बिहार की तीनों बड़ी पार्टियां राष्ट्रीय जनता दल, भाजपा और जनता दल यू दबाव में हैं क्योंकि उनकी सहयोगी छोटी पार्टियां तेवर दिखा रही हैं। छोटी पार्टियों को पता है कि चुनाव से पहले गठबंधन बचाने की जिम्मेदारी बड़ी पार्टियों की है और बड़ी पार्टियां उनकी बात मान सकती हैं। इसलिए सबने अपनी अपनी मांग बढ़ा दी है। अगर एनडीए की बात करें तो तीन छोटी पार्टियां हैं, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा। इनमें से चिराग पासवान पिछली बार अकेले लड़े थे और कुशवाहा ने एक अलग गठबंधन बनाया था, जिसमें एमआईएम और बसपा शामिल थे। मांझी की पार्टी एनडीए में थी और उनको सात सीटें मिली थीं, जिनमें से चार पर जीत हुई थी। अब मांझी 15 से 20 सीटों की मांग कर रहे हैं और नहीं मिलने पर 50 से एक सौ सीटों पर लड़ने की बात कर रहे हैं। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि वे चिराग को साइज में लाने के लिए भाजपा का खेल खेल रहे हैं। चिराग 40 सीट मांग रहे हैं और 30 से कम पर राजी नहीं होने की बात कर रहे हैं। कुशवाहा कुछ कह नहीं रहे हैं लेकिन उनको भी आठ से कम सीट नहीं चहिए।
उधर इंडिया में राजद के अलावा पांच पार्टियां हैं। कांग्रेस, तीन लेफ्ट पार्टियां और एक मुकेश सहनी की वीआईपी। इनके अलावा पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी और हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा को गठबंधन में शामिल कराया गया है। यहां भी शह और मात का खेल चल रहा है। तेजस्वी यादव ने 243 सीटों पर लड़ने की बात कही है तो कांग्रेस भी 243 सीटों पर आवेदन लेकर बैठी है। मुकेश सहनी 60 सीट मांग रहे हैं और उनके नेता कह रहे हैं कि 30 से कम सीट पर समझौता नहीं होगा। लेफ्ट पार्टियों में सीपीआई और सीपीएम को समस्या नहीं है लेकिन सीपीआई एमएल को 40 सीटें लड़नी है। पिछली बार उसको 19 सीटें मिली थीं। सबसे ज्यादा दबाव कांग्रेस का है, जो पिछली बार की 70 सीटें फिर हासिल करना चाहती है, जबकि गठबंधन में 50 से 55 सीट की गुंजाइश ही बन रही है। वहां माना जा रहा है कि मुकेश सहनी के जरिए राजद ने कांग्रेस पर दबाव बनाया है।


