• भरोसा तो नहीं बंधता

    आम चुनाव से ठीक पहले जब सोशल मीडिया कंपनियों ने कहा कि वे फैक्ट चेक करने की व्यवस्था कर रही हैं, तो उस पर सहज यकीन नहीं हुआ। इसका कारण उनका पुराना रिकॉर्ड है। हालिया व्यवहार भी भरोसा बंधाने वाला नहीं है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स ने (जिसे पहले ट्विटर कहा जाता था) पिछले हफ्ते भारत में राजनीतिक भाषणों वालों कई ट्वीट ब्लॉक कर दिए। आम चुनाव के मद्देनजर सरकारी अधिकारियों ने एक्स को ये ट्वीट हटाने का आदेश दिया था। इस पर एक्स के मालिक इलॉन मस्क ने कहा कि वे इस आदेश से सहमत तो नहीं हैं, लेकिन...

  • सूरत में बदसूरती

    गुजरात के सूरत में एक साथ सत्ता पक्ष की बेलगाम और अनैतिक ताकत, कर्त्तव्य-निष्ठा के समझौता करने को तैयार प्रशासन, और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतारने में सहायक बना विपक्ष- देखने को मिले। गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर जैसे चुनाव संपन्न हुआ, उसे भारतीय लोकतंत्र के लिए अपशकुनकारी घटना माना जाएगा। वहां एक साथ सत्ता पक्ष की बेलगाम और अनैतिक ताकत, कर्त्तव्य-निष्ठा के समझौता करने को तैयार प्रशासन, और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतारने में सहायक बना विपक्ष- देखने को मिले। यह हैरतअंगेज है कि परचा दाखिल करने वाला एक भी उम्मीदवार मैदान में टिके रहने को...

  • हथियारों का चमकता धंधा

    हथियार व्यापारियों का धंधा चमक उठा है। स्वीडन में स्टॉकहोम स्थित संस्था सिपरी ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि इस वक्त हथियारों, गोला-बारूद और दूसरे सैन्य साज-ओ-सामान पर विभिन्न देश जितना धन खर्च कर रहे हैं, उतना इससे पहले कभी नहीं हुआ। दुनिया पर युद्ध का साया गहराता जा रहा है। यूक्रेन के बाद पश्चिम एशिया युद्ध की आग में झुलस रहा है। उधर दक्षिण चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य में भी तनाव लगातार बढ़ा है। भारत-चीन सीमा पर की हालात भी कोई कम चिंताजनक नहीं हैं। इन स्थितियों से विभिन्न देशों की प्राथमिकताएं बदली हैं। नतीजतन,...

  • भयाक्रांत करने के सहारे?

    अर्बन नक्सल, माओवादी और कम्युनिस्ट- इन तीन शब्दों से भयाक्रांत करने की रणनीति भाजपा ने अपनाई है। बताने की कोशिश यह है कि ये तीनों शब्द जिस विचारधारा या एजेंडे से जुड़े हैं, उसकी नुमाइंदगी अब कांग्रेस- और प्रकारांतर में इंडिया गठबंधन कर रहा है। साफ संकेत हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मौजूदा आम चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी का मुख्य नैरेटिव सेट कर दिया है। इसके तहत अर्बन नक्सल, माओवादी और कम्युनिस्ट- इन तीन शब्दों से लोगों को भयाक्रांत करने की रणनीति अपनाई गई है। यह बताने की कोशिश है कि ये तीनों शब्द जिस विचारधारा या...

  • आम रुझान के विपरीत

    यह सुनिश्चित करना राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि राजनीति का मतलब सत्ता के लिए अभिजात्य वर्ग की आपसी प्रतिस्पर्धा ना बन जाए, जिसमें आम लोगों की भूमिका सिर्फ दर्शक और मूक मतदाता की रह जाए। Loksabha Election 2024 आम चुनाव के पहले चरण में कम मतदान हुआ। 19 अप्रैल को जिन 102 सीटों पर वोट डाले गए, वहां 2019 की तुलना में 4.4 प्रतिशत कम वोट पड़े। पांच साल पहले इन सीटों पर 69.9 प्रतिशत मतदान हुआ था, जो इस बार 65.5 प्रतिशत रहा। जिन 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में उस दिन वोट पड़े, उनमें सिर्फ छत्तीसगढ़...

  • चुनाव आयोग को चुनौती

    यह याद रखना चाहिए कि आदर्श आचार संहिता का कोई कानूनी आधार नहीं है। यह पार्टियों की सहमति से तैयार संहिता है, जिस पर अमल के लिए उनका सहयोग जरूरी है। सहयोग सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि आयोग सबके प्रति समान नजरिया अपनाए।  शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने खुलेआम निर्वाचन आयोग की नाफरमानी करने का एलान किया है। आयोग ने चुनाव के लिए पार्टी के थीम सॉन्ग से दो शब्दों- भवानी और हिंदू को हटाने का निर्देश दिया था। आयोग के मुताबिक थीम सॉन्ग में इन शब्दों के होने का मतलब है कि शिवसेना धर्म के नाम...

  • बोइंग कथा के सबक

    विशेषज्ञों ने कहा है कि एमबीए डिग्रीधारियों को इंजीनियरों पर तरजीह देना कंपनी को बहुत भारी पड़ा है। यह कहानी उन सभी देशों और कंपनियों के लिए एक सबक है, जो अर्थव्यवस्था के वित्तीयकरण के दौर में अपनी विशिष्टता की अनदेखी कर रही हैं। अमेरिका की विमान बनाने वाली मशहूर कंपनी बोइंग को नया झटका लगा है। खबर है कि बीते तीन वर्षों में 32 ह्विशलब्लोअर्स ने अमेरिका के कार्यस्थल सुरक्षा विनियामक के पास शिकायतें दर्ज कराईं। अभी कुछ ही समय पहले कंपनी के एक ह्विशलब्लोअर की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी। उस मामले की चल रही जांच...

  • ‘समरसता’ में तनाव?

    जब ‘सामाजिक न्याय’ की राजनीति उभरी, तब उसकी काट के तौर पर आरएसएस-भाजपा ने ‘सामाजिक समरसता’ की रणनीति पेश की थी, जो काफी हद तक कामयाब रही। लेकिन हालिया घटनाओं ने संकेत दिया है कि अब रणनीति के आगे चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। मुमकिन है कि राजपूत जाति का भारतीय जनता पार्टी से “विद्रोह” दिखावटी हो और उससे भाजपा को असल में कोई नुकसान ना हो। फिर भी जिस पैमाने पर गुजरात से पश्चिम उत्तर प्रदेश और राजस्थान तक इस जाति के लोग नरेंद्र मोदी के विरुद्ध गुस्सा जताते नजर आए, उससे आरएसएस-भाजपा की ‘सामाजिक समरसता’ की रणनीति में...

  • आया मतदान का मौका

    विपक्षी खेमों में समझ बनी है कि मोदी सरकार ने देश की दिशा को बुनियादी तौर पर बदल देने की कोशिश की है। ऐसे में फिर से उसे जनादेश मिला, तो उसका मतलब मोदी के कार्यकाल में तय की गई दिशा पर जनता की मुहर होगी। लोकसभा की 102 सीटों पर आज मतदान होगा। इसके साथ ही उस मैराथन प्रक्रिया का निर्णायक दौर शुरू हो गया है, जिसके नतीजे से, जैसाकि अनेक हलकों में राय है, इस देश का भविष्य तय होगा। वैसे तो लोकसभा का यह 18वां आम चुनाव है, लेकिन इसके बीच ऐसे मौके बहुत कम आए हैं,...

  • दुनिया के लिए चेतावनी

    आईएमएफ के आकलन को बाइडेन प्रशासन की राजकोषीय नीति की कड़ी आलोचना के रूप में देखा गया है। इस संस्था ने चेताया है कि अमेरिका सरकार पर बढ़ रहे कर्ज के कारण देश में मुद्रास्फीति आसमान छू सकती है, जिसका विश्व अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव होगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है कि अमेरिका में बढ़ते सरकारी कर्ज का विश्व अर्थव्यवस्था पर बहुत गहरा प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है। आईएमएफ के इस आकलन को राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन की राजकोषीय नीति की कड़ी आलोचना के रूप में देखा गया है। वॉशिंगटन स्थित इस संस्था ने चेताया है कि अमेरिका...

  • कुछ सबक लीजिए

    जब आर्थिक अवसर सबके लिए घटते हैं, तो हाशिये पर के समुदाय उससे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसलिए कि सीमित अवसर वे लोग ही प्राप्त कर सकते हैं, जिन्हें बेहतर शिक्षा मिली होती है और जिनके पास तकनीकी कौशल होता है। शोरगुल पर यकीन करें, तो यह दलित-बहुजनवादी राजनीति का वर्चस्व काल है। बिना किसी अपवाद के, सभी राजनीतिक दल इस सियासत का झंडाबरदार बनने की होड़ में आज शामिल हैँ। यह दौर कम-से-कम दो दशक से परवान चढ़ा हुआ है। इसलिए यह सवाल पूछने का अब वाजिब वक्त है कि इससे असल में दलित-पिछड़ी जातियों को क्या हासिल हुआ...

  • चाहिए विश्वसनीय समाधान

    चुनावों में विश्वसनीयता का मुद्दा सर्वोपरि है। इसे सुनिश्चित करने के लिए तमाम व्यावहारिक दिक्कतें स्वीकार की जा सकती हैं। इसलिए यह तर्क बेमायने है कि अगर सभी वीवीपैट पर्चियों या मतपत्रों की गिनती हुई, तो उसमें 12 दिन लगेंगे। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने याद दिलाया कि जब मतपत्रों के जरिए मतदान होता था, तब क्या होता था। स्पष्टतः जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ का इशारा उस दौर में होने वाली मतदान संबंधी धांधलियों की तरफ था। कहा जा सकता है कि उस...

  • सरकारें जो चाहती हैं

    यह कहा जाएगा कि अपनी किताब के जरिए डी. सुब्बाराव ने एक बहुत जरूरी विषय पर चर्चा छेड़ी है। किताब के लोकार्पण के मौके पर उन्होंने जो कहा, उस पर भी भारतवासियों को अवश्य ध्यान देना चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव ने अपनी ताजा किताब में यह राज़ खोला है कि उनके कार्यकाल में तत्कालीन वित्त मंत्रियों प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम ने उन पर अर्थव्यवस्था की हरी-भरी तस्वीर पेश करने के लिए दबाव बनाया था। किताब ‘जस्ट ए मर्सिनरी?: नोट्स फ्रॉम माई लाइफ एंड करियर’ में उन्होंने लिखा है कि इस कारण वे कई बार परेशान...

  • समस्या से आंख मूंदना

    बेरोजगारी के मुद्दे को चुनाव में नजरअंदाज करना बहुत बड़ा जोखिम उठाना है। यह बात अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए कि देश चाहे जितनी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए, लेकिन अगर करोड़ों युवा बेरोजगार बने रहते हैं, तो उससे भारत का कोई भला नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक समाचार एजेंसी को एक घंटा 17 मिनट का लंबा वीडियो इंटरव्यू दिया। इसमें उन्होंने विभिन्न विषयों की चर्चा की। अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं और अगले एजेंडे पर चर्चा की। फिर भी इस इंटरव्यू में कई जरूरी मसले नहीं आए। बेरोजगारी जैसी विकराल होती जा रही समस्या की भी इसमें अनदेखी...

  • फटी शर्ट, ऊंची नाक

    देश की जिन ज्वलंत समस्याओं को लगभग भाजपा के घोषणापत्र में नजरअंदाज कर दिया गया है, उनमें बेरोजगारी, महंगाई, उपभोग का गिरता स्तर और सुरसा की तरह बढ़ती आर्थिक गैर-बराबरी शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी के समर्थक विश्लेषकों की नजर देखें, तो पार्टी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में “रेवड़ियों” का वादा नहीं किया है। इसके विपरीत उसने 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के अनुरूप वादे किए हैं। उसने अधिक संख्या में बुलेट ट्रेन, वंदे भारत ट्रेनों, आईआईटी- आईआईएम आदि की स्थापना, कॉमर्शियल विमानों के उत्पादन का इको-सिस्टम भारत ले आने आदि जैसे उद्देश्य घोषित किए हैँ।...

  • भारत का डेटा संदिग्ध?

    एक ब्रिटिश मेडिकल जर्नल, जिसके विचार-विमर्श का दायरा राजनीतिक नहीं है, वह भारत के आम चुनाव के मौके पर संपादकीय लिख कर सतर्क करने की जरूरत महसूस करे, तो यह खुद जाहिर है कि संबंधित समस्या उसकी नजर में कितना गंभीर रूप ले चुकी है। मशहूर ब्रिटिश मेडिकल जर्नल द लांसेट ने आम चुनाव के मौके पर भारतवासियों को देश में स्वास्थ्य संबंधी डेटा की बढ़ती किल्लत और मौजूद डेटा पर गहराते संदेह को लेकर आगाह किया है। एक ब्रिटिश मेडिकल जर्नल, जिसके विचार-विमर्श का दायरा राजनीतिक नहीं है, वह किसी देश के आम चुनाव के मौके पर संपादकीय लिख...

  • युद्ध की फैली आग

    स्पष्टतः पश्चिम एशिया बिगड़ती हालत संयुक्त राष्ट्र के तहत बनी विश्व व्यवस्था के निष्प्रभावी होने का सबूत है। जब बातचीत से विवाद हल करने के मंच बेअसर हो जाते हैं, तभी बात युद्ध तक पहुंचती है। आज यह खतरनाक स्थिति हमारे सामने है। इजराइल पर ईरान के जवाबी हमले के साथ पश्चिम एशिया में युद्ध की आग और फैल गई है। यह पहला मौका है, जब ईरान फिलस्तीनी युद्ध में सीधे शामिल हुआ है। इस घटनाक्रम की पृष्ठभूमि एक अप्रैल को सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी दूतावास पर इजराइल के हमले से बनी। उस इजराइली हमले में 16 ईरानी...

  • एडवाइजरी किसके लिए?

    भारत सरकार गरीबी से बेहाल भारतीय मजदूरों को इजराइल भेजने में तब सहायक बनी। इसलिए अब सवाल उठा है कि ताजा एडवाइजरी किसके लिए जारी की गई है? क्या अब पैदा हुए नए खतरों के कारण भारत अपने मजदूरों को वहां से वापस लाएगा? इजराइल और ईरान के बीच युद्ध की गहराती आशंका के बीच यह उचित ही है कि भारत सरकार ने अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की। भारतीय नागरिकों से उन दोनों देशों में जाने से बचने की सलाह दी गई है। ऐसी एडवाइजरी अनेक देशों ने अपने देशवासियों के लिए जारी की है। बिगड़ते हालात के...

  • चीन पर बदला रुख?

    अमेरिकी पत्रिका को दिए इंटरव्यू में मोदी ने कहा- ‘यह मेरा विश्वास है कि सीमा पर लंबे समय से जारी स्थिति का हल हमें तुरंत निकालना चाहिए, ताकि अपने द्विपक्षीय संबंधों में आई असामान्यता को हम पीछे छोड़ सकें।’ क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ताजा बयान को चीन के बारे में भारत के रुख में एक बड़े बदलाव का संकेत माना जाना चाहिए? चार साल से चल रहे तनाव के बाद अब मोदी मेल-मिलाप के मूड में दिख रहे हैं। मोदी ने ये टिप्पणियां एक अमेरिकी पत्रिका को दिए इंटरव्यू में की हैं। इससे उनकी बातों का महत्त्व और बढ़...

  • चीन- रूस की धुरी

    रूस के चीन के करीब जाने से यूरेशिया का शक्ति संतुलन बदल रहा है। इससे नए समीकरण बनने की संभावना है। इसका प्रभाव पूरे क्षेत्र पर हो सकता है। दुनिया भर में विदेश नीति के कर्ता-धर्ताओं को इस स्थिति को अब अवश्य ध्यान में रखना होगा। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की इस हफ्ते हुई चीन यात्रा ने दोनों देशों के रिश्तों में नया आयाम जुड़ने का ठोस संकेत दिया है। अब तक दोनों देशों की “असीम भागीदारी” में कम-से-कम घोषित तौर पर सुरक्षा का पहलू शामिल नहीं था। लेकिन लावरोव और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अपनी...

और लोड करें