जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी यानी जेएनयू छात्र संघ के चुनाव के नतीजे ‘इंडिया’ ब्लॉक की पार्टियों की आंख खोलने वाले हैं। ‘इंडिया’ ब्लॉक की सभी पार्टियों ने अलग अलग चुनाव लड़ा। ऐसा नहीं है कि लेफ्ट, कांग्रेस, राजद आदि दलों में सहमति नहीं बनी, बल्कि लेफ्ट की पार्टियां भी अलग अलग लड़ीं।
इसका नतीजा यह हुआ है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ यानी आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को बहुत फायदा हुआ है। करीब 10 साल के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी एबीवीपी ने जेएनयू छात्र संघ के सेंट्रल पैनल में कोई पद हासिल किया। 2015 की तरह इस बार भी उसने संयुक्त सचिव के पद पर जीत हासिल की है। एबीवीपी के वैभव मीणा ने सीपीआई माले के छात्र संगठन आईसा के नरेश कुमार को हराया।
इसका मतलब है कि अगर दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां साथ मिल कर लड़ी होतीं तो एक हजार से ज्यादा वोट से उनकी जीत होती। इसी तरह की लड़ाई हर सीट पर हुई। सेंट्रल पैनल की चारों सीटों पर एबीवीपी का उम्मीदवार रहा और हर सीट पर नजदीकी मुकाबला हुआ। अध्यक्ष का पद सीपीआई माले के छात्र संगठन आईसा के नीतीश कुमार जीते हैं। उनको 1,702 वोट मिले। एबीवीपी की शिखा स्वराज को 1430 वोट मिले। सीपीएम के छात्र संघ एसएफआई के सी तैयबा अहमद को 918, कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के प्रदीप ढाका को 378 और छात्र राजद की आकांक्षा रंजन को 133 वोट मिले।
ऐसा नहीं है कि चुनाव से पहले एकता बनाने के प्रयास नहीं हुए। लेकिन सभी पार्टियों ने अपनी टैक्टिकल लाइन समझाई और अकेले चुनाव लड़ गए। इसी टैक्टिकल लाइन पर पार्टियां भी विधानसभा चुनावों में अपने तेवर दिखाती हैं। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले यह सभी पार्टियों के लिए सबक है कि अगर उन्होंने एकता नहीं रखी तो मुश्किल होगी। गौरतलब है कि बिहार में तीनों कम्युनिस्ट पार्टियां आपस में भी तनातनी कर रही हैं और गठबंधन में भी ज्यादा सीट के लिए दबाव बना रही हैं। कांग्रेस अलग दबाव की राजनीति कर रही है।
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