Wednesday

30-04-2025 Vol 19

हिमंत सरमा का दांव क्या झारखंड में चलेगा?

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असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा को जिस काम के लिए झारखंड के चुनाव का सह प्रभारी बनाया गया था वह काम वे बखूबी कर रहे हैं। वे असम का पूरा अनुभव लिए हुए हैं और असम के हवाले दावा कर रहे हैं कि झारखंड में भी जनसंख्या संरचना बदल रही है और मुस्लिमों की आबादी बढ़ रही है। असम के अनुभव से वे बहुत मजबूती से यह दावा भी कर रहे हैं कि बांग्लादेश से घुसपैठ हो रही है। उन्होंने सह प्रभारी बनने के बाद एक महीने में झारखंड में एक चुनावी नैरेटिव सेट कर दिया है। उन्होंने ‘लव जिहाद’ और ‘लैंड जिहाद’ का मुद्दा बना दिया है। भाजपा पहले भी यह मुद्दा उठाती रही है लेकिन इससे पहले कभी इतने बड़े पैमाने पर इसका मुद्दा नहीं बनाया गया था।

अगले तीन महीने में जिन चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं उनमें से झारखंड भाजपा की उम्मीदों का प्रदेश है। तभी लोकसभा चुनाव नतीजों की समीक्षा के लिए प्रदेश भाजपा की विस्तारित कार्यसमिति की बैठक हुई तो उसमें शामिल होने के लिए खुद अमित शाह गए। उत्तर प्रदेश में जेपी नड्डा गए थे और बिहार में तो कोई नहीं गया था। लेकिन झारखंड में खुद अमित शाह गए। उन्होंने पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं से बात की और भाषण दिया तो फोकस उसी नैरेटिव पर था, जो हिमंत बिस्व सरमा सेट कर रहे है। अमित शाह ने भी ‘लव जिहाद’ और ‘लैंड जिहाद’ का जिक्र किया और कहा कि भाजपा झारखंड की जनसंख्या संरचना को लेकर एक श्वेत पत्र लाएगी।

अब सवाल है कि क्या यह मुद्दा इतना कारगर होगा कि भाजपा विधानसभा का चुनाव जीत जाए? प्रदेश भाजपा के कई नेता और पार्टी के प्रति सहानुभूति रखने वाले राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि अगर भाजपा इसी को मुख्य मुद्दा बना कर लड़ती है तो ज्यादा फायदा नहीं होगा। समूचे झारखंड में हिंदू मुस्लिम का मुद्दा ज्यादा अपील नहीं करने वाला है। राज्य की भौगोलिक और सामाजिक संरचना एक जैसी नहीं है। हर क्षेत्र की अपनी समस्या है और अपना जातीय समीकरण है। वहां उस क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर ही लोगों को एकजुट किया जा सकता है।

हिंदू मुस्लिम या ‘लव जिहाद’ और ‘लैंड जिहाद’ का जो मुद्दा भाजपा बना रही है वह संथालपरगना और कोल्हान के एक दो इलाकों में काम कर सकता है। लेकिन उत्तरी व छोटानागपुर और पलामू रेंज में इसका खास असर नहीं होगा। इन इलाकों में 45 सीटें हैं।

भाजपा के नेता बांग्लादेश से घुसपैठ की बात कर रहे हैं लेकिन क्या घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की नहीं है? अगर सीमा पार से घुसपैठ हो रही है तो उसका ठीकरा तो केंद्र पर ही फूटेगा! इसी तरह अगर घुसपैठियों की पहचान करके उनको बाहर निकालने का काम नहीं हुआ है तो उसकी भी जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर ही आती है। फिर भी एक खास इलाके में भाजपा इसका मुद्दा बना सकती है। बाकी इलाकों के लिए अलग अलग रणनीति बनानी होगी। आदिवासी को साथ लाने के लिए सकारात्मक एजेंडा लाना होगा। सिर्फ मुसलमान के खिलाफ निगेटिव प्रचार कारगर नहीं होगा।

NI Political Desk

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