वस्तु और सेवाओं में भारत को 44.4 बिलियन डॉलर का व्यापार लाभ होता है। लेकिन शिक्षा, डिजिटल सेवाओं, वित्तीय कारोबार, बौद्धिक संपदा, और हथियार बिक्री को भी शामिल किया जाए, तो 40 बिलियन डॉलर तक का फायदा अमेरिका को है।
जब भारत- अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार वार्ता के अगले दौर की तैयारी चल रही है, थिंक टैंक- ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने महत्त्वपूर्ण आंकड़े पेश किए हैं। उनका इस्तेमाल भारत सरकार करे, तो द्विपक्षीय व्यापार वार्ता में बाजी पलट सकती है। वॉशिंगटन में हुई पिछली व्यापार वार्ता में तय हुआ था कि द्विपक्षीय समझौता तीन चरणों में होगा। उनमें पहले चरण में आयात शुल्क के मुद्दे शामिल होंगे। प्रयास है कि जैसे को तैसा टैरिफ पर ट्रंप प्रशासन की ओर से घोषित स्थगन अवधि पूरा होने- यानी आठ जुलाई से पहले ये चरण संपन्न हो जाए। चर्चा रही है कि इस चरण में भारत अमेरिकी आयात पर लगने वाले शुल्क में भारी कटौती के लिए राजी हो जाएगा।
मगर, जीटीआरआई ने जो तथ्य बताए हैं, उनके मद्देनजर ऐसा करना देश के साथ न्याय नहीं होगा। इस संस्था के मुताबिक बात व्यापार के समग्र दायरे में हो रही है, तो सिर्फ वस्तु और सेवाओं से संबंधित आंकड़ों के आधार पर समझौता करने का कोई तर्क नहीं बनता है। इन दो क्षेत्रों में भारत को अमेरिका से 44.4 बिलियन डॉलर का व्यापार लाभ जरूर होता है, लेकिन अगर शिक्षा, डिजिटल सेवाओं, वित्तीय कारोबार, बौद्धिक संपदा पर दी जाने वाली रॉयल्टी, और हथियार बिक्री संबंधी आकंड़ों को भी शामिल किया जाए, तो 40 बिलियन डॉलर तक के फायदे में अमेरिका नजर आता है। चीन ने अमेरिका साथ अपनी व्यापार वार्ता में इन क्षेत्रों के आंकड़ों को भी शामिल किया है।
तो कोई वजह नहीं है कि भारत ऐसा ना करे। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने टैरिफ की चर्चा में बार- बार भारत वे ‘टैरिफ किंग’ कहते रहे हैं। मगर ये इल्जाम सुविधा से चुने हुए कुछ क्षेत्रों से संबंधित आंकड़ों पर आधारित है। इन्हें सीधे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। वैसे, उम्मीद है कि भारत सरकार के पास जीटीआरआई की तुलना में कहीं अधिक ठोस आंकड़े होंगे। अधिकारी संभवतः उनका इस्तेमाल भी कर रहे हों। अब चूंकि ये तथ्य सार्वजनिक दायरे में आ गए हैं, तो इनसे वार्ताकारों पर और दबाव बनने की आशा है। हो रहे समझौते को लोग इन तथ्यों की रोशनी में भी देखेंगे।