ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहाद उल मुसलमीन यानी एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने पिछले करीब तीन महीने में जो राजनीति की है उससे उनकी पार्टी की और उनकी छवि में बड़ा बदलाव हुआ है। पहलगाम कांड के बाद ओवैसी ने एक राष्ट्रवादी नेता की छवि बनाई है। उन्होंने सबसे तीखे शब्दों में पाकिस्तान की आलोचना की। इसके बाद केंद्र सरकार ने सारी दुनिया को आतंकवाद और पाकिस्तान के बारे में बताने के लिए भेजा तो एक डेलिगेशन में ओवैसी भी थे। विदेश गए डेलिगेशन में उन्होंने किसी भी विपक्षी नेता के मुकाबले बेहतर भूमिका निभाई। उन्होंने कहीं भी अपनी बात नहीं बदली। वे उसी लाइन पर रहे, जो विदेश मंत्रालय ने तय की थी। उन्होंने इस्लामिक देशों के सामने पाकिस्तान की आलोचना की और उसे आतंकवाद फैलाने वाला देश बताया।
अब उनकी पार्टी ने बिहार में एक ऐसा दांव चला है, जिससे स्थायी रूप से उनकी पार्टी की छवि बदलेगी। उनकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तर उल ईमान ने लालू प्रसाद को चिट्ठी लिख कर कहा कि एमआईएम को महागठबंधन में शामिल किया जाए। उन्होंने लिखा कि भाजपा विरोधी वोटों का बिखराव रोकने के लिए जरूरी है कि एमआईएम गठबंधन का हिस्सा बने। राजद की ओर से पहली प्रतिक्रिया में पार्टी के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने इसके लिए मना कर दिया है। उन्होंने कहा है कि ओवैसी की पार्टी को बिहार चुनाव नहीं लड़ना चाहिए और महागठबंधन की मदद करनी चाहिए। लेकिन ऐसे तो उनकी पार्टी कहीं चुनाव नहीं लड़ पाएगी। असल में उन्होंने राजद और कांग्रेस दोनों को उलझा दिया है। ये दोनों पार्टियां कहती रही हैं कि ओवैसी की पार्टी भाजपा की बी टीम है और हर बार राजद, कांग्रेस को हराने के लिए चुनाव लड़ती है। लेकिन इस बार उन्होंने अपनी ओर से तालमेल की पहल की है। अगर राजद, कांग्रेस तालमेल के लिए तैयार नहीं होते हैं तो फिर कैसे एमआईएम पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाएंगे! राजद और कांग्रेस की स्थिति सांप छुछुंदर वाली हो गई है। अगर तालमेल करते हैं तो भाजपा को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने का मौका मिलेगा और तालमेल नहीं करते हैं तो वे अकेले लड़ेंगे और उनको भाजपा की बी टीम भी नहीं कहा जा सकेगा।