उत्तर प्रदेश में बिल्कुल नया सामाजिक समीकरण बन रहा है। भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से हारने के बाद भी इस मुगालते में है कि महाकुंभ का भव्य आयोजन कर दिया और हिंदुओं को अयोध्या से लेकर वाराणसी और मथुरा तक मंदिर का मुद्दा थमाया हुआ है तो कोई समस्या नहीं होगी। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। जमीनी स्तर पर तेजी से बदलाव हो रहे हैं और राज्य सरकार के कामकाज की वजह से कई जातियों में घनघोर नाराजगी है। मुख्यमंत्री के ऊपर खुलेआम जातिवाद करने का आरोप लग रहा है। कहा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ के राज में सिर्फ ठाकुरों की चलती है।
वे भले योगी हों या मठ के महंत हों या हिंदू धर्म का प्रतीक चेहरा हों लेकिन उनका प्रशासन उनकी जाति के लोगों से भरा हुआ है और उनको मनमानी करने की छूट है। यह स्थिति भाजपा आलकमान के लिए चिंता की बात हो सकती है।
आगरा के समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन का मामला भाजपा के गले की हड्डी बना है। कई लोग ऐसा मान रहे हैं कि दलित सांसद से जान बूझकर राणा सांगा पर बयान दिलवाया गया और राजपूत समाज इस ट्रैप में फंस गया। करणी सेना ने जिस तरह से रामजीलाल सुमन के खिलाफ मोर्चा खोल है और जैसे अखिलेश यादव ने सुमन का पक्ष लिया है उससे उत्तर प्रदेश में नया जातीय ध्रुवीकरण होता दिख रहा है। कई लोग मान रहे हैं कि यह विवाद और इस पर हो रहा ध्रुवीकरण वक्ती है और अंत में चुनाव के समय दूसरी तरह से ध्रुवीकरण होगा।
यूपी में जातीय और सामाजिक गोलबंदी का उभरता समीकरण
लेकिन ऐसा मानने वाले दलित राजनीति में हुए आमूलचूल बदलाव की अनदेखी कर रहे हैं। पिछले कुछ समय से दलित राजनीति को पंख लगे हैं। जय भीम के साथ जय संविधान का नारा उनको एक अलग ही दिशा दे रहा है। वह दिशा कम से कम अभी भाजपा के समर्थन वाली नहीं दिख रही है। ऊपर से रामजीलाल सुमन के खिलाफ करणी सेना के प्रदर्शन ने मामले को और उलझा दिया है। करणी सेना के हजारों लोग तलवारें, डंडे और बंदूकें लहराते हुए दलित सांसद सुमन की जीभ काटने या हत्या करने की बात कर रहे थे। सबने देखा कि इतना कुछ करने के बावजूद किसी के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
काली पट्टी बांध कर नमाज पढ़ने वालों को नोटिस भेजने वाली सरकार ने बंदूक और तलवारें लहराने वालों को कुछ नहीं कहा। इससे दलित बनाम ठाकुर की सोच मजबूत हुई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से नई सामाजिक गोलबंदी शुरू हुई है।
उधर पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी ‘हाता’ बनाम ‘मठ’ की पुरानी प्रतिद्वंद्विता उभर आई है। पूर्वी उत्तर प्रदेश से सबसे दबंग ब्राह्मण नेता रहे हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी को प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार कर लिया है। ऐसे मामले में, जिसमें एजेंसी आरोपपत्र दाखिल कर चुकी है, मामला एनसीएलटी में पहुंचा हुआ है और बैंकों से भी वार्ता चल रही है उसमें गिरफ्तारी होने से बड़ी नाराजगी हुई है। सोशल मीडिया में ‘हाता’ यानी हरिशंकर तिवारी का आवास और ‘मठ’ यानी योगी आदित्यनाथ की पीठ के पुराने विवाद की खूब चर्चा हो रही है और तमाम इन्फ्लूएंसर्स इसमें नया जातीय ध्रुवीकरण कराने में जुटे हैं।
ऐसे संकट के समय में तिवारी परिवार के साथ सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव खड़े हुए। सो, दलितों की तरह ही ब्राह्मणों का सद्भाव भी सपा की ओर दिख रहा है। ऊपर से ब्रजेश सिंह से लेकर धनंजय सिंह, ब्रजभूषण शरण सिंह और रघुराज प्रताप सिंह तक तमाम राजपूत बाहुबलियों को मिले प्रश्रय और सबकी भाजपा से नजदीकी के कारण भी राजपूत विरोधी गोलबंदी देखने को मिल रही है।
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