बिहार में एक समय नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी और जनता दल यू के वारिस माने जाने वाले उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति बदल गई है। ऐसा लग रहा है कि उनको नीतीश कुमार नहीं बनना है और उन्होंने समझ लिया है कि जदयू उनके हाथ नहीं लगने वाली है। तभी उन्होंने परिवार को राजनीति में आगे बढ़ाने का फैसला किया है। बिहार के प्रादेशिक नेताओं में नीतीश कुमार के अलावा उपेंद्र कुशवाहा एकमात्र नेता थे, जिन पर परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगते थे। वे शिक्षक रहे हैं और सभ्य व विनम्र नेता हैं। वे यादव के बाद दूसरी सबसे बड़ी पिछड़ी जाति कोईरी से आते हैं। सब कुछ उनके लिए परफेक्ट था। वे बिहार विधानसभा में विधायक दल के नेता रहे हैं, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं, केंद्रीय मंत्री रहे हैं। संसद के दोनों सदनों के और बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों के सदस्य रह चुके हैं।
लेकिन इस चुनाव में उन्होंने अपनी राजनीति बदल दी है। उनकी पार्टी को गठबंधन में छह सीटें मिलीं तो उन्होंने एक सासाराम सीट से अपनी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा को चुनाव लड़ाया। पहली बार उनके परिवार का कोई सदस्य सक्रिय राजनीति में आया। जब एनडीए की जीत हुई तो माना गया कि स्नेहलता कुशवाहा मंत्री बनेंगी। लेकिन उपेंद्र कुशवाहा ने अपने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनवा दिया। दीपक प्रकाश चुनाव नहीं लड़े हैं और किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। असल में सीट बंटवारे के समय जीतन राम मांझी की तर्ज पर उनको भी एक एमएलसी का वादा किया गया है। इसका मतलब है कि वे अपने बेटे को एमएलसी बनवा रहे हैं। सो, वे खुद राज्यसभा में हैं, पत्नी विधानसभा में और बेटा विधान परिषद के रास्ते मंत्रिमंडल में। उन्होंने बाद में माना कि उनकी पार्टी टूट न जाए इसलिए पत्नी और बेटे को ले आए। यह भी एक नेता के तौर पर उनके बहुत मजबूत होने का संकेत नहीं है।


