ममता बनर्जी एकमात्र मुख्यमंत्री हैं, जो लगातार यह सवाल उठा रही हैं कि वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी में कटौती का श्रेय अकेले केंद्र सरकार कैसे ले रही है? उन्होंने सोमवार को दुर्गापूजा पंडालों का उद्घाटन करने के बाद कोलकाता में इस बात को दोहराया कि केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री इसका अकेले श्रेय ले रहे हैं, जबकि जीएसटी में कटौती करने या स्लैब कम करने का फैसला राज्यों ने केंद्र के साथ मिल कर किया था और इसका सबसे बड़ा नुकसान राज्यों को होने वाला है। कांग्रेस के संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने जरूर यह बात उठाई और कहा कि जीएसटी काउंसिल एक संवैधानिक संस्था है, जिसने जीएसटी स्लैब में बदलाव का फैसला किया और उसमें राज्यों की बराबर भागीदारी है।
लेकिन कांग्रेस इसे मुद्दा नहीं बना रही है। यह हकीकत है कि जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक में जीएसटी स्लैब हटाने और रोजमर्रा की जरुरत की चीजों को पांच फीसदी के स्लैब में लाने का फैसला हुआ था। अगर सभी राज्य इसकी सहमति नहीं देते तो यह फैसला नहीं होता है।
इस फैसले का नुकसान राज्यों को होगा। ममता बनर्जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल को 20 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होगा। जीएसटी काउंसिल की बैठक के तुरंत बाद झारखंड के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा था कि राज्य को दो हजार करोड़ रुपए का नुकसान होगा। तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने राजस्व घटने की बात कही थी। लेकिन हैरानी की बात है कि विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्यों ने जीएसटी कटौती का श्रेय लेने का कोई प्रयास नहीं किया। राज्य सरकारों के पास मीडिया बजट होता है और विज्ञापन पर भारी भरकम खर्च होता है लेकिन किसी राज्य सरकार ने वैसी मुहिम नहीं छेड़ी, जैसी केंद्र ने छेड़ी है या भाजपा ने छेडी है।
ऐसा लग रहा है कि सारा फैसला केंद्र ने किया है। अगर विपक्ष जरा सी क्रिएटिविटी दिखाता तो पंजाब से लेकर तमिलनाडु और केरल से लेकर पश्चिम बंगाल, झारखंड, तेलंगाना, कर्नाटक, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर आदि विपक्षी शासन वाले राज्य एक साथ मिल कर जीएसटी कटौती का श्रेय लेने का अभियान चला सकते थे। उनके विज्ञापन छपते और उनकी पार्टी के नेता, मंत्री आदि जनता के बीच जाकर बताते कि उन्होंने राजस्व की कुर्बानी दी है, जिससे कटौती संभव हुई है। लेकिन किसी ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया।