लोकसभा चुनाव में विपक्षी पार्टियों को बड़ा फायदा हुआ है। कांग्रेस तीन अंकों तक पहुंच गई तो ममता बनर्जी ने कमाल का प्रदर्शन किया। सबसे शानदार प्रदर्शन उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का रहा। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी ने भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन आम आदमी पार्टी को वैसी सफलता नहीं मिली, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। उसे सिर्फ तीन सीटें मिलीं और वह भी पंजाब में। वहां भी कांग्रेस ने उससे बेहतर प्रदर्शन किया और निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव जीते। आम आदमी पार्टी को दिल्ली, हरियाणा और गुजरात में कोई कामयाबी नहीं मिली।
गौरतलब है कि इन तीनों राज्यों में वह कांग्रेस के साथ तालमेल करके लड़ी थी। हरियाणा की कुरूक्षेत्र सीट पर आम आदमी पार्टी ने अपने पूर्व राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता को चुनाव लड़ाया था लेकिन वे जीत नहीं सके। दिल्ली में कांग्रेस से तालमेल में उसने चार सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन कोई भी उम्मीदवार जीत नहीं पाया। केजरीवाल ने अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर आकर खूब प्रचार किया। उन्होंने ही यह नैरेटिव बनाया कि नरेंद्र मोदी अपने लिए नहीं, बल्कि अमित शाह के लिए वोट मांग रहे हैं। उन्होंने ही यह दांव चला कि अगर भाजपा जीती तो उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छुट्टी हो जाएगी। इसका असर उत्तर प्रदेश की राजनीति में देखने को मिला। समाजवादी पार्टी को इसका फायदा हुआ। लेकिन खुद उनकी अपनी पार्टी को कोई फायदा नहीं मिल सका। वे पहले चुनाव यानी 2014 का भी प्रदर्शन नहीं दोहरा सके। उस समय उनके चार सांसद जीते थे। उसके बाद उनकी पार्टी एक सीट पर आ गई और इस बार तीन सीट पर रही। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि राज्य के चुनाव में तो लोग उनकी पार्टी को वोट देते हैं लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं।