हिंदी पट्टी के तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों से एक बाद साफ हो गई है कि कांग्रेस के लिए उत्तर भारत में अभी नरेंद्र मोदी से लड़ना बहुत मुश्किल है। एकाध अपवादों को छोड़ दें तो कांग्रेस नरेंद्र मोदी को सीधी लड़ाई में नहीं हरा पाती है। हिमाचल प्रदेश एक अपवाद है और कह सकते हैं कि पांच साल पहले इन तीन राज्यों में सीधी लड़ाई में कांग्रेस ने भाजपा को हराया था। लेकिन वह चुनाव अलग था। पांच साल पहले इन राज्यों में कांग्रेस की लड़ाई नरेंद्र मोदी से नहीं थी। इन राज्यों में कांग्रेस की लड़ाई भाजपा के उन क्षत्रपों से थी, जो पिछले 15 साल से पार्टी की कमान संभाले हुए थे।
कांग्रेस मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तीनों राज्यों में बुरी तरह से हारी है। इन तीनों राज्यों में कोई लड़ाई नहीं हुई। वोट प्रतिशत में भी भाजपा बहुत आगे रही। कांग्रेस सिर्फ तेलंगाना जीत सकी, जहां उसे भाजपा से नहीं लड़ना था। तेलंगाना में कांग्रेस की लड़ाई सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति से थी। के चंद्रशेखर राव की कमान में भारत राष्ट्र समिति पिछले 10 साल से सरकार में थी। उसके खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी बनी थी और स्थानीय स्तर पर मजबूत जातियां उसके खिलाफ थीं। इसलिए कांग्रेस ने वहां उसे हरा दिया। लेकिन जहां भाजपा से सीधी लड़ाई थी वहां कांग्रेस नहीं जीत सकी। इसके उलट प्रादेशिक पार्टियां भाजपा को रोक सकती हैं। राजद-जदयू, जेएमएम, तृणमूल कांग्रेस आदि ने भाजपा को रोक कर दिखाया है।
इससे पहले उत्तर, पश्चिम या पूरब में जहां भी भाजपा और कांग्रेस की सीधी लड़ाई हुई वहां कांग्रेस नहीं जीत सकी है। हिमाचल प्रदेश अपवाद है। उससे पहले उत्तराखंड, हरियाणा, गुजरात, असम आदि राज्यों में सीधे मुकाबले में कांग्रेस नहीं जीत पाई। सो, अगले लोकसभा चुनाव के लिए भी कांग्रेस को इसे ध्यान में रख कर रणनीति बनानी होगी। दूसरी बात यह है कि उत्तर भारत के हिंदी पट्टी के राज्यों में नरेंद्र मोदी का जलवा अब भी कायम है। इस बार तीनों राज्यों में भाजपा नरेंद्र मोदी के नाम और चेहरे पर ही चुनाव लड़ी थी। लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ा जोखिम लिया था और अपनी साख दांव पर लगाई थी। सोचें, हिंदी पट्टी के लोग जब राज्यों में मुख्यमंत्री बनाने के लिए लोग मोदी के चेहरे पर वोट दे रहे हैं तो उनको प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट होगा तो क्या स्थिति होगी?