बहुजन समाज पार्टी अपनी निष्क्रियता, संगठन की कमजोरी और भाजपा की बी टीम बन जाने की धारणा के चलते उपचुनाव में हारी है लेकिन पार्टी की प्रमुख मायावती इस बात को स्वीकार नहीं कर रही हैं। उनको लग रहा है कि ईवीएम के चलते पार्टी हार गई है। तभी उन्होंने नौ सीटों के उपचुनाव के नतीजों के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें हर बार की तरह उन्होंने एक लिखित बयान पढ़ा तो कहा कि जब तक चुनाव आयोग ईवीएम से जुड़ी चिंताओं का निराकरण नहीं करता है तब तक उनकी पार्टी उपचुनाव नहीं लड़ेगी। ध्यान रहे मायावती की पार्टी पहले भी उपचुनाव नहीं लड़ती थी। इसलिए उपचुनाव नहीं लड़ने की बात का खास मतलब नहीं है।
सवाल है कि जब ईवीएम में उनको किसी तरह की गड़बड़ी का अंदेशा है तो वे आम चुनाव लड़ने से इनकार क्यों नहीं कर रही हैं? वे इस मसले पर आगे आकर बाकी पार्टियों को एकजुट करने और ईवीएम का विरोध करने वाले सभी लोगों को साथ लाने का प्रयास क्यों नहीं कर रही हैं? असल में उनको अपने समर्थकों को यह मैसेज देना था कि पार्टी पहले की तरह मजबूत है और ईवीएम के कारण हारी है। यह मैसेज देने की जरुरत इसलिए थी क्योंकि कई सीटों पर खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी को बसपा से बहुत ज्यादा वोट मिले हैं। बसपा हजार, दो हजार वोट वाली पार्टी रह गई। तभी उनको सामने आकर ईवीएम पर ठीकरा फोड़ना पड़ा। वे यह भी साबित करने की कोशिश कर रही हैं कि चंद्रशेखर भाजपा के आदमी हैं इसलिए उनको ज्यादा वोट दिलाए गए।