उत्तर प्रदेश में चाहे जैसे हो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी राजनीति को मजबूती से स्थापित किया है और एक बार फिर यह तय हुआ है कि अगर ‘इंडिया’ ब्लॉक की पार्टियां एकजुट होकर नहीं लड़ेंगी तो उनके लिए चुनाव जीतना मुश्किल होगा। राज्य में नौ सीटों पर विधानसभा के चुनाव हुए थे, जिनमें से सात सीटें भाजपा ने जीत ली हैं। समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाले करहल और सीसामऊ को छोड़ कर बाकी सारी सीटें सपा हार गई है। करहल सीट तो खुद अखिलेश यादव ने खाली की थी और वह पुराने जमाने से परिवार और सपा की सुरक्षित सीट रही है वहां से लालू प्रसाद के दामाद तेज प्रताप चुनाव जीते हैँ। सीसामऊ सीट से इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी चुनाव जीती हैं।
सबको इस बात की हैरानी की है कि मीरापुर और कुंदरकी जैसी सीट पर भाजपा कैसे जीती? ये दोनों मुस्लिम बहुल सीटें हैं। मीरापुर सीट पर भाजपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल ने चुनाव जीता और कुंदरकी सीट पर भाजपा जीती। मीरापुर सीट पर तीन मुस्लिम उम्मीदवार थे और तीनों के बीच मुस्लिम वोट बंटे। सोचें, जहां ‘बटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारे पर पूरी तरह से ध्रुवीकरण वाला चुनाव हो रहा हो वहां मुस्लिम वोट बंट जाए और भाजपा या उसकी सहयोगी जीत जाए तो इससे क्या आगे की राजनीति का अंदाजा नहीं होता है? इन नतीजों के बाद तय हो गया है कि योगी आदित्यनाथ राज्य में कमान संभाले रहेंगे और 2027 के विधानसभा चुनाव में इससे ज्यादा विभाजन कराने वाले एजेंडे पर चुनाव होगा। तब विपक्षी पार्टियां क्या करेंगी?