कांग्रेस और दूसरी भाजपा विरोधी पार्टियां, जहां तक संभव होता है कि एमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी से दूर रखती हैं। बिहार में ओवैसी और उनकी पार्टी ने इस बात का जी तोड़ प्रयास किया कि महागठबंधन से तालमेल हो जाए। ओवैसी की पार्टी पांच सीटें लेकर भी महागठबंधन में लड़ने को तैयार थी। लेकिन कांग्रेस, राजद और लेफ्ट तीनों ने एक स्वर में उनके साथ तालमेल के प्रस्ताव को ठुकराया। इनको लगता है कि अगर एक बार तालमेल कर लिया तो ओवैसी की पार्टी को भाजपा की बी टीम ठहराने का नैरेटिव हमेशा के लिए समाप्त को जाएगा। लेकिन वहीं ओवैसी अगर बिहार में महागठबंधन के उम्मीदवारों का समर्थन कर देते तो पार्टियां क्या करती?
ओवैसी ने कांग्रेस को ऐसी ही दुविधा में डाला है हैदराबाद में। ध्यान रहे हैदराबाद एमआईएम का गढ़ है। वही पर पार्टी और वही पर उसकी राजनीतिक जमीन है। वही से ओवैसी लगातार लोकसभा का चुनाव जीतते हैं और हैदराबाद लोकसभा की सभी छह विधानसभा सीटों पर भी उनकी पार्टी जीतती है। उस हैदराबाद की शहर की जुबली हिल्स सीट पर उपचुनाव हो रहा है और अपना उम्मीदवार देने की बजाय ओवैसी ने कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन दिया है। ओवैसी का कहना है कि एक सीट की जीत हार से सरकार की सेहत पर फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन अगर वे कांग्रेस का साथ देते हैं तो भाजपा को हराया जा सकेगा। अब कांग्रेस को समझ में नहीं आ रहा है कि वह इस पर क्या करे? कांग्रेस न तो उनका समर्थन स्वीकार कर सकती है और न ठुकरा सकती है। दोनों ही स्थितियों में ओवैसी इस बात को बिहार के चुनाव में भुनाने की कोशिश करेंगे। अपने को भाजपा विरोधी और सेकुलर ठहराने के लिए वे इसका इस्तेमाल करेंगे।


