कांग्रेस नेता राहुल गांधी या तो भीड़ देख कर भाषण करते हुए कुछ ज्यादा भावुक हो जाते हैं और ऐसी बातें कह जाते हैं, जो नहीं कहनी चाहिए या उनका भाषण लिखने वालों को लग रहा है कि कुछ अतिवादी बातों से विवाद पैदा किए बगैर काम नहीं चलेगा। एक 20 साल के संसदीय अनुभव और देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेता के लिहाज से राहुल के लिए ये दोनों बातें सही नहीं हैं।
उनको पता है कि उनकी कही एक एक बात का बड़ा मुद्दा बनेगा। भाजपा की नजर उनके भाषण पर रहती है। तभी राहुल ने रामलीला मैदान में देश में आग लगने की बात कही तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे मुद्दा बना दिया। वे अपनी सभाओं में कह रहे हैं कि कांग्रेस 10 साल तक सत्ता से बाहर क्या रही वह देश में आग लगने की बात करने लगी।
असल में राहुल गांधी ने कहा था कि अगर तीसरी बार चुनाव जीत कर भाजपा संविधान बदलने का प्रयास करती है तो देश में आग लग जाएगी। यह हेतू हेतू मध्यभूत वाली बात हो गई। अगर भाजपा जीतेगी, फिर अगर वह संविधान बदलने का प्रयास करेगी तब देश में आग लग जाएगी। सोचें, इतना अनुमान लगाने या ऐसी चिंता करने की क्या जरुरत है? विपक्ष के नेता एक बार ऐसी बात करते हैं और प्रधानमंत्री हर बात में उसे जोड़ देते हैं।
जैसे वे कह रहे हैं कि कांग्रेस ने कहा था कि अयोध्या में मंदिर बनेगा तो देश में आग लग जाएगी। वे यह भी कह रहे हैं कि कांग्रेस ने कहा था कि अगर अनुच्छेद 370 हटाया तो खून की नदियां बह जाएंगी। पता नहीं किसने कब ऐसी बात कही थी लेकिन चुनाव में खुद प्रधानमंत्री इसे मुद्दा बना रहे हैं। इसलिए आग लगने, खून की नदियां बह जाने जैसी अतिवादी बातों से राहुल को और अन्य विपक्षी नेताओं को भी बचना चाहिए।