उम्मीद की जा रही थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के लिए बिहार जा रहे हैं तो वे एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार को लेकर बना सस्पेंस दूर करेंगे। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। मोदी ने यात्रा के पहले दिन यानी गुरुवार को अपनी पार्टी की कोर कमेटी के नेताओं के साथ लंबी बैठक हुई। पटना के वीरचंद पटेल मार्ग पर स्थित पार्टी कार्यालय में उन्होंने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश प्रभारी, संगठन मंत्री, बिहार व झारखंड के संघ के प्रभारी और दोनों उप मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री ने बैठक की। बताया जा रहा है कि इस बैठक में भी नीतीश के नाम की चर्चा नहीं हुई। जानकार सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के मामले में प्रधानमंत्री ने कुछ नहीं कहा। यह अपने आप में भाजपा के प्रदेश नेताओं के लिए एक संकेत था कि उन्हें क्या करना है।
इसके अगले दिन रोहतास जिले से बिक्रमगंज में जनसभा थी, जिसमें नीतीश कुमार मंच पर मौजूद थे और पार्टी के नेता उम्मीद कर रहे थे कि प्रधानमंत्री उनके नाम का ऐलान करेंगे या कम से कम कोई ऐसा संकेत देंगे, जिससे लगे कि अगला चुनाव नीतीश के नेतृत्व में लड़ा जाएगा और चुनाव के बाद वे मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री ने ऐसा कुछ नहीं कहा। उलटे प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य सरकार के कामकाज की तारीफ करने में कंजूसी बरती। वे केंद्र सरकार के कामों के बारे में बताते रहे और उनके भाषण का फोकस ऑपरेशन सिंदूर पर रहा। उन्होंने पहलगाम कांड के बाद 24 अप्रैल को बिहार के मधुबनी में दिए अपने भाषण की याद दिलाई और कहा कि वे वादा करके गए थे कि आतंकवादियों को मिट्टी मिला देंगे तो वह वादा पूरा करने के बाद ही बिहार आए हैं। भाजपा नेता और उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के भाषण में भी केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री की तारीफ थी। उन्होंने कहा कि वे वित्त मंत्री के दौर पर झोला लेकर केंद्र से मांगने जाते हैं तो बोरा भर कर पैसा मिलता है।
ध्यान रहे मधुबनी की तरह बिक्रमगंज की सभा को भी सफल बनाने के लिए जनता दल यू ने बड़ी मेहनत की थी। पार्टी के नेताओं ने खूब भीड़ जुटाई थी और उम्मीद कर रहे थे कि इस सभा में नीतीश कुमार के नाम की घोषणा हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तभी सवाल है कि अब नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के नेता क्या करेंगे? जनता दल यू के जानकार सूत्रों का कहना है कि पार्टी नीतीश कुमार के नाम का प्रचार करती रहेगी। उसने ‘पच्चीस से तीस फिर से नीतीश’ का नारा दिया है वह नारा लगता रहेगा। जदयू के जानकार नेताओं का कहना है कि पार्टी इस बात के लिए दबाव नहीं बनाएगी कि नीतीश के नाम की घोषणा की जाए, बल्कि पार्टी ज्यादा सीट लेने के लिए दबाव बनाएगी। पार्टी नेताओं का कहना है कि पिछली बार विधानसभा चुनाव में भाजपा के मुकाबले जदयू पांच सीट ज्यादा लड़ी थी। इस बार भी उसे ज्यादा सीट चाहिए। यह भी कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में जदयू ने भाजपा के लिए एक सीट ज्यादा छोड़ी थी तो उस समय यह समझौता हुआ था कि विधानसभा में जदयू ज्यादा सीट पर लड़ेगी। जदयू की रणनीति यह दिख रही है कि ज्यादा सीट लेकर लड़े ताकि चुनाव में अपने आप यह मैसेज बने की ज्यादा सीट लड़ने वाले का मुख्यमंत्री बनेगा और दूसरे चुनाव के बाद ऐसी स्थिति बने कि नीतीश के बगैर किसी की सरकार नहीं बन पाए। जदयू की इस मांग से एनडीए में सीट बंटवारा अटकेंगे और विवाद बढ़ेगा।