लिया है कि वे गाजा में एक भी फिलिस्तीनी को नहीं बचने देंगे। इजराइली सेना ने कहा था कि वह एक नेक काम के लिए – आतंकवाद के सफाए के लिए – युद्ध लड़ रही है। मगर ऐसा लगता नहीं है। इजराइल के इरादे भयावह हैं। वह सुरक्षा के बहाने एक इलाके, वहा के लोगों का सफाया कर रहा है।
गाजा में मकान खाक में मिल गए हैं। अस्पताल कब्रिस्तान बन गए हैं और जहाँ बच्चे खेला करते थे अब वे वहां दफन हैं। ईद – जो ख़ुशी का और इबादत का त्यौहार है – खुले आसमान के नीचे मनाया गया। ड्रोन की आवाज़ों और हवाई हमलों के धमाकों के बीच। अब तो यह जंग भी नहीं लग रही है। यह एक-तरफ़ा कत्लेआम है – जो अनवरत, योजनाबद्ध ढंग से अंजाम दिया जा रहा है।
और बाकी दुनिया? वह जैसे डेढ़ साल पहले तमाशा देख रही थी, आज भी तमाशा देख रही है। केवल देख रही है, कुछ कर नहीं रही है। जो नेता पहले मानवाधिकारों की बात करते थे वे अब केवल व्यापार घाटे और सीमा को सील करने की बातें कर रहे हैं। गाजा के लिए सुर्ख़ियों में जगह नहीं बची है। दुनिया के सामने दूसरी चिंताएं हैं – ट्रम्प का टैरिफ युद्ध, घरेलु अफरातफरी और आर्थिक मुसीबतें।
गाजा के साथ मनमानी करने की मानो खुली इजाजत दे दी गई है। अब तो गाजा इस दुनिया का हिस्सा भी लगता। ऐसा लगता है कि वह किसी दूसरे ग्रह पर है जहां धरती के नियम लागू नहीं होते, जहाँ के रहवासियों से हमें कोई सहानुभूति नहीं है और जहां केवल दुःख और पीड़ा का राज होने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। वह एक ऐसी जगह है जो चरों तरफ से बंद है, जहां आकाश से आग बरसती है, जहां बसंत नहीं खिलखिलाता और जहां जमीन को केवल लाशों को दफन करने के लिए खोदा जाता है। और ज्यादा खुदाई करने की जरूरत भी नहीं पड़ती क्योंकि दफन किए जाने वालों में से बहुत से इतने छोटे बच्चे होते हैं जिन्हें बोलना भी नहीं आता। गाजा में कोई और कुछ नहीं घुस सकता- न विदेशी पत्रकार, न राहतकर्मी और न किसी प्रकार की मदद। स्थानीय पत्रकारों को जान से मारा जा रहा है। चंद अंतर्राष्ट्रीय अदालतें और मानवाधिकार संस्थाएं जो इस घृणित अपराध को होते देख चुप बैठने को तैयार नहीं हैं, उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। वे ताकतवर देश जो इस लड़ाई को बंद करवा सकते हैं, वे देश जो इजराइल के प्रायोजक हैं, उसे ताकत देते हैं, वे या तो इजराइल की मनमानी को नजरअंदाज कर रहे हैं या उसे सही ठहरा रहे हैं। और ट्रंप तो इस पर तालियां भी बजाते हैं।
‘द इकानामिस्ट’ के अनुसार इजराइली सुरक्षा अधिकारियों ने यह साफ कर दिया है कि वे दक्षिणी गाजा में स्थित रफाह क्षेत्र को पूरी तरह खाली करवाएंगे। यह क्षेत्र गाजा की कुल भूमि का करीब 20 प्रतिशत है। इसी तरह की कवायद पट्टी के उत्तर में स्थित एक अपेक्षाकृत छोटे इलाके में भी की जा रही है। पिछले महीने इजरायली सेना ने रेड क्रिसेंट के कार्यकर्ताओं को जान से मारकर उन्हें उनकी गाड़ियों समेत जमीन में दफन कर दिया। एक मोबाइल फोन से हासिल किए गए फुटेज से साफ है कि इजराइल का यह दावा बेबुनियाद है कि दल के सदस्यों की गतिविधियां संदेहास्पद थीं। पिछले हफ्ते बीबीसी के न्यूज नाईट कार्यक्रम में एक ट्रामा सर्जन की वीडियो डायरी प्रसारित की गई और उनका इंटरव्यू भी दिखाया गया। इससे साफ है कि मासूमों का खून कितनी बेरहमी से बहाया जा रहा है। बच्चे सुबह उठकर पाते हैं कि उन्हें लकवा मार चुका है या उनके पेट बम के छर्रों से भरे हुए हैं।
जहां तक युद्धविराम का प्रश्न है, वह शायद इजराइल को ब्रेक देने के लिए लागू किया गया था। इजराइल ने इस युद्धविराम को पहले तोड़ा जब उसने 18 मार्च को गाजा पर हवाई हमले किए। तब से लेकर अब तक उसके जमीनी हमलों में 1,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। इस बीच भूखे और परेशान गाजा के कुछ हताश निवासी हमास के खिलाफ हो गए हैं और उसके राज का विरोध कर रहे हैं। इससे घबराकर हमास ने ऐसे संकेत दिए हैं कि वह कुछ हफ्ते लंबे एक और अस्थायी युद्धविराम के लिए तैयार है जिसके दौरान वह गाजा में अब बचे 59 इजरायली बंधकों में से कुछ को रिहा कर देगा। हालांकि माना यह जा रहा है कि उनमें से अधिकांश मर चुके हैं। हमास इनके बदले फिलिस्तीनी कैदियों की रिहाई चाहता है। मगर अगर ऐसा हो भी जाए तब भी इजराइल का इरादा युद्ध जारी रखने का है।
Also Read: तहव्वुर राणा से पूछताछ शुरू
इस बीच इजराइल के अत्याचारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन ठंडे पड़ गए हैं। अमेरिका, जो इन विरोध प्रदर्शनों का मुख्य केन्द्र था, में अब केवल इमीग्रेशन और कस्टम्स की चर्चा होती है। ट्रंप ने कहा था कि वे चाहते हैं कि उनके व्हाईट हाऊस में पहुंचने से पहले दुनिया में चल रही सभी जंगें खत्म हो जाएं। मगर अब वे अपनी एक नई जंग लड़ने में व्यस्त हैं जिसमें उनका मुख्य हथियार है टैरिफ।
गाजा अब खबरों में नहीं है। वह अब ट्रेंड नहीं करना। एक किस्म की थकान दुनिया पर हावी हो गई लगती है। खून में लथपथ बच्चों और कई टुकड़ों में बंटी लाशों की तस्वीरें अब भी विचलित करती हैं मगर स्तब्ध नहीं करतीं, दिमाग को सुन्न नहीं करतीं, कई लोगों ने तो उन्हें देखना ही बंद कर दिया है, उन पर कमेंट करना तो दूर की बात है। गाजा हमारी दुनिया की सामूहिक चेतना में धुंधला गया है।
पर क्या गाजा को भुलाया जा सकता है? क्या गाजा को भुलाया जाना चाहिए? क्या हमने होलोकॉस्ट को भुला दिया है? क्या यहूदियों के कत्लेआम की कहानियों से रंगे पन्ने हमारी इतिहास की पुस्तकों से फाड़कर फेंक दिए गए हैं? क्या जर्मनी में जो कुछ हुआ था वह हमारे सामूहिक अंतःकरण से गायब हो चुका है? बिलकुल नहीं। हम किताबों, फिल्मों, भाषणों में उसे याद करते रहते हैं और हर बार हम पूरी गंभीरता से, दृढ़ता से यह दुहराते हैं, अपने-आप से यह वायदा करते हैं कि हम होलोकास्ट को फिर से नहीं होने देंगे। मगर हम गाजा में हो रहे अनाचार-अत्याचार चुपचाप देख रहे हैं। सवाल यह नहीं है कि गाजा को भुलाया जा सकता है या नहीं। सवाल यह है कि कितनी बार इतिहास के अपने आपको दुहराने के बाद हम उससे सबक लेंगे। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)