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अलास्का पर टिकी निगाहें

जेलेन्स्की राजी नहीं हुए और यूरोपीय देश उनकी मदद पर अड़े रहे, तो संभव है कि युद्ध रुकवाने की ट्रंप की मंशा पूरी ना हो। मगर उस स्थिति में नाटो के भीतर संभावित उथल-पुथल का अनुमान लगाया जा सकता है।

डॉनल्ड ट्रंप ने व्लादीमीर पुतिन को शिखर वार्ता के लिए अलास्का (अमेरिकी राज्य) आमंत्रित कर रूस के खिलाफ नॉर्थ अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की रणनीति को एक झटके में छिन्न- भिन्न कर दिया है। 24 फरवरी 2022 को जब रूस ने यूक्रेन के खिलाफ विशेष सैनिक कार्रवाई शुरू की, तब से रूस को दुनिया में ‘पराया’ बना देने के लिए पश्चिमी देशों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाए रखा था। रूस से घुटने टेकवाने की इस रणनीति के तहत ही उस पर कठोरतम प्रतिबंध लगाए गए और उससे हर तरह का संवाद तोड़ लिया गया। यूक्रेन की संसद ने तो एक विधेयक पारित कर पुतिन प्रशासन से किसी भी प्रकार के संवाद को देशद्रोह घोषित कर दिया।

अब उन्हीं पुतिन को ट्रंप ने बातचीत के लिए अपने देश की धरती पर आमंत्रित कर वो ‘परायापन’ खत्म कर दिया है। वह भी यूक्रेन या नाटो के सदस्य- यूरोपीय देशों को बिना भरोसे में लिए! इतना ही नहीं। ट्रंप ने यह भी कह डाला कि युद्ध रुकवाने के लिए यूक्रेन को अपने कुछ इलाके रूस को देने पड़ सकते हैँ। फिलहाल यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की ने ऐसा करने से इनकार किया है। यूरोपीय देश अमेरिकी राष्ट्रपति से गुजारिश कर रहे हैं कि 15 अगस्त को रूसी राष्ट्रपति से वार्ता के पहले वे जेलेन्स्की के साथ-साथ उनकी राय भी सुनें।

खबर है कि ट्रंप जेलेन्स्की को भी अलास्का बुला सकते हैं और पुतिन से सीधी वार्ता के लिए उन पर दबाव डाल सकते हैं। तो जाहिर है, ट्रंप ने समीकरण बदल दिए हैं। जेलेन्स्की राजी नहीं हुए और यूरोपीय देश उनकी मदद पर अड़े रहे, तो संभव है कि पुतिन की शर्तों पर युद्ध रुकवाने की ट्रंप की मंशा पूरी ना हो। मगर उस स्थिति में नाटो के भीतर संभावित उथल-पुथल का अनुमान लगाया जा सकता है। यह बात जेलेन्स्की और यूरोपीय नेता भी जानते हैं कि अमेरिकी वरदहस्त के बिना रूस के खिलाफ लड़ाई बहुत दिन तक जारी नहीं रखी जा सकती। स्पष्टतः उन्हें अहसास है कि अलास्का वार्ता से उनके लिए कोई अनुकूल सूरत नहीं उभर सकेगी। इसलिए उनकी ताजा बेचैनी अकारण नहीं है।

By NI Editorial

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