चूंकि भारत का घरेलू उपभोक्ता बाजार कमजोर है और अन्य देशों में तुरंत बाजार हासिल करना आसान नहीं है, तो कंपनियां उन देशों में जाने पर विचार कर रही हैं, जिन पर लगा टैरिफ भारत से कम है।
डॉनल्ड ट्रंप के प्रमुख टैरिफ संबंधी सलाहकार पीटर नवारो ने भारत के खिलाफ जो सख्त बातें कहीं हैं, उनका संकेत है कि निकट भविष्य में अमेरिका से भारत के रिश्ते बेहतर होने की गुंजाइश नहीं है। यानी ट्रंप प्रशासन के टैरिफ की मार भारत को लंबे समय तक झेलनी पड़ सकती है। नवारो ने कहा कि भारत अगर चाहता है कि अमेरिका उससे रणनीतिक सहभागी जैसा व्यवहार करे, तो उसे अपना व्यवहार सुधारना होगा। उसे रूस से तेल खरीदने का “अवसरवाद” छोड़ना होगा। नवारो ने नाराजगी जताई कि ऐसा करने के बजाय अब भारत रूस और चीन से अपने संबंध और बढ़ा रहा है। मतलब साफ है। अमेरिका की सख्ती जारी रहने वाली है।
यही वजह है कि कारोबार जगत में इंडिया+1 का जुमला चल निकला है। इसके पहले चीन+1 की बात चर्चित हुई थी, जब अमेरिकी सरकार ने चीन के खिलाफ व्यापार कार्रवाई शुरू की। तब अमेरिकी कंपनियों ने चीन से किसी अन्य देश में अपने कारखाने ले जाने शुरू किए। उसका कुछ लाभ भारत ने भी उठाया। मगर अब भारत निशाने पर है। तो खबरों के मुताबिक कई कंपनियां अपने कारखाने भारत से बांग्लादेश, कंबोडिया या वियतनाम ले जाने की तैयारी में हैं। गौरतलब है कि भारत में कारखाना उत्पादन का मुख्य लक्ष्य अमेरिकी बाजार रहे हैं। पिछले साल भारत के कुल निर्यात का 18 फीसदी हिस्सा अमेरिका गया था।
अब ये बाजार भारतीय उत्पादों के लिए प्रतिकूल होता नजर आ रहा है। विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि चूंकि भारत का घरेलू उपभोक्ता बाजार कमजोर है और अन्य देशों में तुरंत बाजार हासिल करना आसान नहीं है, तो कंपनियां उन देशों में जाने पर विचार कर रही हैं, जिन पर लगा टैरिफ भारत से कम है। इसका असर अभी से भारत के प्रमुख उत्पादन केंद्रों में महसूस किया जाने लगा है। आम राय है कि आने वाले महीने और भी ज्यादा चुनौती भरे होंगे। भारत के लिए यह बुरी खबर है। मगर चीन+1 की जिस पृष्ठभूमि पर भारत के आगे बढ़ने की आस जोड़ी गई थी, उसमें यह जोखिम पहले से मौजूद था। उसे नजरअंदाज करना अब भारी पड़ रहा है।