सरकार ने खुद यह खबर मीडिया में यह खबर बनवाई कि सीबीआई निदेशक के नाम पर सहमति नहीं बन पाई है। उसके साथ ही यह भी खबर आई कि सहमति नहीं बनने पर मौजूदा सीबीआई निदेशक प्रवीण सूद को एक साल का सेवा विस्तार मिल सकता है। गौरतलब है कि प्रवीण सूद 25 मई को दो साल का कार्यकाल पूरा करके रिटायर होने वाले हैं। उससे पहले नए निदेशक के नाम पर विचार के लिए सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में उनके आधिकारिक आवास पर चयन समिति की बैठक हुई। इसमें चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी शामिल हुए। बैठक के बाद कहा गया कि नाम पर सहमति नहीं बनी है।
सीबीआई चयन समिति में असहमति और प्रवीण सूद का सेवा विस्तार
अब सवाल है कि इससे पहले कब चयन समिति की बैठक में सहमति बनी है? चाहे चुनाव आयुक्त चुनना हो या सीबीआई निदेशक विपक्ष के नेता लगभग हमेशा असहमत ही होते हैं। फिर भी चयन हो जाता है। असल में ऐसी चयन समितियों की बैठक में नेता विपक्ष की सलाह का कभी ध्यान नहीं रखा जाता है और न उसको तवज्जो दी जाती है। इसलिए सहमति नहीं बन पाने की बात का कोई मतलब नहीं है। असलियत यह है कि सरकार प्रवीण सूद को एक साल का सेवा विस्तार देना चाहती है। उसने पहले ही कानून में बदलाव करके यह प्रावधान कर दिया है कि तीन साल का सेवा विस्तार मिल सकता है।
बहरहाल, प्रवीण सूद की जगह लेने के लिए सरकार ने आईपीएस अधिकारियों का जो पैनल बनाया था उसमें कई बहुत काबिल अधिकारियों के नाम हैं। लेकिन एक साल के इंतजार में कुछ लोग रिटायर भी हो सकते हैं। बताया जा रहा है कि सरकार के पैनल में दिल्ली के पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा, आरपीएफ के प्रमुख मनोज यादव और मध्यप्रदेश के पुलिस प्रमुख कैलाश मकवाना का नाम था। इनके अलावा एसएसबी के महानिदेशक अमृत मोहन प्रसाद, बीएसएफ के महानिदेशक दलजीत चौधरी, सीआईएसएफ के महानिदेशक आरएस भट्टी और सीआरपीएफ के डीजी जीपी सिंह का नाम शामिल था।
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