भारतीय जनता पार्टी और केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू तर्क दे रहे हैं कि चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर पर संसद में चर्चा नहीं हो सकती है क्योंकि चुनाव आयोग भारत सरकार के किसी विभाग के अधीन नहीं आता है। यह अलग बात है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल करता है, जिसमें प्रधानमंत्री, उनकी सरकार के एक मंत्री और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष सदस्य होते हैं। इसके बावजूद कहा जा रहा है कि संसद में इस पर चर्चा नहीं हो सकती है। लेकिन सवाल है कि जब संसद में इस तर्क के आधार पर चर्चा नहीं हो सकती है तो बिहार विधानसभा में कैसे चर्चा हो गई?
ध्यान रहे बिहार विधानसभा के मानसून सत्र की शुरुआत ही एसआईआर पर चर्चा से हुई। विधानसभा में इस पर विस्तार से चर्चा हुई। विपक्ष की ओर से तेजस्वी यादव सहित कई नेता इस पर बोले तो सरकार की ओर से राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री विजय चौधरी ने बहुत विस्तार और बारीकी से इसका जवाब दिया। उन्होंने तमाम तथ्य सामने रखे। उन्होंने बताया कि 2003 में एसआईआर कितने समय में और कैसे हुआ था और बिहार सरकार ने जाति गणना कराई तो उसमें कितना समय लगा था। विजय चौधरी ने विपक्ष के हर सवाल का जवाब दिया। तभी यह सवाल है कि जब विधानसभा में चर्चा हो सकती है तो निश्चित रूप से संसद में भी चर्चा हो सकती है। ध्यान रखने की जरुरत है कि यह चुनाव आयोग पर चर्चा नहीं है, बल्कि उसके एक अभियान पर चर्चा है, जिससे चुनाव प्रभावित हो सकता है। इसके बावजूद अगर सरकार चर्चा नहीं कर रही है तो इसका मतलब है कि वह एसआईआर से जुड़े सवालों के जवाब से बचना चाहती है।