एक तरफ नीतीश कुमार और लालू प्रसाद ने नजदीकी दिखा कर भाजपा को संदेश दिया तो दूसरी ओर भाजपा ने नीतीश पर दबाव डाल कर लालू परिवार से दूरी बढ़वाने का प्रयास किया है। नीतीश कुमार की सरकार ने लालू प्रसाद के बेटे और पिछली सरकार के उप मुख्यमंत्री सहित तीन मंत्रियों के पिछले एक साल के कामकाज की समीक्षा कराने का ऐलान किया है। गौरतलब है कि तेजस्वी यादव के पास सड़क परिवहन के साथ साथ स्वास्थ्य और शहर विकास जैसे बड़े मंत्रालय थे। नीतीश सरकार ने इन तीनों विभागों में पिछले साल एक अप्रैल से किए गए फैसलों की समीक्षा का आदेश दिया है। इन तीनों विभागों की फाइल मंगाई गई है। इसके अलावा दो और मंत्रियों- ललित यादव और रामानंद यादव के विभागों में पिछले एक साल में हुए फैसलों की भी समीक्षा की जाएगी। हालांकि यह विभागीय समीक्षा है लेकिन इस आदेश के पंडोरा बॉक्स खुल सकता है।
‘रशिया विदाउट नवेलनी’
माना जा रहा है कि भाजपा के दबाव में नीतीश को यह फैसला करना पड़ है। इससे पहले भी तेजस्वी उप मुख्यमंत्री रहे थे लेकिन तब हटने के बाद ऐसी कोई समीक्षा नहीं हुई थी। माना जा रहा है कि लालू प्रसाद के परिवार से नीतीश की दूरी बढ़वाने के मकसद से ऐसा कराया जा रहा है। इसमें खतरा यह है कि लालू प्रसाद के परिवार के साथ साथ नीतीश के कुछ चहेते अधिकारी भी जांच के घेरे में आएंगे। ध्यान रहे बिहार में सरकार अधिकारियों के सहारे ही काम करती है और हर विभाग में नीतीश के चुने हुए अधिकारी ही सचिव बनते हैं। सो, अधिकारी अलग चिंतित हुए हैं और पिछले एक साल में जिन कंपनियों को बिहार में ठेके मिले हैं उनकी परेशानी अलग बढ़ी है। उनको लग रहा है कि काम रूक सकता है और आर्थिक नुकसान हो सकता है। इस फैसले के साथ मुश्किल यह है कि आगे चल कर बाकी मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा करानी पड़ सकती है। ऐसा नहीं हो सकता है कि सिर्फ तीन यादव मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा हो और बाकी बच जाएं। इसका राजनीतिक असर भी संभव है और सबसे ज्यादा खतरा इस बात का है कि अगर सरकार के आदेश को आधार बना कर किसी ने हाई कोर्ट में पीआईएल करके सीबीआई जांच की मांग कर दी और अदालत ने जांच की मंजूरी दे दी तो नीतीश के हाथ में भी कुछ नहीं रह जाएगा।