बिहार में भाजपा की आगे की राजनीतिक तस्वीर काफी हद तक साफ हो गई है। ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी की अपने चेहरे की तलाश पूरी हो गई है। सम्राट चौधरी वह चेहरा हैं, जिसकी भाजपा को तलाश थी। ध्यान रहे पिछले 20 साल से भाजपा नीतीश कुमार की मदद से सत्ता में आ जा रही है लेकिन उसका कोई एक ऐसा चेहरा प्रोजेक्ट नहीं हो सका, जिसके नाम पर वह बिहार की राजनीति कर सके। इसके पीछे नीतीश कुमार का भी हाथ रहा, जिन्होंने सुशील मोदी के साथ मिल कर भाजपा के सभी उभरते हुए नेताओं को बीच रास्ते में ही रोक दिया था। बहरहाल, अब सम्राट चौधरी को भाजपा का सीएम इन वेटिंग कहा जा सकता है।
नीतीश कुमार के 20 साल के शासन में पहली बार ऐसा हुआ है कि मुख्यमंत्री ने गृह मंत्रालय छोड़ा और भाजपा के सम्राट चौधरी उप मुख्यमंत्री के साथ गृह मंत्री बने। यह बहुत विशेष परिघटना है। ध्यान रहे चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने सम्राट चौधरी के लिए अपनी पार्टी की जीती हुई तारापुर विधानसभा सीट भी छोड़ी थी। नीतीश के बनाए गैर यादव पिछड़ा समीकरण में भी सम्राट का चेहरा फिट बैठता है। वे कोईरी, कुर्मी और धानुक के करीब 10 फीसदी वोट का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी वोट पर नीतीश ने अत्यंत पिछड़ी जातियों, दलितों और सवर्णों को जोड़ा है। नीतीश की इस विरासत को सम्राट चौधरी आगे बढ़ाएंगे यह संकेत भाजपा की ओर से स्पष्ट रूप से दिया गया है। अब बिहार में सम्राट चौधरी का दर्जा वही हो गया है, जो केंद्र में अमित शाह का है। वे पार्टी भी संभालेंगे और सरकार में सबसे अहम भूमिका निभाएंगे। अपराधियों का सफाया करने के योगी आदित्यनाथ मॉडल को अपनाने की भी चर्चा है। इससे उनकी अपनी अलग ब्रांडिंग होगी।


