ट्रंप के एलान से दुनिया में व्यापार युद्ध एक नए मुकाम पर पहुंच गया है। उचित ही यह कहा गया है कि ताजा कदम के साथ अमेरिका ने पहले से ही पलट रहे भूमंडलीकरण की समाप्ति की अंतिम घोषणा कर दी है।
भारत राहत महसूस कर सकता है कि डॉनल्ड ट्रंप ने अपने टैरिफ की मार से औषधि उद्योग को फिलहाल बाहर रखा है। संभवतः अपने देश में दवाओं की महंगाई से लोगों की नाराजगी वे मोल नहीं लेना चाहते थे। मगर बाकी क्षेत्रों में उन्होंने भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है। दुनिया के बाकी देशों की तरह उन्होंने भारत के मामले में भी यह मनमाना आकलन किया कि अमेरिकी उत्पादों पर भारत में औसतन 52 प्रतिशत आयात शुल्क लगता है।
उनके प्रशासन ने यह निष्कर्ष गैर-टैरिफ एवं अन्य व्यापार बाधाओं से अमेरिका को अनुमानित नुकसान का आकलन करते हुए निकाला है। जाहिर है, ट्रंप प्रशासन ने बात सिर्फ टैरिफ तक नहीं रहने दी है। वरना, भारत में अमेरिकी उत्पादों पर औसत टैरिफ तकरीबन 17.5 प्रतिशत है।
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सबसे ज्यादा लगभग 39 प्रतिशत आयात शुल्क कृषि उत्पादों पर लगता है, जबकि कई वस्तुओं पर टैरिफ बेहद कम है। मगर ये तथ्य ट्रंप प्रशासन के लिए अप्रासंगिक रहा। बहरहाल, बहुप्रचारित ‘मेक अमेरिका वेल्थी (धनी) अगेन’ इवेंट में ट्रंप ने जो एलान किए, उससे दुनिया में व्यापार युद्ध एक नए मुकाम पर पहुंच गया है। उचित ही यह कहा गया है कि ताजा कदम के साथ अमेरिका ने पहले से ही पलट रहे भूमंडलीकरण की समाप्ति की अंतिम घोषणा कर दी है।
यह तय है कि ट्रंप के टैरिफ का विभिन्न देश अपने- अपने ढंग से जवाब देंगे। परिणामस्वरूप विश्व व्यापार में गिरावट आना तय है।
इसका असर विभिन्न देशों के उद्योग-धंधों पर पड़ेगा। नतीजतन, वहां आमदनी, उपभोग एवं मांग में गिरावट आएगी। यूबीएस (स्विस बैंक) के आकलन के मुताबिक ये टैरिफ जारी रहे, तो अमेरिका में मुद्रास्फीति दर में पांच प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होगी। चीन, यूरोपियन यूनियन आदि जैसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं की जवाबी कार्रवाइयों का असर अलग है। तो कुल मिला कर ट्रंप ने दुनिया को अवनति की दिशा में धकेल दिया है।
मगर इससे अमेरिका का भी कोई भला नहीं होगा। आखिर आर्थिक नियमों का उल्लंघन कर कोई टिकाऊ लाभ हासिल नहीं किया जा सकता। नियम यह है कि टैरिफ एक दोधारी तलवार है, जिसकी मार से दोनों तरफ खून बहता है।