भूपेंद्र सिंह हुड्डा मैदान नहीं छोड़ने वाले हैं। कांग्रेस आलाकमान और उसके आसपास के कुछ नेताओं को ऐसा लग रहा था कि इस बार की हार का उनको सदमा लगा है और शायद खुद ही हुड्डा किनारे हो जाएं। यह भी माना जा रहा था कि इस बार की हार के बाद हुड्डा का राजनीतिक और नैतिक बल कम हुआ है तो उनको हाशिए में डाला जा सकता है। नतीजों के बाद कुछ दिनों तक ऐसे हालात दिख भी रहे थे। ऐसा लग रहा था कि हुड्डा अवसाद में चले गए हैं। लेकिन अब सारी चीजें बदल गई हैं। नतीजों के एक हफ्ते के बाद ही उन्होंने और उनके परिवार ने फिर से कमर कस ली। हुड्डा के फिर से सक्रिय होने और आगे पांच साल लड़ने के लिए तैयार होने की वजह से ही हरियाणा में कांग्रेस विधायक दल के नेता का चयन नहीं कर पाई है और विधानसभा का सत्र शुरू हो गया है।
विधानसभा के सत्र में स्पीकर का चुनाव हुआ तो हुड्डा ने जिस तरह से सदन के अंदर सक्रियता दिखाई, वह इस बात का संकेत है कि वे नेता विपक्ष की कुर्सी नहीं छोड़ने वाले हैं। नए चुने गए स्पीकर को आसन तक ले जाने के लिए नहीं बुलाए जाने पर उन्होंने चुटकी ली तो मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी खुद उनको मनाने पहुंचे। तब हुड्डा ने उनको बधाई दी और दोनों ने खूब आत्मयीता का प्रदर्शन किया। चूंकि कांग्रेस ने अभी तक विधायक दल के नेता का चुनाव नहीं किया है इसलिए स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के चुनाव में हुड्डा को आधिकारिक रूप से नहीं शामिल किया गया लेकिन अनौपचारिक रूप से सदन के अंदर उनका आचरण ही नेता वाला था। उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता अनिल विज पर भी चुटकी ली और बाद में भाजपा के नेताओं के साथ हुड्डा की एक आत्मीय फोटो वायरल हुई।
इससे पहले जब राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पार्टी पर्यवेक्षक के तौर पर विधायकों की राय जानने पहुंचे उससे पहले ही हुड्डा ने अपना शक्ति प्रदर्शन कर दिया था। कांग्रेस के 37 में से 31 विधायक हुड्डा के घऱ पहुंचे थे। इससे साफ हो गया था कि पिछली बार की तरह इस बार भी पार्टी की कमान हुड्डा अपने हाथ में रखना चाहते हैं। असल में उनको पता है कि उनके विधायक दल का नेता पद छोड़ते ही पार्टी की कमान हाथ से निकल जाएगी। उनको यह भी पता है कि प्रदेश कांग्रेस की कमान उनके हाथ से निकली तो फिर उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा के हाथ में भी नहीं आएगी। इसका कारण यह है कि कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला के साथ साथ अब अशोक तंवर की भी बड़ी चुनौती आ गई है। तभी वे अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं। जो सपना इस बार पूरा नहीं हुआ उसको अगली बार के लिए संजो लिया गया है।
दूसरी बात यह है कि हुड्डा गुट के विधायकों को लग रहा है कि थोड़े दिन में हरियाणा चुनाव के नतीजों का बम फूटेगा। वे मान रहे हैं कि भाजपा की जीत मशीन के कारण हुई है और छह महीने में कहीं से कहीं से कुछ लीक होगा, जिससे यह सचाई सामने आ जाएगी। इसलिए भी कमान हुड्डा के हाथ में ही रहनी चाहिए। तीसरे, हुड्डा समर्थकों का मानना है कि जो वोट कांग्रेस को मिला है वह हुड्डा का वोट है। उनके नाम पर पार्टी को 40 फीसदी के करीब वोट मिला है और 37 सीटें मिली हैं। इसलिए भी कमान छोड़ने का कोई कारण नहीं है। वे सदमे से उबर गए हैं और अब दीपेंद्र हुड्डा को सीएम बनाने के लिए पांच साल लड़ने को तैयार हैं।