गुजरे लगभग साढ़े तीन साल में व्लादीमीर पुतिन प्रशासन लगातार ऐसे शांति समझौते पर जोर देता रहा है, जिससे यूक्रेन युद्ध के “मूल कारणों” का निवारण हो। अब डॉनल्ड ट्रंप ने उनकी ये दलील स्वीकार कर ली है।
अलास्का में डॉनल्ड ट्रंप और व्लादीमीर पुतिन की शिखर वार्ता अपेक्षित समय से पहले खत्म हुई, तो यही संदेश गया कि बातचीत बेनतीजा रही है। हालांकि ट्रंप और पुतिन की केमिस्ट्री में कोई तनाव नजर नहीं आया, मगर ट्रंप के इस बयान ने नकारात्मक असर छोड़ा कि डील जब तक हो ना जाए, डील होना नहीं माना जाता। मगर कई घंटों के बाद ट्रंप ने सोशल मीडिया पर जो कहा, उसका संकेत है कि यूक्रेन युद्ध के सिलसिले में पुतिन अपनी राय पर अमेरिकी दल की सहमति हासिल करने में सफल रहे हैँ। ट्रंप ने कहा- ‘सबने यह तय किया कि रूस और यूक्रेन के बीच भयानक युद्ध को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका सीधे ऐसे शांति समझौते पर जाना है, जिससे सिर्फ युद्धविराम ना हो, बल्कि जंग खत्म हो।’
गुजरे लगभग साढ़े तीन साल में व्लादीमीर पुतिन प्रशासन ऐसे शांति समझौते पर जोर देता रहा है, जिससे युद्ध के “मूल कारणों” का निवारण हो। जबकि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की और उनके समर्थक यूरोपीय नेता युद्धविराम से शुरुआत करने के पैरोकार रहे हैं। ट्रंप ने पुतिन से वार्ता के बाद नाटो के सदस्य देशों के नेताओं से संपर्क किया है और जेलेन्स्की को सोमवार को ह्वाइट हाउस बुलाया है। अब मुद्दा है कि क्या जेलेन्स्की ट्रंप और पुतिन के बीच बनी सहमति पर मुहर लगाएंगे और क्या उसके आधार पर सीधे पुतिन से वार्ता के लिए राजी होंगे? ऐसा होता है, तो इसे रूस की जीत के रूप में देखा जाएगा।
साथ ही यह ट्रंप कालीन अमेरिकी कूटनीति की सफलता होगी, जिसमें यूरोपीय देशों की भूमिका अप्रसांगिक हो जाएगी। लेकिन जेलेन्स्की सहमत नहीं हुए, तो उससे ट्रंप की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचेगी और साथ ही नाटो खेमे में बड़ी हलचल मच सकती है। यानी घटनाएं चाहे जो मोड़ लें, वो रूस के दीर्घकालिक उद्देश्यों के अनुकूल होंगी। पुतिन के लिए लाल कालीन बिछा कर ट्रंप पहले ही पश्चिमी जगत में उनका ‘परायापन’ खत्म कर चुके हैँ। वैसे, यह कुल मिलाकर दुनिया पर घट रहे अमेरिकी प्रभाव की निशानी है, जिसमें ये महाशक्ति अब अपने मनमाफिक समाधान नहीं थोप पा रही है।